स्वस्थ्य संसदीय परंपराओं के वाहक बने नाथ

कमलनाथ

-दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राज्यपाल का मान बढ़ाया नेता प्रतिपक्ष ने
-विधानसभा अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधायकों ने कमलनाथ ही सराहना की

भोपाल/प्रणव बजाज /बिच्छू डॉट कॉम। राजनीति के इस संक्रमणकाल में पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन ऐसी मिसाल पेश की जिससे सदन की गरिमा तो बढ़ी ही मप्र का मान भी बढ़ा है। दरअसल, कांग्रेस के विधायक जीतू पटवारी ने जिस अंदाज से राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार किया उससे कमलनाथ भी नाखुश दिखे। यही नहीं उन्होंने राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करने वाले जीतू पटवारी का समर्थन नहीं किया और अपने विधायकों को अभिभाषण का बहिष्कार करने नहीं दिया। यही नहीं उन्होंने जीतू पटवारी के ट्वीट से पार्टी को अलग किया। नाथ के इस कदम का विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित दोनों पार्टियों के विधायकों ने सराहा।

मप्र ही देश की राजनीति में कमलनाथ ने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में गरिमामय व्यवहार का परिचय दिया है। सोमवार को जब जीतू पटवारी का राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार का ट्वीट आया तो लगा था कि सदन में पूरी कांग्रेस उनके पक्ष में खड़ी हो जाएगी। अगर ऐसा होता तो यह मप्र की राजनीति का काला दिन होता। लेकिन नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ ने अपने पद को नई गरिमा दी। उन्होंने राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करने वाले जीतू पटवारी का समर्थन नहीं किया। यही नहीं उन्होंने जीतू पटवारी के ट्वीट से पार्टी को अलग किया। इस मामले में जीतू पटवारी पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं। जबकि कमलनाथ की व्यापक प्रशंसा की जा रही है। खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें धन्यवाद दिया और उनकी प्रशंसा की।

 नेता प्रतिपक्ष पद को नई गरिमा दी नाथ ने
बजट सत्र के पहले दिन कमलनाथ ने ऐसी परंपरा पेश की जिससे नेता प्रतिपक्ष पद को नई गरिमा मिली है। इसके साथ ही कमलनाथ प्रदेश के उन नेताओं में शामिल हो गए ,जिन्हें नेता प्रतिपक्ष के रूप में भी व्यापक सम्मान हासिल था। ऐसे नेताओं में वीरेंद्र कुमार सकलेचा, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, श्यामाचरण शुक्ल की शुमार होती है। विक्रम वर्मा भी नेता प्रतिपक्ष के रूप में हमेशा सकारात्मक आलोचना को महत्व देते थे। नेता प्रतिपक्ष का कार्य सरकार की गलतियों को सामने लाना है ना कि विरोध के लिए विरोध करना। यहीं कमलनाथ ने जिस तरह से गरिमामई व्यवहार किया है उससे मध्यप्रदेश विधानसभा की कार्रवाई का स्तर ऊंचा होगा। कमलनाथ ने राज्यपाल का अभिभाषण का भले ही बहिष्कार नहीं किया और जीतू पटवारी की आलोचना की हो लेकिन उन्होंने सदन के भीतर प्रदेश सरकार की नीतियों और कार्यशैली की जमकर आलोचना की। एक वरिष्ठ विधायक ने माना कि यही नेता प्रतिपक्ष का कर्तव्य होता है कि वह सरकार की आलोचना करें उसका विरोध नहीं।

कमलनाथ को मिला सबका का साथ
विधानसभा में पटवारी के फैसले को कमलनाथ ने गलत करार दिया तो पार्टी विधायकों के साथ उन्हें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी साथ मिला। मुख्यमंत्री ने इस मामले में मीडिया से कहा- विधानसभा की अपनी गरिमा है। हम दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उसका सम्मान करते हैं। पटवारी ने मीडिया में छपने के लिए सोशल मीडिया पर बहिष्कार किया। मैं कमलनाथ जी का आभारी हूं कि उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर यह कहा कि यह गलत परंपरा है। गौरतलब है कि कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष के रूप में पहले भी सकारात्मक भूमिका निभा चुके हैं, जब कोरोना संकट के कारण सदन की बैठक में कटौती की गई थी और एक बार सत्र को टाला गया था। वैसे तो कमलनाथ ने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में गरिमामय व्यवहार का परिचय दिया है लेकिन नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्होंने अपना अलग ही स्तर जताया है।

कांग्रेस में ऑल इज वेल नहीं
प्रदेश कांग्रेस के दो साल पहले सरकार गंवाने के बाद वरिष्ठ नेताओं के प्रति समकक्ष ही नहीं दूसरी पीढ़ी के नेताओं में दूरियां बढ़ी हैं और समय-समय पर हुए घटनाक्रमों से यह संकेत भी मिले। राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार का विधायक द्वारा व्यक्तिगत तौर पर फैसला लेने की रणनीति से यह और साफ हो गया है। कांग्रेस के प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इन दिनों पार्टी के नेताओं को अनुशासन का पाठ सिखाने में लगे हैं लेकिन उनकी यह कोशिश सत्ताधारी भाजपा के लिए हथियार साबित हो रहा है। दिग्विजय सिंह ने रतलाम में पार्टी के नेताओं को सबक सिखाते-सिखाते कह दिया था कि यह आखिरी चुनाव है। वहीं, इस बार कमलनाथ ने विधायक जीतू पटवारी को व्यक्तिगत रूप से फैसला लेने पर सबक सिखाने के लिए सदन के भीतर यह कह दिया कि उन्हें भी ट्वीट से राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार की जानकारी लगी है। मगर यह फैसला पार्टी का नहीं है। वे सदन की परंपराओं का पालन करते हैं।

नेता प्रतिपक्ष की जोर आजमाइश तो नहीं
कांग्रेस में एक नेता एक पद को लेकर दबी जुबान में मांग उठती रही है और कमलनाथ के पास अभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी है। नेता प्रतिपक्ष को लेकर दो साल में कई बार अन्य नेताओं के नाम की चर्चा चली, लेकिन वह फैसले तक नहीं पहुंच सकी है। पार्टी के संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया चल रही है तो इस दौरान फिर नेता प्रतिपक्ष किसी दूसरे नेता को दिए जाने की चर्चा शुरू हुई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. गोविंद सिंह ने रविवार को सर्वदलीय बैठक के बाद यह इच्छा भी जता दी थी और कहा कि कोई नेता प्रतिपक्ष बनाएगा तो मना भी नहीं करूंगा। इस दौड़ में जीतू पटवारी का नाम भी चला है तो राज्यपाल के अभिभाषण के बहिष्कार का खुद फैसला लेकर उन्होंने अपनी आक्रामक छवि को प्रदर्शित करने की कोशिश की है जो उनके लिए उलटी पड़ी है।

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