न प्रदेश अध्यक्ष मिला… न जिलों-मंडलों की टीम बनी

  • मप्र भाजपा में कहां फंस गया है पेंच
  • विनोद उपाध्याय
प्रदेश अध्यक्ष

मप्र में भाजपा संगठन चुनाव की शुरूआत जिस तेजी से शुरू हुई, उसमें उतनी ही सुस्ती आ गई है। मप्र में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के नाम का बड़ी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। आखिर पेच कहां फंसा है स्पष्ट नही है। पहले अनुमान था कि फरवरी के पहले हफ्ते में नाम की घोषणा हो सकती है। अब मार्च खत्म होने जा रहा है। यही नहीं अभी तक जिलों और मंडलों की टीम भी नहीं बन पाई है। जबकि जिलाध्यक्षों और मंडल अध्यक्षों का चुनाव पहले ही संपन्न हो चुका है। गौरतलब है कि संगठन चुनाव के तहत भाजपा मेें पहले मंडल अध्यक्षों का चुनाव संपन्न हुआ, फिर उसके बाद जिलाध्यक्षों का। भाजपा में जिला अध्यक्ष और मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति हुए दो महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन अब तक जिलों और मंडलों में कार्यकारिणी नहीं बन सकी है। नई टीम भले ही नहीं बनी हो, लेकिन इस टीम में शामिल होने के लिए जिला और मंडल के नेता सक्रिय हो चुके हैं। वे अपने क्षेत्र के विधायक-सांसदों से लेकर प्रदेश भाजपा के नेताओं से भी लगातार संपर्क कर रहे हैं।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए तीन माह से कयासबाजी
साल 2025 की शुरुआत में मप्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के नाम के ऐलान को लेकर अटकलबाजियां शुरू हुईं। इसी में 3 माह निकल गए। सवाल ये है कि इसमें हो रही है देरी की वजह क्या है। पहले जिलाध्यक्ष के चुनाव में देरी हुई। उसके बाद कहा गया कि भोपाल में हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के बाद ये फैसला लिया जाएगा। लेकिन इन्वेस्टर्स समिट बीत जाने के बाद भी प्रदेशअध्यक्ष को लेकर कोई हलचल फिलहाल नहीं है। भाजपा के मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल कहते हैं भाजपा में संगठनात्मक सभी कार्यक्रम अपने निश्चित समय पर ही होते हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व इनका निर्धारण करता है। भाजपा जैसे दल में पार्टी संगठन के हर कार्य के लिए बाकायदा पूरी प्रक्रिया है, उसी के अनुरूप ही सब कार्य सम्पन्न होते हैं। अब तक घोषणा तो दूर प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए प्रभारी बनाए गए धर्मेन्द्र प्रधान का दौरा तक तय नहीं हो पाया है। बताया जा रहा है कि पार्टी के भीतर राइट च्वाइस की तलाश के कारण ये देरी हो रही है। दिक्कत ये भी है कि मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर एक अनार सौ बीमार जैसे हालात हैं।
धर्मेन्द्र प्रधान का दौरा कहां अटका
मप्र में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए प्रभारी बनाए गए धर्मेन्द्र प्रधान का दौरा भी तय नहीं हो पा रहा है। जानकार कहते हैं इसमें दो राय नहीं है कि भाजपा संगठन में सब काम निश्चित समय पर होते हैं। सारा काम प्रक्रिया के तहत होता है। मप्र के संदर्भ में पार्टी के पास विकल्प भी काफी हैं। लिहाजा पार्टी इत्मीनान से समय ले रही है कि सही विकल्प चुना जा सके। अब जिस तरह से भाजपा में ट्रेंड बना है चौंकाने का तो जितनी लंबी कतार है उसमें ये कहना मुश्किल है कि आखिरी मुहर किसके नाम पर लगेगी। मप्र में भाजपा ने जातिगत समीकरण का संतुलन बनाया है। सीएम मोहन यादव ओबीसी वर्ग से आते हैं। वहीं, ओबीसी वर्ग के दूसेर बड़े नेता शिवराज सिंह चौहान केंद्र में मंत्री हैं। सवर्ण समाज से राजेन्द्र शुक्ला डेप्युटी सीएम हैं। वहीं, आदिवासी वर्ग से जगदीश देवड़ा डेप्युटी सीएम हैं। वीडी शर्मा प्रदेश अध्यक्ष हैं। नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में भाजपा जातिगत समीकरण को साध सकती है।
