
- फर्जी वेबसाइट बनाने वालों पर भी होगी कार्रवाई
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सोशल मीडिया पर फर्जी आईडी बनाकर महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर यौन अपराध वाले फोटो-वीडियो या अश्लील सामग्री अपलोड करने के मामले में पुलिस अब वेबसाइट बनाने और उपयोग करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की तैयारी कर रही है। इनके विरुद्ध भी एफआईआर दर्ज कर वैधानिक कार्रवाई की जाएगी। आवश्यकता पडऩे पर केंद्र सरकार की भी मदद ली जाएगी। फिलहाल इन वेबसाइटों को ब्लॉक करा दिया गया है।
ऑपरेशन नयन के तहत की जा रही कार्रवाई
बता दें, मध्य प्रदेश साइबर मुख्यालय ने महिलाओं-बच्चों के विरुद्ध साइबर यौन अपराध करने वालों को पकडऩे के लिए 10 अक्टूबर से छह नवंबर तक ऑपरेशन नयन चलाया था, जिसमें जनवरी, 2024 से अब तक आईं 833 शिकायतों की जांच में 50 में एफआईआर दर्ज कर आरोपितों को गिरफ्तार किया गया है। देश में पहली बार इस तरह का अभियान चलाया गया। अपराध में उपयोग 65 इंटरनेट मीडिया यूआरएल, 45 ई-मेल आईडी, 60 मोबाइल नंबरों की पहचान कर ब्लॉक कराया गया है। मामले में भोपाल, सतना, छतरपुर, विदिशा, अनूपपुर, शाजापुर, शहडोल, मऊगंज और पांढुर्णा में विभिन्न धाराओं के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कराई गई हैं।
साइबर क्राइम और डिजिटल न्याय का संकट
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित भारत में अपराध 2023 रिपोर्ट में, साइबर अपराध से संबंधित हिस्से ने सबसे ज्यादा चौंका दिया और चिंता पैदा की। साइबर अपराध से संबंधित अपराध के आंकड़े साल-दर-साल चौंकाने वाले रहे, जिनमें पंजीकृत अपराधों में 31.2 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। कुल साइबर अपराधों की संख्या 65,893 (2022) से बढक़र 86,128 (2023) हो गई, जिनमें सबसे ज्यादा अपराध ऑनलाइन पैसे की धोखाधड़ी, यौन शोषण और पहचान की चोरी के थे (एनसीआरबी, पृष्ठ 392)। इन चौंका देने वाले आंकड़ों ने नागरिकों के उस संदेह की पुष्टि की, जो पहले से ही संदेहास्पद था कि भारत में रहने का डिजिटल अर्थशास्त्र रोजमर्रा की जिदगी के लिए तेजी से बढ़ता, असुरक्षित माहौल है। रिपोर्ट में बताए गए अन्य आंकड़ों के पीछे एक और कहानी भी थी, संस्थागत रिपोर्टिंग की कमी, नौकरशाही की खामोशी और एक ऐसा खालीपन जहां ऑनलाइन दुष्प्रभाव कानूनी मदद का रास्ता नहीं ढूंढ पाता। ये आंकड़े वृद्धि और ठहराव, दोनों को दर्शाते हैं। एक ओर, रिपोर्ट किए गए साइबर अपराधों की कुल संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन वे अभी भी कुल (अन्य) अपराधों का एक छोटा सा हिस्सा ही हैं। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन द्वारा 2023 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि डिजिटल धोखाधड़ी या उत्पीडऩ का सामना करने वाले लगभग 68 प्रतिशत रेस्पोंडेंट्स ने पुलिस को रिपोर्ट नहीं की या मदद नहीं ली क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं था कि पुलिस कार्रवाई करेगी या ऑनलाइन शर्मिंदा होने के डर से मदद नहीं ली। यहां तक कि जिन व्यक्तियों ने शिकायत दर्ज कराई, उन्हें भी अक्सर यह कहकर टाल दिया गया कि घटना काफी गंभीर नहीं थी या उनके स्थानीय पुलिस विभाग के अधिकार क्षेत्र से बाहर थी।
दिल्ली, मुंबई और सांख्यिकीय सेंसरशिप की कला
दिल्ली, मुंबई और कई अन्य बड़े महानगरों में चिंताजनक आंकड़ों के बावजूद, आंकड़ों में अचानक गिरावट देखी गई। मुंबई में, रिपोर्ट कुल साइबर अपराध के मामलों में पिछले वर्ष की तुलना में 11.7 प्रतिशत की गिरावट दर्शाती है, जबकि आरटीआई के आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल पर की गई सभी शिकायतों में से केवल दो प्रतिशत ही एफआईआर में तब्दील की गईं। इसी तरह, दिल्ली में भी, सभी श्रेणियों में गिरावट देखी गई है, जो मीडिया में प्रस्तुत आंकड़ों के कई न्यूज आर्टिकल के स्पष्ट विरोधाभास को दर्शाता है, जिनमें स्पष्ट रूप से साइबर धोखाधड़ी, फि़शिंग घोटालों और लिंग-आधारित ऑनलाइन उत्पीडऩ में वृद्धि का संकेत दिया गया था। आधिकारिक रिपोर्टों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों और जीवित मानवीय अनुभव के बीच का अंतर अपने आप में एक नए प्रकार की सेंसरशिप – डिजिटल सेंसरशिप – का प्रतिनिधित्व करता है।
25 वेबसाइट चिह्नित
राज्य साइबर मुख्यालय ने अभी ऐसी 25 वेबसाइट चिह्नित की हैं। कुछ और मामलों की जांच चल रही है, जिससे इनकी संख्या बढ़ सकती है। जांच में सामने आया है कि वेबसाइट बनाने और उपयोग करने वाले इनसे अच्छी कमाई कर रहे हैं। व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग इन वेबसाइटों पर महिलाओं और बच्चों के अश्लील फोटो, वीडियो या अन्य सामग्री अपलोड कर रहे हैं। साथ ही कुछ लोगों ने ऐसी सामग्री डाउनलोड कर उसे प्रसारित करने को धंधा बना लिया है।
आईपी एड्रेस के आधार पर होगी पहचान
राज्य साइबर मुख्यालय के अधिकारियों ने बताया कि आई पी एड्रेस के आधार पर पहचान करेंगे कि वेबसाइट का उपयोग कब और कहां-कहां किया गया है। साइबर मुख्यालय के एसपी प्रणय नागवंशी ने बताया कि इसके आधार पर मध्य प्रदेश में उपयोग करने वालों के विरुद्ध यहां की पुलिस एफआईआर व अन्य वैधानिक कार्रवाई करेगी। दूसरे राज्यों में उपयोग होने की स्थिति में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले इंडियन साइबर क्राइम कोआर्डिनेशन सेंटर (आई-4सी) को जानकारी साझा की जाएगी, जिससे उन राज्यों में आरोपितों के विरुद्ध कार्रवाई हो सके।
