अब बिजली की सब्सिडी का हर महीने करना होगा भुगतान

बिजली की सब्सिडी
  • मप्र सरकार दे रही करीब 21 हजार करोड़ की सब्सिडी

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
    कोरोना संक्रमण के कारण राज्यों की अर्थव्यवस्था अभी भी बदहाल है। गरीबी में आटा गीला की तर्ज पर केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी करते हुए राज्यों को निर्देश दिया है कि बिजली की सब्सिडी का भुगतान हर महीने किया जाए। केंद्र का यह निर्देश मप्र पर भारी पड़ रहा है, क्योंकि प्रदेश सरकार करीब 21 हजार करोड़ की सब्सिडी दे रही है।
    गौरतलब है कि मप्र के लिए बिजली सब्सिडी का गणित ज्यादा भारी है, क्योंकि सरकार करीब 21 हजार करोड़ की सब्सिडी दे रही है। इस सब्सिडी को कम करने के लिए बीते छह महीने से सरकार प्रयास कर रही है। इसके लिए मंत्रियों का समूह भी गठित किया गया है, लेकिन अब तक इसकी फायनल रिपोर्ट नहीं आ सकी है। आगे चलकर सब्सिडी पर सख्त हुए नियमों के कारण मप्र को इसमें भारी कमी करनी होगी।
    रुक सकती है बिजली योजनाओं की मदद
    केंद्र सरकार ने साफ कह दिया है कि बिजली की सब्सिडी का भुगतान हर महीने किया जाए। ऐसा नहीं होने पर केंद्र की बिजली योजनाओं की मदद रूक सकती है। मप्र ने सब्सिडी भुगतान में टाइम पीरियड में छूट चाही थी, लेकिन केंद्र ने इससे इंकार कर दिया। अब स्थिति यह है कि मप्र कम से कम तीन महीने की छूट चाहता है, लेकिन उसकी अनुमति भी नहीं मिल पाई है। कोरोना के कारण आर्थिक मोर्चे पर स्थिति बेहतर नहीं है, इस कारण बिजली सब्सिडी को लेकर परेशानी हो रही है। सरकार इसी कारण बिजली सब्सिडी घटाने के प्रयास भी कर रही है, लेकिन अब तक कोई रास्ता नहीं निकल पाया है।
    मप्र चाहता है कभी भी भुगतान की व्यवस्था
    गौरतलब है कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने गाइडलाइन दी है कि राज्य  बिजली कंपनियों को दी जाने वाली सब्सिडी त्वरित दी जाए। मासिक तौर पर भुगतान हो। जबकि मप्र चाहता है कि सालभर में कभी भी सब्सिडी देने की छूट मिल जाए। साल के आखिरी में केंद्र सब्सिडी की जवाबदेही तय करें। दिक्कत ये कि यदि सब्सिडी तुरंत दी जाएगी तो वह पैसा तुरंत चुकाना होगा। प्रदेश के पास अभी इतना पैसा नहीं है। सालभर  में सरकार बजट एडजेस्टमेंट कर लेती है, लेकिन मासिक या तिमाही भुगतान में यह नहीं हो सकेगा। केंद्र ने इसे इंकार कर दिया है। केंद्र ने फिलहाल अधिकतम तीन महीने की देरी को फौरी तौर पर मौखिक रूप से माना है।
    डिफाल्टर ग्रेड में आ सकता है मप्र
    केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने गाइडलाइन जारी कर कहा है कि सब्सिडी का पूरा हिसाब और ऑडिट रिपोर्ट्स भी भुगतान के बाद त्वरित दी जाए। यानी मासिक या तिमाही प्रक्रिया के तहत दी जाए। वहीं मप्र सब्सिडी राशि की तरह ही हिसाब व आॅडिट रिपोर्ट्स भी सालाना देना चाहता है। वित्तीय सत्र के अंत में पूरी रिपोर्ट देने की बात कही गई है, लेकिन केंद्र ने इसे माना नहीं है। मप्र को हर महीने रिपोर्ट देने व ऑडिट में दिक्कत ये है कि इससे हर महीने की आर्थिक जवाबदेही तय हो जाएगी। बजट नहीं होने की स्थिति में प्रदेश डिफाल्टर ग्रेड में आ सकता है। सालाना देने पर वह ऑडिट एडजेस्टमेंट कर सकता है।
    सालों तक लटका रहता है हिसाब
    जानकारी के अनुसार केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय केंद्रीय योजनाओं की आर्थिक मदद में त्वरित जवाबदेही तय करना चाहता है। केंद्रीय मंत्रालय बिजली में जो राज्य सरकार को आर्थिक मदद देता है, उसका हिसाब अभी साल भर लेट या कई बाद सालों लेट आता है। केंद्रीय मंत्रालय अब सब ऑनलाइन करने की तैयारी कर रहा है। इस कारण नए नियम लाए गए हैं। अभी राज्यों के स्तर पर एक मद के बजट का उपयोग दूसरे मद में कर लिया जाता है और बाद में साल के आखिरी में समायोजन करके ऑडिट दे दिया जाता है। नियमानुसार एक मद का बजट दूसरे मद में उपयोग नहीं कर सकते। इस कारण केंद्रीय मंत्रालय राज्यों की इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए नए नियम लाया है। इससे बिजली में जिस मद का बजट है, उसी में उपयोग करना होगा, क्योंकि हर महीने हिसाब देना होगा।

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