
- सात साल पहले जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान शिवराज सिंह ने की थी घोषणा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सात साल पहले नर्मदा परिक्रमा मार्ग के निर्माण की घोषणा की गई थी, जो घोषणा बन कर ही रह गई है। इसकी वजह है इस पर काम होना तो ठीक इसके लिए अभी तक योजना तक बनाने का काम शुरु नहीं किया गया है। इससे नर्मदा परिक्रमावासियों को बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, इन दिनों नर्मदा परिक्रमा चल रही है। इसकी वजह है कच्ची पगडंडियां, झाडिय़ों, पहाडिय़ों, जर्जर और दुर्गम रास्ता। इस मार्ग पर रोजाना करीब 500 से 600 श्रद्धालु पैदल जय नर्मदा मैय्या करते निकल रहे हैं। यह देवउठनी ग्यारस से अक्षय तृतीया तक चलती है। सात साल पहले मुख्यमंत्री रहते 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान नया परिक्रमा पथ बनाने की घोषणा भी की, लेकिन आज तक यह मूर्त रूप नहीं ले सका। पूर्व का मार्ग सरदार सरोवर बांध के बैक वॉटर में डूब गया था। बड़वानी से कांग्रेस विधायक राजन मंडलोई के मुताबिक इसका प्रस्ताव ही नहीं तैयार हो सका। नतीजा, परिक्रमा करने वालों को अब भी दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। बता दें कि धार, खरगोन, और बड़वानी में नर्मदा परिक्रमा पथ के 178 गांव डूब चुके हैं। इसकी वजह से अब लोगों को दुर्गम रास्तों से होकर जाना पड़ रहा है।
घाट-घाट पहुंचने में होती है दिक्कत: नरसिंहपुर के अनिलाल ठाकुर भी परिक्रमा पर निकले हैं। वे कहते हैं कि सागर घाट से परिक्रमा शुरू की थी। घाट-घाट पहुंचने में दिक्कत आ रही है। बहुत घूमना पड़ रहा है। 12 किलोमीटर से ज्यादा घूमने के बाद मां नर्मदा के दर्शन होते हैं, जबकि पूरी परिक्रमा किनारे से होकर की जाती है। अब कई किमी तक दर्शन नहीं हो पाते। सरदार सरोवर के बांध के बैकवॉटर के कारण घाट और रास्ते डूब गए। कठिन पहाड़ी, पगडंडी से गुजरते हुए परिक्रमा करना पड़ रही है। ओरिजनल नर्मदा किनारे बसे तीर्थ स्थल, प्राचीन मंदिर, प्राचीन घाट कुछ भी दिखाई नहीं दिया। सभी पानी में डूब चुका है। परिक्रमा मार्ग भी नर्मदा किनारे नहीं है। अब ऊबड़-खाबड़ रास्ते, पगडंडी और झाडिय़ों से होकर गुजरना पड़ रहा है। पुराने मार्ग सब डूब चुके हैं। नए मार्ग बने नहीं हैं।
जिन्हें बाहर बताया, फिर वे डूब में आए
प्रशासन ने 2018-19 में प्रशासन ने सर्वे किया था। इसमें नर्मदा किनारे के कई तीर्थस्थल, मार्ग और गांव डूब से बाहर बताए गए थे। 2019 में वॉटर लेवल बढक़र 138 मीटर हो गया। इसके बाद प्रशासन का सर्वे फेल हो गया। कारण डूब से बाहर बताए गए गांव और धार्मिक स्थल डूब में आ गए। इसके बाद प्रशासन ने सभी के पुनर्वास की बात कही। आज तक इसमें कुछ नहीं हुआ। अफसरों की मानें, तो नए परिक्रमा पथ का प्रस्ताव ही नहीं बन सका। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 2 दिसंबर 2024 को ओंकारेश्वर में आयोजित ब्रह्मपुरी घाट पर आयोजित “अमृतस्य मां नर्मदा पद परिक्रमा कार्यक्रम” में कहा था कि नर्मदा परिक्रमा का पथ विकसित किया जाएगा। यात्रा मार्ग में आश्रय भी बनाए जाएंगे, ताकि यात्री यहां आराम कर सकें। मां नर्मदा पद परिक्रमा बड़ी यात्रा होती है। ऐसे में नर्मदा परिक्रमा पथ को सुदृढ़ किया जाएगा। इसके लिए पांच मंत्रियों की समिति बनाई जाएगी, ताकि यह काम तेजी से किया जा सके।
