
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत जनजातीय और पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देने की प्रक्रिया लगातार चल रही है। वन अधिकार अधिनियम के तहत अब तक प्रदेश के 792 वन ग्रामों को राजस्व ग्राम का दर्जा दिया जा चुका है। इसके लिए जिला कलेक्टर्स द्वारा आवश्यक अधिसूचनाएं जारी की गई हैं, जिससे वनवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेना और भी सुगम हुआ है। केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के निर्देश पर प्रदेश में सभी जिलों का एफआरए एटलस भी तैयार कर लिया गया है। इस एटलस की सहायता से सामुदायिक वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के कार्यों को सुचारू बनाया जा रहा है।
वहीं प्रदेश में अब तक 2,75,352 से अधिक व्यक्तिगत और 29,996 सामुदायिक वन अधिकार दावों को स्वीकृति दी जा चुकी है। इन दावों का निराकरण पात्रता अनुसार विधिक प्रक्रिया के अनुसार किया गया है। प्रदेश में अब तक 55,357 वन अधिकार पत्र धारकों को कपिलधारा कूप, 58,796 को भूमि सुधार, 61,054 को प्रधानमंत्री आवास, और 1,86,131 को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ दिया जा चुका है। इसके अलावा, 21,514 वन अधिकार पत्र धारकों को किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना से भी जोड़ा गया है।
वन अधिकार अधिनियम की अहमियत
वन अधिकार अधिनियम 2006 का उद्देश्य जनजातीय समुदायों और पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को संरक्षित करना है। यह अधिनियम वनवासियों को उनके पुश्तैनी निवास, कृषि भूमि, और जंगल के संसाधनों जैसे लकड़ी, फल, और जड़ी-बूटी पर मालिकाना हक प्रदान करता है। इसके तहत, ग्राम सभा दावों की पुष्टि करती है और उन्हें मंजूरी देती है। वन अधिकार अधिनियम से वनवासियों को अपने पारंपरिक जीवन और संस्कृति को सुरक्षित रखने में मदद मिली है। मप्र वन विभाग अब जंगल को पूरी तरह से डिजिटल करने में जुटा हुआ है। इससे जंगल में होने वाली कोई भी घटना की जानकारी तत्काल उच्च अधिकारियों तक पहुंच जाएगी। दावा किया जा रहा है कि इससे जंगल में होने वालें अतिक्रमण, अवैध कटाई, अवैध उत्खनन, अवैध शिकार सहित अन्य घटनाओं में कमी आएगी। पौधारोपण में होने वाली गड़बड़ी भी इससे कम होगी। जंगल को पूरी तरह से डिजिटल करने के साथ ही मैपिनर साफ्टवेयर की मदद से पौधारोपण के नक्शे भी तैयार किए जा रहे है। इससे हर साल होने वाले वृक्षारोपण की तस्वीर साफ दिख जाएगी। इस साफ्टवेयर में कई तरह के फीचर है। लाईन फीचर, पाइंट फीचर, पालिगान फीचर सहित अन्य कई तरह की तकनीकी खूबियां है। इस साफ्टवेयर के जरिए जंगल की पूरी गतिविधि पर कर्मचारी नजर रख सकते हैं। जंगल में होने वाले वन अपराधों को भी रोका जा सकता है।
डिजिटल किया जा रहा रिकॉर्ड
अब 792 वन ग्रामों का डिजिटल रिकॉर्ड प्रदेश स्तर पर तैयार किया जा रहा है। इससे वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदलने से वन ग्रामों के निवासियों को भूमि का कानूनी अधिकार मिलेगा, जिससे वे अपनी जमीन पर खेती कर सकेंगे और उसे बेच सकेंगे। राजस्व ग्राम बनने के बाद, वन ग्रामों के निवासी सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे, जैसे कि प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्वला योजना, जिनका लाभ अभी यहां के निवासियों को नहीं मिल पा रहा है। राजस्व ग्राम बनने के बाद, वन ग्रामों में विकास कार्य जैसे सडक़, बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल आदि आसानी से शुरू हो सकेंगे। अभी इन कामों के लिए वन विभाग की अनुमति लेना होती है। वन ग्रामों की सार्वजनिक संपत्तियां, जैसे कि सामुदायिक भवन, श्मशान भूमि, तालाब, सडक़, धार्मिक स्थल आदि, ग्राम पंचायत को हस्तांतरित हो जाएंगे। इस परिवर्तन से वन ग्रामों के निवासियों का जीवन स्तर बेहतर होगा और वे विकास की मुख्य धारा से जड़ पाएंगे।
नहीं हो रहा था पट्टों का नवीनीकरण
अब वनग्रामों की वनभूमि में रहने वालों के पटटी का नवीनीकरण नहीं हो पा रहा है था। मप्र सरकार ने 1976 तक के पात्रो को 15 साल के पट्टे दिए थे। इनकी अवधि 1992 में समाप्त होने पर 1996 में इन पट्टों का नवीनीकरण किया गया। इनकी अवधि 2007 में समाप्त होने पर पट्टों के नवीनीकरण के लिए भारत सरकार पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को कई बार भेजा जा चुका है, लेकिन नवीनीकरण की स्वीकृति अब तक नहीं मिल पा रही थी। ऐसे वन ग्राम जो राजस्व ग्राम में परिवर्तित हो गए है। अब उनको सभी प्रकार की सुविधाएं मिल सकेंगे। प्रदेश के जंगलों में स्थित वन ग्रामों को राजस्व गांव बदलने के लिए डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को इतनी ही राजस्व भूमि वन विभाग को स्थानांतरित करने की सहमति पहले ही बन चुकी थी। यही नहीं, वन संरक्षण एक्ट के अंतर्गत वन भूमि को डिनोटिफाई करने से पहले राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से अनुमति भी लेनी होती है। ये सब प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदलने की अधिसूचनाएं जिला कलेक्टरों द्वारा जारी की जा चुकी है।