अपने उद्गम स्थल पर ही नर्मदा जल हुआ प्रदूषित

नर्मदा जल
  • कई जगहों पर  स्थिति बहुत भयावह…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। अमरकंटक में अपने ही उद्गम स्थल के समीप पुण्य सलिला एवं जीवनदायिनी नदी मां नर्मदा प्रदूषित हो गई है। हालत यह है कि प्रदूषण नियंत्रण मंडल शहडोल भी उसके जल को आचमन योग्य भी नहीं मान रहा है। यही नहीं कई अन्य जगहों पर भी स्थिति भयावह बनी हुई है। दरअसल प्रदेश की जीवन रेखा मां नर्मदा का उद्गम अमरकंटक से हुआ है। यह स्थान नर्मदा मंदिर के पास है। यहां स्थित कोटि तीर्थ घाट पर उद्गम स्थल से नर्मदा सर्वप्रथम कुंड में पहुंचती है। इसी कुंड का जल प्रदूषित पाया गया है। यहां पर नर्मदा मंदिर परिसर पर भी एक मुख्य कुंड है, जहां पर पहले श्रद्धालुओं द्वारा स्नान एवं पूजन किया जाता था, लेकिन जल प्रदूषण बढऩे से एक दशक पूर्व इस कुंड में  नहाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। दरअसल अमरंकट में हर रोज करीब दस हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं। कोटि तीर्थ कुंड श्रद्धालुओं के लिए स्नान और पूजन तथा आचमन का सबसे अधिक धार्मिक आस्था का केंद्र है। हजारों लोगों के द्वारा एक दिन में यहां डुबकी लगाई जाती है। कोटि तीर्थ घाट कुंड की लंबाई लगभग 70 फिट है। जिसकी गहराई लगभग 6 फिट है । यहां जल के निकासी बेहद धीमी गति से रामघाट की तरफ होती है।
 कोटि तीर्थ स्नान कुंड में बढ़ता जल प्रदूषण: स्नान के लिए कोटि तीर्थ से लगभग 300 मीटर दूरी पर रामघाट और आगे पुष्कर डैम है, जहां पर पवित्र नगरी अमरकंटक आए श्रद्धालु नर्मदा में स्नान करते हैं। बार-बार कोटि तीर्थ स्नान कुंड में बढ़ते जल प्रदूषण की रोकथाम हेतु यहां श्रद्धालुओं के स्नान को वर्जित करने का प्रयास किया जा रहा है। शासन और जिला प्रशासन के पास इसके लिए प्रस्ताव भी भेज दिए गए हैं ताकि, नर्मदा जल की शुद्धता यहां बनी रहे और श्रद्धालुओं को दर्शन एवं पूजन की अनुमति केवल दी जाए।
धार्मिक पर्व पर ज्यादा प्रदूषण का असर
अमरकंटक में कई धार्मिक पर्व समय-समय पर मनाए जाते हैं। नर्मदा प्रकटोत्सव, श्रावण माह, पूर्णिमा, अमावस्या, दीपावली, होली महाशिवरात्रि जैसे मुख्य अवसरों पर श्रद्धालुओं का दबाव कोठी तीर्थ घाट के नर्मदा जल पर सीधे तौर पर बन जाता है। वर्तमान में कोटि तीर्थ का जल स्तर 4.5 फीट है, जो लगातार नीचे जा रहा है। जल की गहराई कम होने और स्नान करने वाले लोगों की अधिकता भीड़ यहां के जल को निर्मल नहीं रहने देती।
प्रदेश में कई जगहों पर प्रदूषित
नर्मदा नदी में सर्वाधिक प्रदूषण नर्मदापुरम, जबलपुर और बुदनी के बीच है। यह तीनों बड़े शहरी क्षेत्र हैं, जहां सीवेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट दोनों ही सीधे नदी में मिल रहे हैं। तीनों जगह पानी बी या सी कैटेगरी का रहता है, जिसे सीधे पीने के उपयोग में नहीं लिया जा सकता है। इसी तरह से जबलपुर में पूरे शहर का दूषित पानी नर्मदा नदी मिल रहा है। शहर के गौरीघाट के आगे एक बड़ा नाला नदी में मिलता है। इस नाले में शहर का पूरा गंदा पानी इक्क्ठा होता है। इसके साथ भेड़ाघाट स्थित जिलेटिन फैक्ट्री के केमिकल युक्त पानी नर्मदा के जल में घुल रहा है। इसी तरह से खंडवा जिले की तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में ही नाले-नालियों का गंदा पानी सीधे नर्मदा में मिल रहा है। जिले में 45 किमी क्षेत्र में बहने वाली नदी को गंदगी और प्रदूषण से मुक्त करने के लिए ओंकारेश्वर में सीवरेज प्लांट बनाए गए, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी और संचालन में लापरवाही के चलते यह कुछ खास काम नहीं कर रहे हैं। खरगोन जिले के महेश्वर, मंडलेश्वर में सीवरेज का पानी नर्मदा में मिलता है। महेश्वर क्षेत्र में नर्मदा मंदिर, बड़घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर और नरसिंह मंदिर के पास से गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है। यहां छह साल से सीवरेज ट्रीटमेंट का काम चल रहा है। लेकिन अभी तक सिर्फ 40 प्रतिशत काम ही पूरा हुआ है। इसके अलावा मंडलेश्वर में तीन जगह से गंदा पानी नर्मदा में पहुंच रहा है।
धार जिले में भी खराब स्थिति
धार जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के साथ औद्योगिक क्षेत्र का दूषित पानी नर्मदा में जाता है। कुक्षी, मनावर, निसरपुर, धामनोद जैसे नगरों का गंदा पानी मान, उरी, बाघनी आदि सहायक नदियों से सीधे नर्मदा में मिल रहा है। नर्मदा को प्रदूषण से बचाने के लिए यहां अब तक कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए हैं। इधर, बड़वानी जिले से गुजर रही नर्मदा नदी के सभी किनारों से दूषित जल पानी मे घुल रहा है। जिले के ब्राह्मणगांव, छोटा बड़दा, छोटा कसरावद, राजघाट, भवती बिजासन सहित अन्य घाटों पर नर्मदा नदी प्रदूषित है। राजघाट के बैक वाटर में सबसे अधिक गंदगी है। बीते दिनों हुई एक रिसर्च के अनुसार बैक वाटर का पानी पीने योग्य नहीं है। 

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