
- नगर पालिका (संशोधन) अध्यादेश-2025 लागू
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार ने नगरीय निकायों के मामले में अहम फैसला लिया है और नगर पालिका (संशोधन) अध्यादेश-2025 लागू कर दिया है। इस अध्यादेश के लागू होने के साथ ही अब नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्षों के ख्रिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना मुश्किल होगा। दरअसल, नगरीय निकायों में काबिज अध्यक्षों के खिलाफ प्रस्ताव लाने की अवधि साढ़े चार साल कर दिया गया है। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 80 प्रतिशत नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद पर भाजपा या उसके समर्थक काबिज हैं। कई नगर पालिका और नगर परिषदों में भाजपा के पार्षद ही अपने अध्यक्षों के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उन्हें पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहे थे। इससे सरकार के साथ ही भाजपा संगठन भी परेशान था, लेकिन सरकार ने मप्र नगर पालिका (संशोधन) अध्यादेश-2025 लागू कर एक तीर से कई निशाने साधे हैं।
जानकारों का कहना है कि इस अध्यादेश के जरिए सरकार ने एक तरफ जहां पार्षदों के पर कतर दिए, वहीं नगर पालिका और परिषद अध्यक्षों की कुर्सी पर मंडरा रहे संकट को टाल दिया है। बचे हुए कार्यकाल में वे पार्षदों के दबाव में आए बगैर काम कर सकेंगे। साथ ही यह अध्यादेश लागू होने के बाद अब सरकार और भाजपा संगठन को भी बार-बार अपने नगर पालिका व परिषद अध्यक्षों की कुर्सी बचाने के लिए कवायद नहीं करना पड़ेगी। यही वजह है कि मप्र नगर पालिका (संशोधन) अध्यादेश-2025 को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के दूसरे ही दिन ही सरकार ने इसे लागू कर दिया है। गौरतलब है कि पिछले साल कई अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। नर्मदापुरम नगर पालिका अध्यक्ष भाजपा की नीतू यादव का 2 साल का कार्यकाल (11 अगस्त, 2024) पूरा होने से पहले ही उन्हें पद से हटाने के लिए 21 पार्षदों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिए थे। नगर पालिका में कुल 33 पार्षद है। टीकमगढ़ नगर पालिका अध्यक्ष कांग्रेस के अब्दुल गफ्फार को हटाने के लिए विशेष सम्मेलन की तारीख तय हो गई थी। यहां 19 पार्षदों ने 20 अगस्त, 2024 को अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। दमोह नगर पालिका अध्यक्ष कांग्रेस की मंजू राय को पद से हटाने की तैयारी थी। मामला कलेक्टर के पास पहुंच गया था, लेकिन वोटिंग से पहले नया अध्यादेश आने से उन्हें राहत मिल गई थी। मऊगंज नगर परिषद अध्यक्ष भाजपा के बृजवासी पटेल नए अध्यादेश में तीन साल के बाद अविश्वास प्रस्ताव लाने के नियम से बच गए थे। 15 में से 12 पार्षद अध्यक्ष के खिलाफ थे। गुना जिले की चाचौड़ा नगर परिषद अध्यक्ष भाजपा की सुनीता नाटानी के विरोध में 15 में से 13 पार्षद और कुंभराज नगर परिषद अध्यक्ष शारदा साहू के विरोध में भी 15 में से 13 पार्षद थे, लेकिन दोनों ही जगह अविश्वास प्रस्ताव पर आगे की कार्रवाई रोक दी गई थी।
3 से बढ़ाकर साढ़े 4 वर्ष अवधि
दरअसल, वर्ष 2022 में नगर पालिका और परिषद अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से हुआ था। यानी पार्षदों के जरिए नगर पालिका व परिषद अध्यक्षों का चयन हुआ था। जैसे ही उनका दो साल का कार्यकाल पूरा हुआ, पार्षदों की नाराजगी के कारण कई निकायों में अध्यक्षों को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की सूचनाएं दी गई थीं। सरकार ने अध्यक्षों की कुर्सी खतरे में देखते हुए पिछले साल अगस्त में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि 2 से बढ़ाकर 3 साल कर दी थी। साथ ही ये बदलाव भी किया था कि पार्षद तीन चौथाई बहुमत होने पर ही अश्विास प्रस्ताव ला सकते हैं। इससे पहले ये पार्षदों के दो तिहाई बहुमत के साथ स्वीकार होता था। सरकार को उम्मीद थी कि स्थितियां बदल जाएंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पिछले महीने जैसे ही अध्यक्षों को तीन साल पूरे होने को आए, कई नगरीय निकायों में उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारियां शुरू हो गई। इस पर नगर पालिका संघ ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर कहा कि पार्षद दबाव बनाते हैं। इससे वे विकास कार्यों को गति नहीं पाते हैं, इसलिए अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि और बढ़ाई जाए। इससे सहमत होते हुए सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए अवधि 3 से बढ़ाकर साढ़े 4 वर्ष करने की तैयारी शुरू कर दी।
तीन चौथाई पार्षदों को अविश्वास प्रस्ताव लाना होगा
सरकार ने मप्र नगर पालिका (संशोधन) अध्यादेश-2025 तैयार कर अगला नगर पालिका व परिषद अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का निर्णय ले लिया। कैबिनेट से इस अध्यादेश को मंजूरी मिलने के बाद इसे लागू कर दिया। अब नगर पालिका और परिषद अध्यक्ष को पद से हटाना आसान नहीं होगा। अध्यादेश में किए गए प्रावधान के अनुसार नगर पालिका और परिषद अध्यक्ष को पद से हटाने के लिए तीन चौथाई पार्षदों को अविश्वास प्रस्ताव लाना होगा। इसके बाद राज्य निर्वाचन आयोग खाली कुर्सी-भरी कुर्सी चुनाव कराएगा। इसमें जनता ही यह निर्णय लेगी की अध्यक्ष पद पर रहेंगे या हटेंगे। अगस्त, 2024 से पहले दो साल की अवधि पूरी होने पर अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था, यह पार्षदों के दो तिहाई बहुमत से स्वीकार होता था। अगस्त, 2024 से तीन साल की अवधि के बाद अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता था, इसके लिए पार्षदों का तीन चौथाई बहुमत होना जरूरी था। 10 सितंबर, 2025 से अध्यक्ष के खिलाफ तीन चौथाई पार्षद अविश्वास प्रस्ताव ला सकेंगे, अविश्वास प्रस्ताव पर खाली कुर्सी-भरी कुर्सी चुनाव होगा, इसमें अध्यक्ष पद पर रहेंगे या नहीं यह निर्णय जनता लेगी।