
- हर मुद्दे पर सक्रियता निभा रहे हैं जेवी..
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने अभी से मिशन 2028 की तैयारी शुरू कर दी है। इस कड़ी में भाजपा ने हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी है। वहीं संभावना जताई जा रही है कि चुनावी बेला में कांग्रेस में भी नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति होगी। ऐसे में कई कांग्रेस नेताओं ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। लेकिन पूर्व मंत्री और विधायक जयवर्धन सिंह की सक्रियता को अगामी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में देखी जा रही है। जानकारों का कहना है कि जयवर्धन की नजर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर है।
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी इन दिनों सरकार पर हमलावर बनी हुई है। विधानसभा सत्र के दौरान सदन के अंदर और बाहर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई जा रही है। इस बीच पार्टी में राघौगढ़ विधायक एवं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह की सक्रियता की भी चर्चा है। हाल ही में दो बड़े घटनाक्रमों में जयवर्धन सिंह ने बढ़-चढकऱ हिस्सा लिया था। इस सक्रियता में उनके पिता दिग्विजय सिंह भी भरपूर सहयोग कर रहे हैं। जयवर्धन सिंह की सक्रिया को अगले प्रदेशाध्यक्ष से जोडकऱ देखा जा रहा है। क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव से पहले मप्र कांग्रेस को नया मुखिया मिल सकता है। जिसके लिए जयवर्धन सिंह दावेदारी कर सकते हैं।
राजनीतिक घरानों में सबसे सक्रिय जयवर्धन
मप्र कांग्रेस की राजनीति में घरानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनमें अजय-अर्जुन सिंह, अरुण-सुभाष यादव, नकुल-कमलनाथ और जयवर्धन-दिग्विजय सिंह के प्रमुख हैं। इन सभी राजनीतिक परिवारों के सदस्य कांग्रेस पार्टी में पदाधिकारी हैं या विधायक, सांसद हैं। इनमें सबसे ज्यादा सक्रिय जयवर्धन दिग्विजय घराना है। कुछ दिन पहले तक जयवर्धन सिंह के सगे चाचा (काका) लक्ष्मण सिंह कांग्रेस में थे, लेकिन उन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अब राघौगढ़ घराने से जयवर्धन सिंह एक मात्र ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस में सक्रियता बढ़ा रहे हैं। वहीं कांग्रेस के दूसरे बड़े राजनीतिक परिवारों में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह पहले की तरह ज्यादा सक्रिय नहीं है। खासकर जीतू पटवारी के प्रदेशाध्यक्ष बनने के बाद से उन्होंने प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय से ही दूरी बना ली है। वे सीधी जिले की चुरहट से विधायक हैं, लेकिन विधानसभा में भी पहले की अपेक्षा न तो ज्यादा आक्रामक हैं और न ही सक्रिय हैं। इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पार्टी की मतिविधियों से ज्यादा सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। उनके पूर्व सांसद बेटे मकुल नाथ भी कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रमों में ज्यादा हिस्सा नहीं लेते हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद नकुलनाथ ने खुद को छिंदवाड़ा तक ही सीमित कर लिया है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते कमलनाथ भोपाल आते रहते हैं। जहां वे पार्टी नेता और अपने समर्थकों से मुलाकात करते हैं। जबकि पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव के दोनों बेटे अरुण यादव और सचिन यादव भी कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में है। खास बात यह है कि बेशक जीतू पटवारी पिछड़े वर्ग से आते हैं और प्रदेशाध्यक्ष हैं। लेकिन कांग्रेस में ओबीसी का बड़ा चेहरा अभी भी अरुण यादव ही हैं। अरुण यादव को केंद्रीय नेतृत्व ने हाल ही में पार्टी की ओबीसी की राष्ट्रीय कमेटी का सदस्य बनाया है। उनके भाई सचिन यादव अपनी परंपरागत सीट कसरावद से विधायक हैं। हालांकि वर्तमान में दोनों भाई कांग्रेस में उतने सक्रिय नहीं है, जितने पहले थे।
सिंधिया की काट जयवर्धन
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनौती देने के लिए कांग्रेस पूर्व मंत्री और विधायक जयवर्धन सिंह पर दांव लगाने की रणनीति पर काम कर रही है। सूत्रों का कहना है कि ग्वालियर-चंबल अंचल के साथ ही पूरे प्रदेश में सिंधिया के सामने जयवर्धन को चुनौती के रूप में खड़ा किया जाएगा। जयवर्धन सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों का ही संबंध राजपरिवार से है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर रियासत के महाराज हैं तो जयवर्धन सिंह राघौगढ़ राजघराने से संबंध रखते हैं। दोनों का ग्वालियर-चंबल की राजनीति में अच्छा खासा प्रभाव है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोडकऱ भाजपा में शामिल होने के बाद इस इलाके में कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है ऐसे में कांग्रेस जयवर्धन सिंह पर दांव लगा सकती है। कांग्रेस छोडकऱ भाजपा में आने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद बढ़ा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी सरकार में दूसरी बार केंद्रीय मंत्री हैं। उन्हें दूरसंचार विभाग का मंत्री बनाया गया है। इसके साथ ही सिंधिया के कई समर्थक विधायक मोहन यादव की कैबिनेट में मंत्री हैं। हाल ही में भाजपा ने जिला अध्यक्षों की घोषणा की है। इसमें सिंधिया समर्थक कई नेताओं को जगह मिली है।