मिशन 2023: शिव बनाम नाथ

 शिव बनाम नाथ
  • भाजपा शिवराज के चेहरे और आत्मनिर्भर मप्र के मॉडल के साथ
  • मिशन-2023 के लिए कांग्रेस में सब साथ-साथ!

मप्र में करीब 19 माह बाद विधानसभा चुनाव का बिगुल बजेगा। लेकिन इससे पहले ही भाजपा और कांग्रेस ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी, वहीं कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को चेहरा बनाया है। यानी मिशन 2023 का घमासान शिव बनाम नाथ में होगा।


प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)।
उप्र, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में मिली शानदार जीत के बाद भाजपा ने इस साल के आखिर और 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्लानिंग शुरू कर दी है। इस साल होने वाले चुनावों के साथ ही छत्तीसगढ़ और राजस्थान में साल 2023 में होने वाले चुनावों में भाजपा का चेहरा पीएम नरेंद्र मोदी ही होंगे, जबकि मप्र में शिवराज सिंह चौहान चुनावी चेहरा बनेंगे। इसकी पुष्टि पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने भी की है। वहीं कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर विश्वास जताया है और प्रदेश के नेताओं ने उनके चेहरे पर चुनाव लडऩे की घोषणा की है।
भाजपा और कांग्रेस के चुनावी चेहरों को देखकर यह साफ है कि मिशन 2023 शिवराज के 15 साल के शासनकाल बनाम कमलनाथ 15 माह के शासनकाल के बीच होगा। मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास लगातार 4 बार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड है। अपने अब तक के 15 साल के कार्यकाल में उन्होंने विकास का ऐसा पहाड़ खड़ा किया है, जिसकी कांग्रेस कल्पना भी नहीं कर सकती है। प्रदेश में सत्ता और संगठन पूरी तरह शिवराज के साथ है। जबकि कांग्रेस में स्थिति अलग है। यहां आज भी पार्टी विभिन्न गुटों में बंटी हुई है। हालांकि चुनावी बेला में कमलनाथ ने एकता की कोशिश की है, लेकिन उसकी संभावना कम नजर आ रही है।
शिवराज की उपलब्धियों की भरमार
चौथी पारी में शिवराज सिंह चौहान ने आत्मनिर्भर मप्र का नारा दिया है। यानी 2023 के चुनावी शंखनाद से पहले वे प्रदेश को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे निरंतर योजनाएं-परियोजनाएं बनवा रहे हैं और उन्हें क्रियान्वित करवा रहे हैं। अभी हाल ही में दो दिन तक सतपुड़ा की खूबसूरत वादियों में मंथन करने के बाद अब टीम शिवराज चुनावी मोड पर आ गई है। दो दिन चले मंथन में शिवराज सरकार का पूरा फोकस मिशन-2023 पर रहा। पचमढ़ी चिंतन बैठक के बाद एक बात साफ हो गई है कि शिवराज सरकार अब पूरी तरह इलेक्शन मोड पर है और भाजपा 2023 का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ही चेहरे पर ही लडऩे जा रही है। चिंतन बैठक में तय किया गया कि शिवराज सरकार के पिछले कार्यकाल की फ्लैगशिप योजनाओं जैसे मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, लाडली लक्ष्मी योजना के साथ-साथ तीर्थ दर्शन योजना को फिर से लांन्च किया जाएगा। इसके साथ सीएम राइज स्कूल योजना जिसकी तारीफ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके है को भी नए शिक्षण सत्र से प्रारंभ करने का फैसला किया गया।
मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना को 21 अप्रैल से फिर से नए स्वरूप में प्रारंभ किए जाएंगा। कन्या विवाह के आयोजन की राशि को 51 हजार से बढ़ाकर 55 हजार रुपए किया जा रहा है। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले समारोह का विकासखंड के स्तर पर पहले से तिथि तय की जाएगी, प्रचार-प्रसार किया जाएगा। इसके साथ कोरोना के चलते बंद मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना को 18 अप्रैल से शुरु करने का निर्णय लिया गया। अप्रैल में गंगा स्नान, काशी कारीडोर, संत रविदास और कबीरदास के स्थलों के दर्शन के साथ योजना शुरु होगी। इसके साथ तीर्थ दर्शन यात्रा में मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्री भी ट्रेन में तीर्थ यात्रियों के साथ जायेंगे। ट्रेन में बोगी में स्पीकर सिस्टम के माध्यम से तीर्थ स्थलों की विस्तृत जानकारी दी जाएगी। इसके साथ तीर्थ दर्शन यात्रा के कुछ स्थलों को हवाई तीर्थ दर्शन यात्रा से भी जोड़े जाने का फैसला किया गया है।
पचमढ़ी बैठक में शिवराज जिस आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दिए वह यह बतात है कि उनको केंद्र की तरफ से हरी झंडी मिल चुकी है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का लगातार मध्यप्रदेश के कार्यक्रमों में वर्चुएल और एक्चुअल रूप से शामिल होना और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तारीफ करना भी इस बात के संकेत है कि भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव में मोदी और शिवराज के चेहरे के साथ उतरने की पूरी तैयारी कर चुकी है। पचमढ़ी चिंतन बैठक में शिवराज ने जिस आत्मविश्वास आने वाले समय में कार्यक्रमों का रेखाचित्र खींचा वह यह बताता है कि वह मध्यप्रदेश को देश भर में एक ख़ास पहचान प्रदान करने के लिए पूरी तरह संकल्पित है। दरअसल सरकार की योजना और कार्यक्रम ही नहीं,बल्कि उन पर अमल के लिहाज से भी शिवराज राज्य में अपने लगभग सभी पूर्ववर्तियों से काफी आगे हैं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण पक्ष यह कि चौहान ने नवाचार पर सर्वाधिक जोर दिया है। उनकी उपलब्धियों के खाते के वृहद आकार में इसी बात का सबसे बड़ा योगदान रहा है। ऐसे में जब शिवराज सिंह चौहान देश में भाजपा के सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बना चुके है तब वह अपने नेतृत्व में मध्यप्रदेश की भाजपा शासित राज्य की एक ऐसी छवि बनाना चाह रहे है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ की कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरता हो।
सबका साथ-चेहरा कमलनाथ
प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पूरी तरह एक्शन मोड में आ गई है। गतदिनों प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के आवास पर आयोजित पार्टी नेताओं की बड़ी बैठक में विधानसभा चुनाव की रूपरेखा तय कर एक बड़ा निर्णय लिया गया। बैठक में सभी नेताओं ने एकजुट होकर तय किया कि प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कमलनाथ के नेतृत्व में ही मैदान में उतरेगी। कमलनाथ ने विगतदिनों प्रदेश के सभी दिग्गज नेताओं और पूर्व मंत्रियों को रात्रिभोज पर आमंत्रित किया था। यहां अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की रणनीति पर मंथन किया गया। बैठक में सभी नेताओं ने एक सुर में कमलनाथ के नेतृत्व में भरोसा जताया और तय किया कि आगामी विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ही कांग्रेस का चेहरा होंगे। इसके साथ ही प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व को लेकर चल रही अटकलों पर पूरी तरह से विराम लग गया। प्रदेश में भाजपा के मज़बूत संगठन से मुकाबला करने के लिए यह जरूरी भी है कि कांग्रेस में चुनाव से पहले किसी तरह के संशय में न रहे। चेहरे को लेकर चली दुविधा और विवाद के चलते ही पंजाब में पार्टी को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाए थे।
ऐसे में चुनाव से 18 महीने पहले ही कमलनाथ का चेहरा तय होना पार्टी के लिए बेहतर नतीजे देने वाला साबित हो सकता है। चेहरा तय होने के बाद पार्टी ने अब शिवराज सरकार की नीतियों पर मुखर होकर जनता के बीच जाने का फैसला लिया है। जनता से जुड़े मुद्दों का पूरी ताकत से उठाकर उनके साथ जनता को जोडऩे के लिए भी बैठक में मंथन हुआ।
