यस एमएलए- रोजगार के लिए कोई उद्योग स्थापित नहीं

एमएलए

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। भोपाल संभाग में आने वाले विदिशा जिले में 5 विधानसभा सीट विदिशा, बासौदा, कुरवाई, सिरोंज, शमशाबाद आती है। इनमें से एक सीट कुरवाई अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। कुरवाई विधानसभा सीट पर किस पार्टी के प्रत्याशी का कब्जा होगा, ये मुख्य रूप से एससी, एसटी और ओबीसी के मुस्लिम मदताताओं पर निर्भर होता है। जिनकी तादाद क्षेत्र में बहुत है। 2003 से कुरवाई सीट पर लगातार भाजपा चुनाव जीत रही है। इस क्षेत्र में रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। लाखों की आबादी वाली इस विधानसभा में रोजगार के लिए कोई उद्योग स्थापित नहीं है।
कुरवाई विधानसभा सीट के लिए भाजपा कभी टिकट रिपीट नहीं करती है, जो पार्टी की जीत का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट होता है। बीते 10 सालों से इस विधानसभा पर भाजपा का कब्जा है। वहीं कांग्रेस को मिलती आ रही हार के चलते इस बार कांग्रेस सक्रियता के साथ दमदार उम्मीदवार की तलाश में है। एंटी इंकम्बेसी के कारण भी इस बार मुकाबला कड़ा हो सकता है। विदिशा जिले की एक छोटी तहसील कुरवाई विधानसभा एक जमाने में कुरवाई स्टेट के नाम से जानी जाती थी। कुरवाई भले ही एक छोटी सी तहसील हो लेकिन, इसे अब तहसील नहीं कहना ज्यादा मुनासिब होगा, क्योंकि अब इसने शहर का आकार ले लिया है। कुरवाई नवाबों का शहर रहा है। नवाब सरवर अली खान यहां के आखिरी नवाब हुए। इसके अलावा कुरवाई से महज कुछ ही दूरी पर प्रदेश का सबसे बड़ा प्लांट बीना रिफाईनरी स्थापित है।
क्षेत्रीय समस्याएं
कुरवाई विधानसभा का सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार है। लाखों की आवादी वाली इस विधानसभा में रोजगार के लिए कोई उद्योग स्थापित नहीं है। दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा नवीन कृषि उपज मंडी का निर्माण नहीं होना हैं। मौजूदा कृषि उपज मंडी अतिक्रमण की भेंट चढ़ी हुई है। जिसके चलते कुरवाई के व्यापार की हालत ग्रमीण परिवेश में बदल चुकी है। कुरवाई के सिविल अस्पताल की हालत दयनीय स्थिति में है, एक समय यही अस्पताल जिले का सबसे बड़ा अस्पताल हुआ करता था। लेकिन आज क्षेत्रवासियों को चिकित्सा के लिए विदिशा या भोपाल जाना पड़ता है।
सियासी समीकरण
कुरवाई सीट 1977 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। सीट पर दलित और मुस्लिम वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है। कुरवाई में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता आया है। ज्यादा बार यहां भाजपा को ही सफलता मिली है। 2013 के चुनाव में भाजपा के वीर सिंह पंवार ने जीत हासिल की थी। इसके बाद साल 2018 में यह सीट फिर भाजपा के हाथ में आई। वर्तमान में कुरवाई विधानसभा सीट से भाजपा के हरिसिंह सप्रे विधायक है। सप्रे लगभग साढ़े 16 हजार मतों के बड़े अंतर से जीते थे, लेकिन एक बार फिर दोनों दलों के के बीच कड़ा मुकाबला होने के आसार हैं।
भाजपा-कांग्रेस के दावेदार
चुनावी साल आते ही टिकट के दावेदार सक्रिय हो गए हैं। भाजपा के मौजूदा विधायक हरि सिंह सप्रे दूसरी बार के विधायक है। सप्रे प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के खास है। सप्रे ने पिछला चुनाव करीब 16000 से ज्यादा मतों से जीता था। तीन बार विधायक रहे श्यामलाल पंथी का नाम भी दावेदारों में तेजी से चर्चा में बना हुआ है। श्याम लाल पंथी हर वर्ग में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं। पंथी क्षेत्र में राजनीतिक चाणक्य की उपाधि से जनता में मशहूर है। वहीं कांग्रेस से पूर्व विधायक पनबाई पंथी टिकट की लाइन में बनी हुई है। पानबाई पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को करीबी मानी जाती है। दूसरी दावेदार रानी अहिरवार नया चेहरा है। वे वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य है। रानी अहिरवार अपने समाज के 55 हजार वोटों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके अलावा मुस्लिम वर्ग में भी उनकी अच्छी खासी पकड़ है। इसके अलावा कमलनाथ के करीबी माने जाने चाले प्रदीप अहिरवार का नाम भी क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
जातिय समीकरण
विधानसभा क्षेत्र में ठाकुर, मुस्लिम, अहिरवार, लोधी बहुतायत में हैं। कुरवाई विधानसभा में ठाकुर समाज के करीब 35 हजार, मुस्लिम 45 हजार और अहिरवार 55 हजार वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। ठाकुर समाज का बहुत बड़ा वर्ग भाजपा को चुनावों में जीत दिलाता आया है। लोधी समाज का भी पूरा सहयोग भाजपा को मिलता आया है। विधानसभा क्षेत्र में 10 हजार के करीब लोधी मतदाता है। लेकिन लोधी समाज कुरवाई विधानसभा में पदों से वंचित रहा है। कुरवाई विधानसभा में सबसे
ज्यादा मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों से आते है।

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