
अवधेश बजाज कहिन
साल 2023 के अस्ताचल वाले शीतकाल में मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले डॉ. मोहन यादव इस घटनाक्रम के बाद से अब तक तमाम लिहाज से कभी बहुत अलग तो कहीं बहुत खास रूप में दिखाई दे चुके हैं। कुछ खांचों में विभक्त करने के नजरिए से कई बातें ध्यान खींचती हैं । यादव ने मुख्यमंत्री के रूप में कई विशेष उपलब्धियां अपने खाते में दर्ज की हैं। वो कठोर फैसले लेने में साहस और साहस के साथ आगे बढ़ने में कठोर संकल्प वाले अनेक उदाहरण प्रस्तुत कर चुके हैं। आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जो व्यक्ति देश, काल और परिस्थिति के अनुसार काम नहीं करता है, तो उसे सफलता नहीं मिलती है। इसलिए काम शुरू करने से पहले व्यक्ति को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि कार्य की सफलता की कितनी संभावना है। चाणक्य नीति के इस फ्रेम में जब आप डॉ. यादव को रखते हैं तो पाते हैं कि उन्होंने अपने लिए करने से पहले सोचने और करने के बाद पलट कर न देखने की स्व-निर्धारित आचार संहिता को जीवन के प्रत्येक अंग का अनिवार्य अनुशासन बना लिया है । पत्रकारिता के लंबे दौर में डॉ. यादव को छात्र नेता से लेकर विधायक, मंत्री और अब मुख्यमंत्री के तौर पर देखने से साफ है कि वह अपने परिवार से मिले संस्कार और संघ परिवार के सरोकार के अनुरूप ही आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं। इस सभी के अनेक पक्ष को बूझने के लिए एक-एक उदाहरण से बात सुभीते के साथ समझी जा सकती है । पद संभालने के तुरंत बाद सरकारी मशीनरी पर कुशल नियंत्रण यादव की उस सोच का परिचायक है, जो अधिकारियों को आम जनता के अधिकारों के प्रति बेहद संवेदनशील बनाने का ठोस आग्रह रखती है। इसके साथ ही उन्होंने संघ की सोच के अनुरूप सर्व समावेशी होने का भी परिचय दिया है । राज्य का हालिया बजट इसकी ताजा मिसाल है, जिसमें जनता पर कोई भी नया कर नहीं लगाया गया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों को डॉ. यादव ने अपने राज्य में जिस सफलता के साथ लागू किया है, वह भी बहुत अधिक गौरतलब है । क्योंकि ऐसा करने के लिए अपने सतत प्रयासों के चलते डॉ. यादव ने प्रधानमंत्री मोदी की मंशा के अनुरूप उनकी नीतियों को प्रभावी तरीके से अमली जामा पहनाया है। नवाचार से सुसज्जित योजनाएं बनाने के बाद उन पर सदाचार के अमल की दिशा में डॉ. यादव जिस सफलता के साथ आगे दिखते हैं, वो बताता है कि उन्होंने लकीर का फकीर बनने से परहेज किया है और साथ ही किसी अन्य की लकीर को छोटा करने जैसा भाव भी उनके भीतर नहीं है। अलबत्ता, वह खुद की अलग लकीर खींचने में यकीन रखते हैं और यह उनकी कार्यशैली का खास हिस्सा बन चुका है। मिसाल के तौर पर भोपाल में इसी साल हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को देख सकते हैं। भले ही यह अपनी तरह का पहला आयोजन न रहा हो, लेकिन यह जिस तरह हुआ और इसके चलते प्रदेश की आर्थिक स्थिति को लेकर भविष्य के जो अनंत शुभ संकेत दिख रहे हैं, उनसे साफ है कि डॉ. यादव इस समिट के मामले में भी औरों से बहुत हटकर सफल साबित हो रहे हैं। इस सबके बीच डॉ. यादव के जन्मदिन की चर्चा करें तो संक्षेप में एक बात कही जा सकती है। वो यह कि मामला उस मुख्यमंत्री का है, जो साल में एक बार जन्मदिन मनाने से अधिक आग्रह साल के एक-एक क्षण को कर्मदिन के रूप में मनाने में यकीन रखते हैं। ऐसा होता चला आ रहा है और होता भी जाएगा, क्योंकि यादव ने ऐसा होने के लिए अपनी सोच का पूरे विश्वसनीय तरीके से अनेक बार परिचय दे दिया है ।