बैठक में कमलनाथ ने भी जनता से जुडे मुद्दों को जन आंदोलन में बदलने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव में अब महज 18 महीने ही बचे हैं। ऐसे में पूरी ताकत से चुनाव की तैयारियों में जुटना होगा। उन्होंने प्रदेश की बदहाल आर्थिक स्थिति, भ्रष्टाचार, व्यापमं घोटालों से रोजगार खोते युवाओं, महंगाई से त्रस्त महिलाओं और किसानों के मुद्दों पर पूर्व मंत्रियों से व्यापक जन आंदोलन प्रारंभ करने को कहा। बैठक के बाद कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने भी कांग्रेस के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ के चेहरे के साथ ही उतरने की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि शिवराज सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनांदोलन की रूपरेखा तैयार कर ली गई है और अब विधानसभा चुनाव तक ये आंदोलन लगातार जारी रहेंगे। किांग्रेस के लिहाज से बैठक की सबसे अच्छी बात यह रही कि पार्टी में गुटबाजी की खबरों को प्रदेश के नेताओं ने ही खारिज किया। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने बैठक में कमलनाथ के नेतृत्व में ही चुनाव लडऩे की बात कही। वहीं अन्य वरिष्ठ नेताओं ने कमलनाथ द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारी पर खरा उतरने का भरोसा दिलाया।
शिवराज भाजपा के तुरुप का इक्का
कहानी उस नेता की जो पदयात्राओं के दम पर सियासत में छा गया। एक नेता जो संघ और बीजेपी का चहेता था, जिसे 2005 में पार्टी को एक सूत्र में बांधने का जिम्मा मिला। एक नेता जो देखते-देखते राजनीति का माहिर खिलाड़ी बन गया। एक नेता जो कुशाभाऊ ठाकरे, कैलाश जोशी, अटल, आडवाणी से लेकर मोदी और शाह का भी करीबी बना। एक नेता जिसके सामने बौने पड़ गए दिग्गज और महारथी जैसे शब्द। कहानी उस नेता कि जिसे शिव का आशीर्वाद मिला और मध्यप्रदेश में कर रहा है राज। हम बात कर रहे हैं जैत गांव में किसान के घर जन्मे शिवराज सिंह चौहान की। चौथी बार सीएम बनने के 2 साल पूरे कर चुके हैं। बतौर मुख्यमंत्री 15 साल से ज्यादा हो चुके हैं। बीते 5 मार्च को शिवराज सिंह चौहान 63 साल के हो गए हैं। यानि कि अपने जीवन में शिवराज का एक चौथाई हिस्सा सीएम हाउस में गुजरा है, राजनीतिक जीवन में सफलता के 50 साल पूरे किए हैं और ये पारी अभी जारी है।
एमपी के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने राजनीतिक फलक पर नया इतिहास रचा है। एमपी के पांव-पांव वाले भैया जिसके नाम बीजेपी में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड है और जो प्रदेश की जनता के दिलों पर राज कर रहा है। मामा की चौथी पारी को भी 2 साल हो गए हैं। ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे सीएम शिवराज ने इस मुकाम को हासिल किया। चौथी बार वो अचानक सत्ता तक कैसे पहुंचे। और आगे उनकी क्या रणनीति है।।? शिवराज के सामने आने वाला विधानसभा और लोकसभा चुनाव की चुनौती भी है। मिशन 2023 के लिए शिवराज सिंह चौहान ही एमपी में बीजेपी का सबसे भरोसेमंद चेहरा हैं।
2023 की तैयारियों में जुटी दोनों पार्टियां