ये दिग्गज हैं रेस में
मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल पूरा हो चुका है। वीडी शर्मा को एक्सटेंशन दिया गया था। ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी वीडी शर्मा को रिपीट नहीं करेगी। हालांकि अंतिम फैसला पार्टी हाई कमान को करना है। सूत्रों के अनुसार, बैतूल से विधायक हेमंत खंडेलवाल का नाम प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में सबसे आगे हैं। राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी के साथ दुर्गादास उइके का भी नाम शामिल है। हालांकि दुर्गादास उइके मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं इसलिए उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना कम ही है। सुमेर सिंह सोलंकी लो प्रोफाइल नेता हैं और आरएसएस बैकग्राउंड से आते हैं। अगर पार्टी आदिवासी चेहरे पर दांव लगाती है तो मंडला लोकसभा सीट से सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम सबसे आगे हैं। वह केंद्र सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। इस बार उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया है। ऐसे में माना सकता है कि वह रेस में शामिल हैं। सवर्ण नामों में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा और राजेन्द्र शुक्ला को मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं। पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा विधानसभा का चुनाव हार गए हैं। इसके बाद उनके लोकसभा और राज्यसभा लडऩे की अटकलें थीं , लेकिन उन्हें मौका नहीं मिला। लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी ने उन्हें न्यू ज्वाइनिंग टोली के मुखिया बनाया था। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को बीजेपी में शामिल कराया जिस कारण से उनको इनाम मिल सकता है। नरोत्तम मिश्रा के अलावा अरविंद सिंह भदौरिया का भी नाम सवर्ण उम्मीदवारों में है। अरविंद सिंह भदौरिया आरएसएस की पृष्ठभूमि से आते हैं। अरविंद सिंह भदौरिया को संगठन में काम करने का लंबा अनुभव है। वह शिवराज सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।
कार्यकारिणी में शामिल होने की कवायद
गौरतलब है कि भाजपा ने अपने संगठन चुनाव के दौरान दिसंबर तक लगभग 1100 मंडल अध्यक्षों का चुनाव कर लिया था। वहीं जनवरी में सभी 62 जिलों के अध्यक्षों का भी चुनाव करवाकर अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी। दिसंबर के बाद से मंडल और जनवरी से जिलों में कार्यकारिणी बनाए जाने का इंतजार चल रहा है। मंडल और जिले की कमेटी में जगह पाने के लिए कई नेता लगातार अपने क्षेत्र के अध्यक्ष से संपर्क में हैं। वहीं कुछ नेता विधायक या सांसद के जरिए टीम में आना चाहते हैं। जबकि प्रदेश भाजपा के नेताओं के जरिए भी कुछ नेता अपने जिले की कमटी में जगह पाना चाहते हैं। इसके चलते भोपाल तक नेता सक्रिय हैं।  बताया जाता है कि जिला महामंत्री को लेकर हर जगह पर कशमकश बढ़ती जा रही है। जिलों में अध्यक्ष के बाद यह पद महत्वपूर्ण होता है। इस पद के लिए हर जिले से पांच से सात नेता दावेदारी कर रहे हैं। ये नेता प्रदेश के नेताओं से लेकर संघ तक से संपर्क में हैं। ऐसा माना जा रहा है कि अप्रैल में कुछ जिलों और मंडलों में कार्यकारिणी बना दी जाएगी।

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