आलाकमान के निर्देश पर… तैयार हो रही विधायकों की रिपोर्ट

  • गौरव चौहान
विधायकों की रिपोर्ट

मप्र में भाजपा प्रदेश की सभी 29 सीटों को जीतने के लक्ष्य पर काम कर रही है। लेकिन सांसदों के लिए हो रहे इस चुनाव में भाजपा के 163 विधायकों की भी परीक्षा हो रही है। परीक्षा ऐसी वैसी भी नहीं बल्कि अग्रिपरीक्षा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि आलाकमान ने विधायकों को पहले से ही सचेत कर दिया है कि यह चुनाव उनका भविष्य भी तय करेगा। यानी लोकसभा चुनाव के दौरान जिस विधायक के क्षेत्र में पार्टी को अधिक वोट प्राप्त होगा उसे बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है और जिसके क्षेत्र में कम वोट मिलेगा उसके पर कतरे जा सकते हैं। इसलिए इस चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों के साथ ही विधायकों ने भी अपना पूरा दमखम लगा रखा है। इधर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि लोकसभा के नतीजों पर भाजपा विधायकों का रिपोर्ट कार्ड बनेगा और विधायकों की सक्रियता पर अलग से रिपोर्ट बुलाई जाएगी। जिसके चलते पार्टी के विधायकों पर दबाव ज्यादा है और यह एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।
चुनाव बड़ा हो या छोटा भाजपा उसे युद्ध की तरह लड़ती है। वर्तमान लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अबकी बार 400 पार का नारा दिया है। इसलिए चुनाव सांसद चुनने का हो रहा है, लेकिन अग्नि परीक्षा के दौर से प्रदेश के विधायकों को गुजरना पड़ रहा है। ऐसा इसलिए कि भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने विधायकों को लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य दिया है। चुनाव बाद दोनों दल मिलने वाले मतों की विधानसभा वार समीक्षा करेंगे। विधायकों का यह परफॉर्मेंस उनके रिपोर्ट कार्ड में जोड़ा जाएगा। भाजपा विधायकों के सामने चुनौती ज्यादा बड़ी है, क्योंकि भाजपा प्रदेश में मिशन-29 के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रही है। इसलिए उन्हें विस चुनाव में मिली बढ़त को बरकरार रखना होगा। भाजपा जब से मोदी लहर पर सवार हुई है, तब से लोकसभा के दो चुनाव हुए हैं।
कम मतदान ने बढ़ाई चिंता
मप्र में अभी तक दो फेज में 12 सीटों पर मतदान हुआ है। दोनों फेज में 2019 की अपेक्षा कम मतदान हुआ है। कम मतदान ने पार्टी के साथ ही प्रत्याशी और विधायकों की चिंता बढ़ा दी है। वैसे मप्र में पिछले दो चुनावों से लोकसभा व विधानसभा के चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत बढ़ता और गिरता रहा है। जब विधानसभा का चुनाव होता है, तब भाजपा का मत प्रतिशत तकरीबन दस फीसदी से ज्यादा कम हो जाता है, लेकिन जब बारी लोकसभा चुनाव की आती है, तब पार्टी के वोट बैंक में जबरदस्त इजाफा हो जाता है। साल 2023 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो भाजपा को 48.55 फीसदी वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 40.40 फीसदी मत मिले थे। साल 2018 की तुलना में 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के मत प्रतिशत में तकरीबन 7 फीसदी का इजाफा हुआ था। इसका असर यह हुआ कि भाजपा की सीटों में जबरदस्त इजाफा हुआ और पार्टी के 163 विधायक जीत कर सदन में पहुंचे हैं।
मतों के हिसाब से तुलना करें, तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तुलना में भाजपा को 35,44,615 मतों की बढ़त हासिल है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस का मत प्रतिशत लगभग बराबर था। भाजपा को 41.02 प्रतिशत और कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत मत मिले थे। उसके बाद जब 2019 का लोकसभा चुनाव हुआ था, तब भाजपा को 58 फीसदी मत मिले थे, जबकि कांग्रेस को 38 फीसदी वोट मिले थे। वर्ष 2018 के विस चुनाव की तुलना में 2019 के लोस में भाजपा के मतों में तकरीबन 17 फीसदी का उछाल आया था। इसी वजह से पार्टी को 29 में से 28 सीटों पर जीत मिली थी।
विधायकों पर दारोमदार….
दो फेज में कम मतदान के बाद अब विधायकों पर पूरा दारोमदार आ गया है कि वे शेष बची सीटों पर मतदान बढ़ाने का अभियान चलाएं। इस बार के लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत में तेजी से गिरावट आई है। मतदान सभी सीटों पर कम है, लेकिन पहले चरण के मतदान में सबसे ज्यादा साढ़े 13 फीसदी मतों की गिरावट सीधी संसदीय क्षेत्र में आई है। उसके बाद से राजनीतिक पर्यवेक्षकों को भी सियासी दलों के नफा-नकुसान का आंकलन करने में पसीना आ रहा है। पहले चरण के मतदान के ठीक दूसरे दिन भाजपा के तमाम बड़े नेता सक्रिय हुए और विधायकों को अगले चरण के मतदान मेें मत प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य दिया है। कांग्रेस ने भी जिला अध्यक्षों को पत्र लिखकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है। अपने विधायकों से भी मतदाताओं को बाहर निकालने को कहा है। इस मामले में भाजपा विधायकों के सामने चुनौती ज्यादा है। ऐसा इसलिए कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है। वह 2019 के चुनाव में 29 में से 28 सीटें हार चुकी थी। अब उसे जो भी सीटें हासिल होंगी, उसमें उसका फायदा है। भाजपा की सियासत इसके इतर है, क्योंकि अगर वह अपने 29 सीटों के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाती है, तो उसे नुकसान उठाना होगा। लिहाजा खोना भाजपा को है। इसलिए भाजपा के विधायकों की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ गई है। पार्टी भी इसे भलीभांति समझती है, इसीलिए भाजपा ने विधायकों के मामले में सख्ती दिखाई है।
विधायकों ने खोले कार्यालय
लोकसभा चुनाव में दोनों ही पार्टी के विधायकों पर दबाव बनने लगा हैं कि क्या वे जितनी लीड से स्वयं जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं लोकसभा में अपनी-अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को उससे ज्यादा लीड दिलवा पाएंगे या नहीं? इसे लेकर सभी विधायक गंभीर हैं। लगातार पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक ले रहे हैं और कार्यक्रमों में जा रहे हैं। अब लोकसभा चुनाव में इन जीते विधायक अपनी-अपनी पार्टी के लिए कितने अधिक लाभकारी साबित होंगे, यह तो लोकसभा के परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा। फिलहाल भाजपा के विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के लिए कार्यालय खोल लिए हैं। इसके माध्यम से वे अपने पार्टी प्रत्याशी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। यहां पर भाजपा नेता- कार्यकर्ताओं की बैठक भी ले रहे हैं।

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