मध्य प्रदेश में 2023 विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। क्योंकि अब चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं है, लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने सक्रियता बढाने के साथ अपने-अपने नेताओं को परफॉर्मेंस दुरस्त करने का अल्टीमेटम भी दे दिया है। बीते दिनों दोनों ही दलों में बैठकों का दौर चला और संगठन के कार्यक्रमों में ढिलाई बरतने वाले पदाधिकारियों को जमकर फटकार भी लगाई गई। ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में दोनों पार्टियों में इसका असर देखने को मिल सकता है। दरअसल, मध्य प्रदेश में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस बार चुनाव बेहद अहम माना जा रहा है कि ऐसे में सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी दल कांग्रेस कोई मौका नहीं छोडऩा चाहती है। बीजेपी जहां बूथ विस्तार अभियान और समर्पण निधि जैसे अभियानों के जरिए पार्टी को मजबूत करने में जुटी है, तो वहीं कांग्रेस भी घर चलो घर-घर चलों अभियान के जरिए पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में है। हाल ही में बीजेपी ने बड़ी बैठक की थी, जिसमें सत्ता और संगठन दोनों के लोग शामिल हुए थे। इसके अलावा कांग्रेस भी कमलनाथ के नेतृत्व में लगातार कई बैठकें कर चुकी है। समर्पण निधि और बूथ विस्तार जैसे कार्यक्रमों में तय योजना अनुसार काम न होने से भाजपा संगठन नाराज है। लिहाजा संगठन ने यह साफ कर दिया है कि बूथ विस्तार, समर्पण निधि जैसी योजनाओं में सभी विधायक, सांसदों और पार्टी के पदाधिकारियों को अपना योगदान देना होगा। ऐसा ना करने पर पार्टी अब एक्शन लेगी। सूत्रों की माने तो इन कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नेताओं को ही 2023 में विधानसभा के टिकट के लिए प्राथमिकता दी जाएगी।
बीजेपी ने विधायकों को दी नसीहत
वहीं बीजेपी के प्रदेश महामंत्री रजनीश अग्रवाल ने बताया कि च्ज्संगठन के कामकाज के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं को निर्देश दे दिए गए हैं, विधायकों को यह भी हिदायत दी गयी है कि क्षेत्र में जनता के बीच ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं और सरकार की रीति नीति लोगों तक पहुंचाने का काम करें, उनकी नाराजगी दूर करें। वहीं यह भी साफ कर दिया गया है कि संगठन के काम में पुअर परफॉर्मेंस करने वाले नेताओं पर पार्टी एक्शन लेगी। इस पूरी कवायद पर भाजपा नेताओं का कहना है कि बैठक, काम का वितरण और उसके बाद फीडबैक लेना भाजपा की कार्य पद्धति है। संगठन की ओर से सौंपे गए दायित्वों को सभी को पूरा करना है।ज्ज् यानि बीजेपी 2023 के चुनाव को लेकर कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है।
कांग्रेस ने भी दिया अल्टीमेटम
वहीं दूसरी ओर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने भी कमर कस ली है, लेकिन संगठन की ओर से सौंपे गए दायित्वों को लेकर पदाधिकारियों की लेट लतीफी कमलनाथ के लिए बड़ी समस्या बन गया है। 25 फरवरी तक मंडलम सेक्टर में नियुक्तियों के अल्टीमेटम के बावजूद नियुक्तियां पूरी नहीं हुई हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि कमलनाथ क्या कड़ा रुख अपनाते हैं। कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री महेंद्र सिंह चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि च्ज् मध्य प्रदेश के सभी जिलों की 230 में से 190 विधानसभाओं में ही अब तक मंडलम सेक्टर की नियुक्ति हो सकी है। पार्टी नेताओं का दावा है कि 2 से 3 दिनों में और भी नियुक्तियां कर ली जाएंगी। दूसरी और संगटन ने पार्टी के विधायकों के साथ पदाधिकारियों को जनता के बीच रहने और उनकी मांगों, समस्याओं जोर-शोर से उठाने के निर्देश दिये हैं और यह भी साफ कर दिया है कि सभी कार्यों को तय समय पर पूरा किया जाए। यानि 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों दल अभी से एक्शन मोड में जुट गए हैं। विपक्ष जहां जनता की समस्याओं और परेशानियों को लेकर मुखर नजर आ रहा है। तो वहीं बीजेपी प्रदेश सरकार की योजनाओं को जनता के बीच पहुंचाने में जुटी हुई है।

मिशन 2023 के लिए सत्ता की चाबी है ये समीकरण, जिसने साधा, उसी की बनेगी सरकार!
मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस ने 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है। खास बात यह है कि दोनों पार्टियां इस बार सभी वर्गों को साधने में लगी हुई है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर दोनों ही पार्टियों की नजर रहती है, क्योंकि इन वर्गों पर आरक्षित विधानसभा सीटों पर जिस दल की पड़ मजबूत होती है, उसे सत्ता तक पहुंचने में आसानी होती है। लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अब एससी एसटी वर्ग को साधने में जुट गए हैं।

एससी-एसटी समीकरण दिलाएगा सत्ता
दरअसल, मध्य प्रदेश में हमेशा से ही एससी-एसटी का समीकरण सत्ता की चाबी मानी जाती है। क्योंकि इन दोनों वर्गों के लिए प्रदेश की 36 फीसदी यानी 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। ऐसे में जिस दल को इन वर्गों का साध मिलता है, उसका सत्ता तक पहुंचने का रास्ता आसान हो जाता है। बीते चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों की अधिकतर सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी। जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया जिसके चलते कांग्रेस 2018 के विधानसभा चुनाव में सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।

कांग्रेस ने बनाया दोनों वर्गों को साधने का प्लान
बीते दिनों कांग्रेस की बैठक में प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक ने साफ कर दिया कि एससी-एसटी और पिछड़ा वर्ग को साथ में लाया जाए, कांग्रेस ने इसके लिए सद्भावना मंच भी बनाने जा रही है जो कमजोर वर्ग की आवाज उठाने का काम करेगा। यानि कांग्रेस भलीभांति जानती है कि अगर सत्ता दोबारा हासिल करनी है तो अभी से इन वर्गों को साधना होगा। इसलिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ खुद इन वर्गों के लिए आरक्षित सीटों पर प्रचार में जुट गए हैं।
बीजेपी ने भी तैयार किया प्लान
कांग्रेस से इतर बीजेपी ने भी एससी-एसटी वर्ग को साधने के लिए प्लान तैयार कर लिया है। संघ और भाजपा की बैठक में इन वर्गों पर विशेष फोकस करने का निर्णय लिया गया है। क्योंकि 2003 से 2013 तक चुनावों में जनजातीय वोट भाजपा के साथ रहा था और पार्टी लगातार सत्ता में काबिज थी, लेकिन 2018 में कांग्रेस की और यह वोट बैंक डायवर्ट हो गया और भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी थी। ऐसे में बीजेपी ने भी अभी से इन वर्गों को साधने का प्लान तैयार कर लिया है। नवंबर में पीएम मोदी खुद बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए थे। तो हाल ही में संत रविदास जयंती पर भी शिवराज सरकार ने प्रदेश भर में बड़ा आयोजन किया था। यानि बीजेपी भी अभी से इस समीकरण को साधने में जुटी है। हालांकि एससी-एसटी वर्ग को साधने के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस में सियासत भी शुरू हो गई है।

कांग्रेस ने साधा बीजेपी पर निशाना
एससी एसटी वर्ग को साधने के मुद्दे पर कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधा है। पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने कहा कि च्ज्भाजपा सिर्फ एससीज्-एसटी ओबीसी के नाम पर इवेंट करने का काम करती है, कभी बिरसा मुंडा की जयंती मनाते हैं तो कभी रविदास जयंती लेकिन जमीनी स्तर पर इनके लिए कोई काम नहीं हुआ। एससी- एसटी वर्ग कांग्रेस के साथ था और आने वाले चुनाव में भी कांग्रेस के साथ रहेगा। क्योंकि दोनों वर्गों का कांग्रेस में विश्वास है।ज्ज्

बीजेपी का पलटवार
