
- एसआरएस के स्पेशल बुलेटिन 2020-22 में खुलासा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार मातृ मृत्यु दर (एमएमआर)को रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है, लेकिन उसमें अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में इसमें गिरावट आई है, लेकिन यह अभी भी राष्ट्रीय औसत से अधिक है और 2030 तक सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में चुनौती बनी हुई है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के मेटरनल मॉर्टलिटी पर 14 जून को जारी एसआरएस के स्पेशल बुलेटिन 2020-22 में खुलासा हुआ है कि प्रदेश में प्रति एक लाख जीवित जन्म देने वाली गर्भवती महिलाओं में से 169 की मौत हो रही है, जो देश में सर्वाधिक है। दरअसल, मप्र में मातृ मृत्यु दर अब भी 169 प्रति लाख है, जो राष्ट्रीय औसत 88 से काफी ज्यादा है। आंकड़े चिंताजनक इसलिए भी हैं क्योंकि प्रसूताओं की मौत में मप्र देश में तीसरे स्थान पर है। वहीं, शिशु मृत्यु दर की बात करें तो 1 हजार नवजात में से 35 की मौत हो जाती है। सरकार का लक्ष्य है कि बर्थ वेटिंग होम जैसी योजनाओं से स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाई जाए और मृत्यु दर में कमी लाई जाए। प्रदेश में प्रति 1 लाख में से 3500 नवजात और 169 प्रसूताएं प्रसूताएं जिंदा नहीं बचतीं। यह राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है।
देश में एमएमआर 88, मप्र में दोगुना 169
गौरतलब है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रदेश में मातृ मृत्यु दर में प्रभावी सुधार नहीं हो सका है। देश में जहां एमएमआर में लगातार कमी हो रही है। मप्र से कई छोटे राज्य भी प्रभावी रोक लगाने में कामयाब हुए हैं, लेकिन प्रदेश अभी भी इस मामले में देश में पहले स्थान पर बना हुआ है। प्रदेश ने पहले जहां एमएमआर 175 था, वह अब 169 हो गया है। यानी प्रति एक लाख जीवित जन्म देने वाली गर्भवती महिलाओं में से 169 की मौत हो रही है, जो देश में सर्वाधिक है। इसमें राष्ट्रीय स्तर पर एमएमआर कमी के साथ 38 हो गया है, जबकि मप्र में एमएमआर इससे दोगुना है। रिपोर्ट में बताया, माताओं की मृत्यु होना किसी क्षेत्र विशेष में महिलाओं की प्रजनन स्वास्थ्य का आइना है। कुछ महिलाओं की मौत गर्भावस्था में होने वाली जटिलताओं के कारण हो जाती है तो कुछ की प्रसव के समय या गर्भपात के समय मौत होती है।
करोड़ों रूपए का बजट
प्रदेश में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर जैसे सूचकांक सुधारने पर वर्ष 2024-25 में 3531 करोड़ रुपए का बजट खर्च किया है, जबकि वर्ष 2025-26 के लिए एनएचएम को 4418 करोड़ का बजट स्वीकृत किया। इतने खर्च के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। प्रदेश में एमएमआर कम करने एएनसी पंजीयन, प्रसव पूर्व चार जांचें, एनीमिया रोकथाम, जेस्टेशनल डायबिटीज की स्क्रीनिंग जैसे उपाय किए जा रहे हैं। शासकीय मेडिकल कॉलेजों में एडवांस स्किल लैब, ऑब्सटेट्रिक आइसीयू, राज्य मिडवाइफरी प्रशिक्षण संस्थान की शुरुआत, बर्थ वेटिंग होम और सुमन कार्यक्रम का संचालन जैसे कई प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं बिहार में एमएमआर में तेजी से गिरावट आ रही है। एमएमआर 01 पाया है, जबकि पिछली रिपोर्ट में ही बिहार में 18 अंकों की गिरावट थी। बिहार में 2018-20 की रिपोर्ट में जहां एमएमआर 118 था वहीं 2021 के एमएमआर बुलेटिन में बिहार में एमएमआर 100 हो गई थी। अब यह 91 है। इससे जाहिर है कि बिहार में किए जा रहे प्रयास सही दिशा में चल रहे हैं। इससे राज्य जल्द एसडीजी गोल्स समय पर अस्पताल पहुंचे और उन्हें सही समय पर इलाज मिले. यह व्यवस्था जरूरी है। क्रिटिकल केसों के लिए प्रसव की सुविधाएं घर के पास और अस्पतालों में पर्याप्त गायनिक विशेषज्ञ हों।
मातृ मृत्यु दर रोकने के लिए मप्र में पहल
प्रसव के दौरान मातृ मृत्यु दर रोकने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने संस्थागत प्रसव की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है। प्रदेश के 47 जिलों के 71 सिविल अस्पताल और 249 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में बर्थ वेटिंग होम शुरू किए जाएंगे। गर्भवती प्रसव की संभावित तारीख से एक हफ्ते पहले यहां आकर रुक सकेंगी। ताकि अस्पताल में डिलीवरी व समुचित इलाज सुनिश्चित हो सके। यहां न केवल उनके पोषण का ख्याल रखा जाएगा, बल्कि सुमन हेल्प डेस्क और आशा के माध्यम से नियमित जांच की जाएगी। बीमारियों को ब्यौरा लिया जाएगा। इसके अलावा यहां रुकने पर रोज 100 रुपए की आर्थिक सहायता भी दी जाएगी। आदिवासी बहुल 3 जिलों झाबुआ, आलीराजपुर और बड़वानी में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। प्रदेश के कई क्षेत्रों में महिलाएं स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर दुर्गम क्षेत्रों में रहती हैं। यहां ज्यादातर मामलों में परिजन घर पर ही प्रसव करवाते हैं। इन क्षेत्रों में मातृ मृत्यु दर ज्यादा है। अधिकांश आदिवासी महिलाएं संस्थागत प्रसव के लिए अस्पताल आने से कतराती हैं। कई बार परिवार के सदस्य मजदूरी छोडकऱ आने से बचते हैं। सरकार का मानना है कि ये 100 रुपए इनके नुकसान की भरपाई करेंगे। 3 जिलों में अब तक 119 संस्थानों में यह सुविधा दी जा रही है।