मंत्री-विधायक पुत्रों को नहीं मिलेगा पद

मंत्री-विधायक
  • भाजपा सगंठन में एक परिवार एक पद फॉर्मूला

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। भाजपा ने संगठन में परिवारवाद पर रोक लगाने के लिए एक परिवार-एक पद का नया फार्मूला लागू किया है। पार्टी के इस फैसले के चलते पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम को मऊगंज जिला उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा। अन्य नेताओं के बेटों-बेटियों की उम्मीदों पर भी पानी फिर सकता है। मऊगंज जिला कार्यकारिणी में राहुल गौतम बीजेपी जिला उपाध्यक्ष बनाए गए थे। प्रदेश नेतृत्व को जैसे ही पता चला कि राहुल गिरीश गौतम (पूर्व विधानसभा अध्यक्ष) के पुत्र हैं, तो उन्हें पद छोडऩे को कहा गया। राहुल ने प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल को अपना इस्तीफा भेजा है।
दरअसल, भाजपा ने हाल ही में अपने कार्यकारिणी गठन में एक महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा की है, जिसके तहत अब एक परिवार-एक पद का फॉर्मूला लागू किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि पार्टी के किसी भी सक्रिय नेता के परिवार के सदस्य को संगठन में कोई भी पद नहीं मिलेगा। भाजपा का यह कदम पार्टी में परिवारवाद के आरोपों पर उठाया गया है। इस नए फॉर्मूले के लागू होने से प्रदेश के कई ऐसे सांसदों, विधायकों और बड़े नेताओं के अरमानों पर पानी फिर जाएगा, जो अपने पुत्र या परिवार के किसी सदस्य को संगठन में एडजस्ट करने का सपना देख रहे थे।
 समानता को बढ़ावा देने का उद्देश्य
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने हाल ही में भोपाल दौरे के दौरान इस फॉर्मूले को लागू करने का ऐलान किया। इसका उद्देश्य पार्टी में किसी भी प्रकार के परिवारवाद को टोकना और कार्यकर्ताओं के बीच समानता को बढ़ावा देना है। इस फैसले का असर पार्टी के सांसदों, विधायकों और अन्य नेताओं पर पड़ेगा, जिनके बेटे-बेटियां या अन्य पारिवारिक सदस्य सक्रिय राजनीति में शामिल हैं। यह कदम पार्टी के अंदर अनुशासन और कार्यकर्ताओं की कार्यक्षमता को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसी भी एक परिवार के सदस्य को ज्यादा ताकत नहीं मिल पाएगी, और यह अन्य कार्यकर्ताओं के लिए अवसर खोलेगा। हालांकि, इस नीति से कुछ नेताओं के परिवारों को निराशा भी हो सकती है, लेकिन यह पार्टी की दीर्घकालिक रणनीति के लिए आवश्यक कदम साबित हो सकता है।
मऊगंज की घटना से लिया सबक
भाजपा की जिला कार्यकारिणी में हाल ही में मऊगंज विधानसभा से विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के बेटे राहुल गौतम को उपाध्यक्ष बनाया गया था। हालांकि, यह निर्णय पार्टी के प्रदेश नेतृत्व द्वारा लिया गया, लेकिन बाद में यह पाया गया कि यह नियुक्ति एक परिवार-एक पद के सिद्धांत के खिलाफ था। इसके बाद राहुल गौतम ने स्वेच्छा से पद छोडऩे का निर्णय लिया। दरअसल, कई नेता जो सक्रिय राजनीति से बाहर हो चुके हैं, उनके परिवार के सदस्य अब संगठन में योगदान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार को संगठन में शामिल करने पर विचार हो सकता है। इसी तरह, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा को भी मौका मिल सकता है।
इन नेतापुत्रों के हाथ लगेगी निराशा
कुछ भाजपा नेता जिनके परिवार इस बदलाव से प्रभावित होंगे, उनमें केंद्रीय मंत्री व पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय चौहान, दमोह से विधायक जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया, सागर जिले के विधायक गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव, और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेन्द्र सिंह तोमर शामिल हैं। इन सभी नेताओं के परिवार या पुत्रों को फिलहाल पार्टी में कोई पद मिलने की संभावना कम ही है। नवनियुक्त भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल के अनुसार यह कदम पार्टी के भीतर नवाचार और कार्यकर्ताओं के समर्पण को प्रेरित करेगा। यह उन नेताओं के लिए एक संकेत होगा जो अपने परिवार को पार्टी से ऊपर मानते हैं। इस नए प्रयोग से पार्टी में लोकतंत्र व समानता के अवसर मिलेंगे। जिससे कार्यकर्ताओं में अच्छा मैसेज जाएगा।
संगठन को मिलेगी नई ऊर्जा
भाजपा ने इस कदम से स्पष्ट संकेत दिया है कि पार्टी अब परिवारवाद की बजाय जमीनी कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देगी। इससे संगठन को नई ऊर्जा मिलेगी, लेकिन राजनीतिक परिवारों से जुड़े युवा नेताओं के लिए यह बड़ी चुनौती बन सकता है। प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस, सपा और आरजेडी जैसे अन्य राजनीतिक दलों को अक्सर परिवारवादी पार्टी कहकर निशाना साधते हैं, लेकिन पिछले दिनों जिस तरीके से भाजपा में नेता पुत्रों की ताजपोशी हुई है, उससे भाजपा ही इस मुद्दे पर घिरने लगी है। हालांकि, दुष्यंत सिंह (वसुंधर राजे के बेटे) और पंकज सिंह (राजनाथ सिंह के बेटे) जैसे कुछ सांसद-विधायक नए फार्मूले पर फिट नहीं बैठते। सूत्रों की माने तो इसके बाद प्रदेश संगठन ने जिलों से कहा है कि वे अपने जिले की कार्यकारिणी के चयन में इस बात का ध्यान रखें। इसमें सांसद, विधायक से लेकर बड़े जिलों के जिला पंचायत अध्यक्ष और मेयर आदि को भी शामिल किया गया है। जिलों से यह भी कहा गया है कि अगर नेता पुत्रों को पद देना जरूरी हो तो उनकी पार्टी में सक्रियता और काम का भी पूरा ब्यौरा प्रदेश संगठन को भेजना होगा। गौरतलब है कि जिलों में भाजपा के कई विधायकों के परिजन संगठन समेत जिला, जनपद और नगरीय निकायों में पद पर हैं। अब इस व्यवस्था पर लगाम लगाया जा रहा है।

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