कांग्रेस के आरोपों पर बीजेपी ने भी पलटवार किया, बीजेपी प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि च्ज्बीजेपी सर्व समाज समरसता में और सबका साथ सबका विकास में यकीन करती है, सभी वर्ग भाजपा के साथ है इसलिए आज प्रदेश का जनमत भाजपा को मिला है और आने वाले चुनावों में भी भाजपा की जीत होगी।ज्ज्

स्ष्ट-स्ञ्ज के लिए आरक्षित हैं 82 सीटें
मध्यप्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 82 सीटें एससी एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। जिनमें से 35 सीट अनुसूचित जाति और 47 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति वर्ग की 47 में 31 सीटें कांग्रेस ने जीती थी, तो वहीं भाजपा को सिर्फ 16 सीट मिली थी। जबकि 35 अनुसूचित जाति वर्ग की 17 सीटों पर कांग्रेस और 18 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी। जिससे इन सीटों पर दोनों ही पार्टियों ने खास फोकस शुरू कर दिया है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने मिशन-2023 के लिए कमर कस ली है। पार्टी ने साफ कर दिया है कि पूर्व सीएम कमलनाथ के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा। कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लडऩे के ऐलान के बाद राजनीतिक मामलों पर फैसले लेने के लिए कमेटी बना दी गई है। पार्टी से यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि अब पार्टी के राजनीतिक मामलों में किसी एक नेता की नहीं चलेगी, इसलिए कमलनाथ की अध्यक्षता वाली कमेटी में 20 सदस्य और 2 विशेष आमंत्रित सदस्य रखे हैं। अब जो भी निर्णय लिए जाएंगे, वे किसी एक व्यक्ति के नहीं होकर संयुक्त रूप से लिए जाएंगे।
बताया गया कि ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर कमेटी का गठन किया गया है। इसमें प्रदेश के सभी दिग्गज नेताओं को जगह दी गई है। यह कमेटी आने वाले चुनाव से जुड़े फैसले संयुक्त रूप से लेगी। इसे कमलनाथ लीड करेंगे। उत्तरप्रदेश समेत पांच राज्यों में मिली करारी हाल के बाद कांग्रेस अब मध्यप्रदेश में आंतरिक विवाद नहीं चाहती। इस कारण सभी नेताओं की सहमति से आगे की रणनीति पर काम किया जाएगा। यह कमेटी महीने में दो बार चुनावी रणनीति पर चर्चा करने बैठेगी, ताकि बीजेपी सरकार को जमीनी स्तर पर घेरा जा सके।
कमेटी में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया, सुरेश पचौरी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, गोविंद सिंह, आरिफ अकील, सज्जन वर्मा, विजयलक्ष्मी साधौ, एनपी प्रजापति, बाला बच्चन, रामनिवास रावत, ओमकार मरकाम, जीतू पटवारी, लखन घनघोरिया, चंद्र प्रभाष शेखर, प्रकाश जैन, अशोक सिंह, राजीव सिंह के अलावा विशेष रुप से स्थायी आमंत्रित सदस्य राजमणि पटेल और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को शामिल किया गया है। कमेटी के अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ होंगे। प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता केके मिश्रा का कहना है कि राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर इस कमेटी का गठन किया गया है। यह कमेटी आगामी विधानसभा चुनाव से जुड़े राजनीतिक मामलों को लेकर निर्णय लेगी।
हर 15 दिन में होगी बैठक
पिछले दिनों कमलनाथ के बंगले पर हुई बैठक में कांग्रेस के पूर्व मंत्री सहित कई दिग्गज नेता शामिल हुए थे। इसमें सरकार को महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरने का निर्णय लिया गया। इसके लिए हर 15 दिन में बैठक होगी। इस बैठक के माध्यम से यह संदेश देने की कोशिश भी की गई कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक चल रहा है।

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