
- खजाना भी हुआ खाली …
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। वित्त वर्ष समाप्त होने के साथ ही स्मार्ट सिटी मिशन का समापन 31 मार्च को हो गया है। केन्द्र के शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा चलाए गए स्मार्ट सिटी मिशन का समापन 31 मार्च 2025 को हो गया। यह मिशन जून 2015 में शुरू हुआ था, अब 100 शहरों को कवर करने के लिए निर्धारित था, लेकिन 10 सालों में तीन बार डेडलाइन बढ़ाने के बावजूद केवल 16 शहरों में ही मिशन के तहत सभी प्रोजेक्ट्स पूरे हो पाए हैं। इस प्रोजेक्ट में मप्र की राजधानी भोपाल समेत सात शहरों, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, सतना, सागर, और उज्जैन शामिल हैं। सरकार का दावा है कि जिन 16 शहरों में स्मार्ट सिटी का काम 100 प्रतिशत पूरा हुआ है उनमें मप्र का जबलपुर शामिल है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत सतना में 259 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट भी अधूरे रहे। स्मार्ट सिटी मिशन के समापन के साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि अब स्टाफ का भविष्य क्या होगा। गौरतलब है की मप्र के सातों शहरों में कार्यालय का निर्माण भी कराया गया है। इन कार्यालय में कई बड़े अधिकारियों के साथ ही निचले स्तर के अधिकारी और कर्मचारी भी बड़ी संख्या में नियुक्त हैं और सवाल यह उठ रहा है कि स्मार्ट सिटी में जो लोग काम कर रहे हैं और स्मार्ट सिटी का जब काम बंद हो जाएगा तो अभी जो लोग कार्य कर रहे हैं उनके भविष्य का क्या होगा।
1400 करोड़ में बुनियादी सुविधाएं भी नहीं
स्मार्ट सिटी मिशन का मकसद था कि शहरों में स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर और स्मार्ट सुविधाएं विकसित करना। पिछले 10 सालों में भोपाल स्मार्ट सिटी कंपनी ने इस मकसद के लिए मिले करीब 1400 करोड़ रुपए में से 1351.88 करोड़ रुपए खर्च कर डाले, लेकिन कुछ भी स्मार्ट नहीं हुआ। यहां तक कि 342 एकड़ के टीटी नगर एबीडी (एरिया बेस्ड डेवलपमेंट) में बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी खड़ी नहीं हो पाई हैं। स्मार्ट सिटी कंपनी को केंद्र और राज्य सरकार से 500-500 करोड़ रुपए मिले थे। इसके साथ कंपनी ने एबीडी एरिया में प्लॉट बेचकर 400 करोड़ कमाए। इन 1400 करोड़ रुपयों में से बड़ा हिस्सा यानी 663.27 करोड़ रुपए जिम्मेदारों ने ऐसे कामों पर खर्च कर दिया जो स्मार्ट सिटी के थे ही नहीं। इनमें भी सबसे ज्यादा 471 करोड़ रुपए सरकारी कर्मचारियों के लिए मकान बनाने के प्रोजेक्ट पर खर्च किए गए, जबकि स्मार्ट सिटी के मूल प्रोजेक्ट में इसका प्रावधान ही नहीं था। इसके अलावा नगर निगम और बीडीए के हिस्से के प्रोजेक्ट्स पर भी 192.27 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। जिस तरह पैसा खर्च हुआ, उससे साफ है कि बिना किसी विजन के सिर्फ बजट ठिकाने लगाने का काम किया गया। दरअसल, स्मार्ट सिटी डेवलप करने के लिए सरकार ने 342 एकड़ जमीन कंपनी को दी। लेकिन इसमें से लगभग 150 एकड़ जमीन स्कूल, अस्पताल, स्टेडियम और कई धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं को आवंटित है। हकीकत में स्मार्ट सिटी कंपनी को 200 एकड़ जमीन ही मिली। जिस इलाके को खाली कराया गया, वहां तेजी से अतिक्रमण हो रहा है।
सरकारी मकानों पर 471 करोड़ खर्च
शिवाजी नगर में स्मार्ट सिटी के विरोध के बाद जब टीटी नगर में स्मार्ट सिटी डेवलप करने की प्लानिंग हुई तो वहां भी विरोध और आंदोलन शुरू हो गया। सरकार ने घोषणा कर दी कि स्मार्ट सिटी एरिया में सरकारी मकान बनाकर दिए जाएंगे। वहां 3100 एफ, जी, एच और आई टाइप सरकारी मकान खाली कराए गए थे। उस वादे को पूरा करने के लिए तीन चरणों में 2828 मकान बनाने का प्रोजेक्ट मंजूर किया गया। फेज-1 में होटल पलाश के सामने 730 फ्लैट के 6 टॉवर 200 करोड़ से बनाने का काम शुरू हुआ। अब तक 220 करोड़ खर्च और छठवां टॉवर निर्माणाधीन है। अब तक सिर्फ 364 फ्लैट आवंटित किए जा सके हैं। फेज-2 में नूतन सुभाष स्कूल के पास 314.14 करोड़ से 12 हाईराइज टॉवर में 1344 सरकारी मकान बनाने का फैसला लिया गया। इस पर 80 करोड़ खर्च हो गए और प्रोजेक्ट बीच में बंद कर दिया गया। वास्तव में पेमेंट की दिक्कत होने के कारण कांट्रेक्टर ने बीच में काम बंद कर दिया। फेज-3 में 228 क्वार्टर के समीप 754 मकान बनाए जाने थे। लेकिन यह जमीन स्टैंडर्ड पब्लिक स्कूल के नाम से लीज पर है। पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता इस समिति के संचालक हैं। यहां काम शुरू नहीं हुआ है। वहीं बीडीए ने लक्ष्मीगंज गल्लामंडी के स्थान पर महालक्ष्मी परिसर बनाया। बुकिंग कम हुई तो कांट्रेक्टर को भुगतान के लिए बजट नहीं था। ऐसे में 2017-18 में स्मार्ट सिटी कंपनी ने 566 में से 551 फ्लैट खरीदे। 190 करोड़ में से 171 करोड़ का भुगतान किया।