
- नौ साल बाद प्रस्ताव हुआ खारिज
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में प्रस्तावित सरभंगा टाइगर रिजर्व पर खदान माफिया भारी पड़ गया है। शायद यही वजह है कि इसको लेकर नौ साल पहले तैयार किया गया प्रस्ताव अब सरकार ने निरस्त कर दिया है। इसकी खबर इलाके में पहुंचते ही लोगों में नाराजगी का माहौल बन गया है। अब इसे बनवाने के लिए लोग भी सक्रिय हो गए हैं। वे इसके लिए अब जनजागरण अभियान चला रहे हैं। इसके तहत तमाम संगठन टोलियां बनाकर लोगों के घरों पर जाकर या फिर चौपाल लगाकर ग्रामीणों को सेंचुरी से होने वाले फायदे बता रहे हैं। इसके उलट खनिज माफिया के लोग भी सक्रिय हैं, जो ग्रामीणों को विस्थापन का डर दिखा रहे हैं। यह बात अलग है कि इस पूरे मामले से स्थानीय सांसद और विधायक ने दूरी बना रखी है। इस मामले में पर्यावणविदों का कहना है कि वन्य प्राणियों के संरक्षण और संवर्धन की चिंता से ज्यादा सरकार को खदानों के बंद होने का डर है। दरअसल, इसे सतना जिले के चित्रकूट उप वन मंडल अंतर्गत मझगवां रेंज के सरभंगा वन क्षेत्र में बनाने का प्रस्ताव था। यह वो इलाका है जहां पर करीब 13 साल पहले बाघिन पी-213(22) ने अपना डेरा जामाया था। वह पन्ना टाइगर रिजर्व से वहां पहुंची थी। यह बाघिन अब तक छह बार में कुल डेढ़ दर्जन शावकों को जन्म दे चुकी है। जून 2024 में आखिरी बार उसने तीन शावकों को जन्म दिया है। इस बाघिन के वहां पहुंचने के बाद वन विभाग ने सरभंगा के जंगल में नाइट विजन ट्रैप कैमरे लगाए। इन कैमरों में न केवल कई बाघ नजर आए , बल्कि पैंथर सहित कई अन्य वन्य प्राणियों के होने का भी पता चला। लगातार मिल रहे इन प्रमाणों के बाद वर्ष 2016 में सरभंगा को टाइगर रिजर्व एवं वाइल्डलाइफ सेंचुरी घोषित करने के साथ-साथ ब्रीडिंग सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया था, जिसके बाद पीसीसीएफ ने सतना वनमंडल से विस्तृत जानकारी मांगी थी। इसके बाद तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (सीएफ) आरबी शर्मा ने वर्ष 2016 में सरभंगा सर्किल में टाइगर रिजर्व और वाइल्डलाइफ सेंचुरी की स्थापना का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा। इसमें सरभंगा में बाघों के प्राकृतिक आवास और नैसर्गिक कॉरिडोर की मौजूदगी का जिक्र किया गया। प्रस्ताव में इस वन क्षेत्र में टाइगर और पैंथर के लिए एक ब्रीडिंग सेंटर बनाने की भी योजना शामिल थी। इसके तहत वर्ष 2022 में वन विभाग की टीम द्वारा किए गए सर्वेक्षण के बाद लगभग 7 हेक्टेयर वन भूमि पर तीन ग्रासलैंड भी विकसित किए। अप्रैल 2022 में मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक एवं प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने तत्कालीन डीएफओ विपिन पटेल के माध्यम से जिला पंचायत, जिला योजना समिति, सांसद एवं चित्रकूट विधायक से एनओसी मांगी। इसके बाद भी इस प्रस्ताव के बाद भी किसी भी जनप्रतिनिधि ने इसमें रुचि नहीं ली। अब इस प्रस्ताव को सरकार ने खारिज कर दिया है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि प्रस्ताव रिजेक्ट होने का सबसे मुख्य कारण खनिज माफिया का दबाव और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ही है।
प्रधानमंत्री को दो बार पत्र लिख चुके महापौर
सरभंगा में टाइगर सेंचुरी की स्थापना की मांग को लेकर सतना महापौर योगेश ताम्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बार पत्र लिख चुके हैं। उनका कहना है कि बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए सरभंगा क्षेत्र सबसे अच्छी जगह है, यहां सेंचुरी बनना ही चाहिए। उनका कहना है कि यदि टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में ही बाघों को संरक्षण नहीं मिलेगा, तो फिर और कहां मिलेगा? उन्होंने कहा कि मात्र कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने सतना जिले को इस महत्वपूर्ण सौगात से वंचित करने का कोशिश निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है। राजस्व ग्रामों की उपस्थिति को आधार बनाकर अभयारण्य के प्रस्ताव को नकारना तर्कहीन है। प्रदेश के कई टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्कों में राजस्व ग्राम स्थित हैं और सरभंगा में विस्थापन की आशंका महज काल्पनिक है।
38 में से 6 खदानें ही चालू
मझगवां तहसील में स्वीकृत 38 खदानों में से केवल 6 में ही खनन हो रहा है। जानकारी के अनुसार, मझगवां क्षेत्र में कुल 427.379 हेक्टेयर भूमि पर 38 खदानों को स्वीकृति दी गई है। इनमें से 22 खदानें, जो 239.52 हेक्टेयर भूमि पर स्थित हैं, यह सालों से बंद पड़ी हैं। कागजों में 187.859 हेक्टेयर भूमि पर बनी 16 खदानें चल रही हैं, जिनमें बाक्साइट, लेटराइट, ओकर और व्हाइट क्ले जैसे खनिजों का उत्खनन होता है। बहम बात यह है कि इन 16 में से 10 खदानों में कोई खनिज मौजूद ही नहीं है। हालांकि, अब तक इसे लेकर कोई फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं हुआ।