मोदी सरकार ने मप्र के 9 जलाशयों का किया रामसर साइट के लिए चयन

रामसर साइट

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा मप्र के नौ जलाशयों को अब दो दशक बाद रामसर साइट का दर्जा देने की तैयारी कर ली गई है। इसके लिए स्थानों का चयन कर उसकी सूची प्रदेश सरकार को भेजी जा चुकी है। अगर इन स्थानों को यह दर्जा मिल जाता है तो प्रदेश में ऐसी साइटों की संख्या बढ़कर दस हो जाएगी। फिलहाल प्रदेश की एक मात्र रामसर साइट का दर्जा भोपाल के बड़े तालाब को ही मिला हुआ है। उल्लेखनीय है कि इस साइट का दर्जा साल में आठ माह तक भरे रहने वाले उन जलाशयों को दिया जाता है, जहां पर जलप्रवाही पशु और पक्षियों के प्राकृतिक आवास होते हैं। इन साइटोंकी घोषणा एक अंतर्राष्ट्रीय संधि के तहत की जाती है।
 हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा इन साइटों के लिए स्वत: ही नौ स्थानों का चयन किया गया है। इसमें वारना रिजर्वायर रायसेन, दिहा हलया झील शिवपुरी, गांधी सागर मंदसौर, हलाली रिजर्वायर रायसेन, माधव नेशनल पार्क शिवपुरी, रातापानी सेंचुरी रायसेन, रंदावन छतरपुर , सिरपुर वेटलैंड इंदौर और यशवंत सागर इंदौर शामिल है। अब इनके लिए राज्य सरकार द्वारा प्रस्ताव तैयार कराकर उन्हें केन्द्र सरकार को भेजा जाना है। इसके लिए चार तालाबों का प्रस्ताव तैयार कर उसे प्रदेश सरकार द्वारा मंजूरी दी जा चुकी है। खास बात यह है कि जिन जलाशयों का चयन किया गया है उनमें से तीन तालाब वन विभाग, दो नगर निगम, और चार जल संसाधन विभाग के अधीन आते हैं। गौरतलब है कि इसके पहले तक मप्र की एकमात्र यह साइट भोपाल के बड़े तालाब के रुप में घोषित की गई थी। यह बात अलग है कि उसके संरक्षण पर अब तक करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं, लेकिन अब भी उसमें कई गंदे नाले और अतिक्रमण का सिलसिला नहीं थम पर रहा है। इस मामले में सरकार के साथ ही नगर निगम भी लापरवाह बना हुआ है। यही वजह है कि वर्ष 2002 में शुरू किए गए संरक्षण के काम के बाद भी अब तक वह पूरी तरह से संरक्षित नहीं हो सका है।
विश्व भर से मिलती है संरक्षण के लिए मदद
जिन झीलों या जलाशयों को रामसर साइट घोषित किया जाता है उनके संरक्षण के लिए विश्व स्तर से आर्थिक के अलावा अन्य कई तरह की मदद मिलती है। इससे उनका संरक्षण करना आसान हो जाता है। फिलहाल देश में इस तरह की 23 और पूरे विश्व में करीब दो हजार साइटें हैं। खास बात यह है कि प्रदेश के जिन जलाशयों का चयन किया गया है उनमें न केवल प्रवासी पक्षियों का आश्रय है , बल्कि उनमें कई संकटग्रस्त घोषित हो चुके जीव जंतुओं का भी आश्रय है।

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