
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। दमोह जिले की पथरिया विधानसभा सीट प्रदेश की उन सीटों में शामिल है, जहां पर मतदाता हर विधानसभा चुनाव में अपने विधायक का चेहरा बदल डालता है। इस सीट पर हमेशा से जातिगत आधार पर ही विधायक का निर्वाचन होता है, फिर मुद्दा कितना भी बड़ा ही क्यों न हो।
इस समीकरण के चलते ही बीते चुनाव में बसपा से रामबाई भी चुनावी वैतरणी पार करने में सफल हो चुकीं हैं। वे इस बार भी चुनावी मैदान में हैं। इस सीट पर बीते पांच दशक का यही इतिहास है। इस बार इस सीट पर 17 प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि बीते चुनाव में 21 प्रत्याशी मैदान में थे। पिछले चुनाव में कांग्रेस एवं भाजपा दोनों दलों में बगावत हुई थी, जिसका फायदा रामबाई को मिला था। तब भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया एक साथ दमोह एवं पथरिया से निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर गए थे, जिससे भाजपा को इन दोनों ही सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। यह बात अलग है कि कुसमारिया भी दोनों जगहों पर हार गए थे। इस सीट पर इस बार रामबाई के अलावा कांग्रेस से राव बृजेंद्र सिंह, भाजपा से लखन पटेल चुनावी मैदान में है, जिसकी वजह से मध्य त्रिकोणीय संघर्ष हो रहा है।
बीते तीन चुनाव से सामान्य है सीट
इस सीट पर पहला चुनाव 1967 में कांग्रेस प्रत्याशी भाव सिंह ने जीता था। उसके बाद के चुनावों में एक बार जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी , लेकिन उसके बाद दो चुनावों में फिर कांग्रेस जीत दर्ज करती रही। 1990 में भाजपा ने यहां पर पहली बार जीत दर्ज की थी,तब भाजपा के विधायक मणि शंकर सुमन बने थे। इसके बाद 1993 में कांग्रेस को फिर जीत मिली थी, लेकिन इसके बाद से लगातार इस सीट पर भाजपा 2013 तक जीतती रही है। बीते चुनाव में बीएसपी की रामबाई सिंह परिहार ने इस विजयी रथ को रोका दिया। पहले यह सीट आरक्षित रही। 2008 में सामान्य हो गई। जिससे यहां जातिगत समीकरणों के आधार पर प्रत्याशी चुनाव जीतने लगे। इस सीट पर इसमें सबसे ज्यादा दलित, कुर्मी पटेल एवं लोधी वर्ग की मुख्य भूमिका होती है।
चेहरा बदला और मिलती रही जीत
लगातार 4 चुनाव और 20 साल से पथरिया की सीट पर भाजपा का कब्जा था। भाजपा यहां लगातार नए चेहरे को मैदान में उतारती थी और चुनाव जीतने में सफल रहती थी, लेकिन 2018 में भाजपा का ये किला चतुष्कोणीय संघर्ष के कारण ढह गया और बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरी रामबाई परिहार अप्रत्याशित तरीके से चुनाव जीत गयी।
समृद्ध इतिहास है पथरिया का
इस बार यहां पर बीजेपी अपनी पुरानी सीट हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस बीजेपी के गढ़ मानी जाने वाली विधानसभा में सेंध लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। मध्यप्रदेश में पत्रकारिता के पितृ पुरुष के तौर पर जाने वाले माधवराव सप्रे की जन्मस्थली पथरिया की सबसे बड़ी पहचान है। पथरिया आज भले ही एक छोटी सी नगर परिषद है, लेकिन एक समय बुंदेलखंड का प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था, पथरिया की असलाना नाम की बस्ती की पहचान करीब 3 सौ साल पहले कुटीर उद्योग और हस्तशिल्प के बड़े केंद्र के रूप में जाना जाता था। पथरिया दमोह जिला का रेलवे स्टेशन, नगर व तहसील है। यहां प्रमुख तौर पर हिंदू, मुस्लिम और जैन समुदाय के लोग निवास करते हैं। पथरिया से 10 किलोमीटर की दूरी पर सतपारा में सीमेंट पत्थर की खदानें है और पथरिया के नरसिंहगढ़ में सीमेंट फैक्ट्री भी है।