शूलपाणी मार्ग पर सबसे ज्यादा परेशानी
नर्मदा समिति के अध्यक्ष संजय पुरोहित का कहना है कि बड़वानी मुख्यालय से भवति गांव के बाद शूल पाणी क्षेत्र शुरू होता है। इसमें बिजासन, बोरखेड़ी, कुली, घोंगसा, खेरवानी, सेमलेट, भादल गांव आता है। इसके बाद झरकल नदी पार करते ही महाराष्ट्र की सीमा लग जाती है। संजय बताते हैं कि इन गांवों में भवति से बोरखेड़ी तक पहाड़ी रास्तों पर भी डामर की सडक़ है। बोरखेड़ी से कुली गांव तक कच्चा मार्ग और कुली, घोंगसा से खेरवानी तक केवल पगडंडी है। कई श्रद्धालु इन पहाड़ी रास्तों से गिरकर घायल हो चुके हैं। कुछ की मौत भी हो चुकी है। इस मार्ग को प्रधानमंत्री सडक़ योजना से जोडक़र बनाया जा सकता है। इन ग्रामों में परिक्रमा वासियों के रुकने की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है।
प्रशासन ने ठहरने तक का इंतजाम नहीं किया
सामाजिक कार्यकर्ता राहुल यादव बताते हैं कि बड़वानी जिले में नर्मदा का आगमन ब्राह्मण गांव से होता है, जो कि भादल तक रहता है। बड़वानी जिले में नर्मदा भक्त ठीकरी से प्रवेश करते हैं। दुर्भाग्य यह है कि प्रशासन की ओर से इन भक्तों के ठहरने के लिए कहीं पर भी व्यवस्था नहीं की गई है। बड़वानी के राजघाट पर धर्मशाला बैकवॉटर में डूब गया। इस कारण परिक्रमा यात्री मंदिर या निजी संसाधन जुटाकर रात गुजारते हैं। हर साल यही स्थिति देखने को मिलती है।
स्थानीय लोग करते हैं खाने- ठहरने की व्यवस्था
सरकार व्यवस्थित परिक्रमा मार्ग या पथ आज तक नहीं बना पाई। ऐसे में परिक्रमा करने वालों को खेतों, जंगलों, ऊबड़-खाबड़ पहाडिय़ों व पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता है। खाने-पीने बैठने के उचित इंतजाम नहीं होने से नर्मदा तटों पर रहने वाले लोग ही परिक्रमा करने वालों के लिए सभी व्यवस्थाएं करते हैं। सरकारी संस्थाएं भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहीं। पूरी परिक्रमा जन सहयोग, जंगल एवं गांव आश्रमों के भरोसे होती है। परिक्रमा वासियों के ठहरने के इंतजाम सदियों से आश्रम, समाजसेवी, नर्मदा परिक्रमा मार्ग में रहने वाले गृहस्थों के भरोसे ही चल रही है। कई बार विपरीत परिस्थितियों में खासकर महिलाओं को परेशानी का सामना उठाना पड़ता है।
सैकड़ों आश्रम, अन्न क्षेत्र भी खत्म हो गए
पहले बड़वानी जिले में नर्मदा परिक्रमा पथ पर हर 5 से 7 किमी की दूरी पर नर्मदा किनारे बसे गांवों में संतों के आश्रम, अन्न क्षेत्र बनाए गए थे। परिक्रमा करने वालों के लिए आश्रम, अन्न क्षेत्र में रात रुकने और भोजन की व्यवस्था भी की जाती थी, लेकिन बैकवॉटर कई आश्रम और अन्न क्षेत्र जलमग्न हो गए। बड़वानी जिले के ठीकरी से लेकर भादल तक नर्मदा पथ पर अन्न क्षेत्र और आश्रम डूबने से परिक्रमा करने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि नर्मदा के बैकवॉटर किनारे आज भी कई आश्रम और अन्न क्षेत्र में सेवा दी जा रही हैं।