मेडिकल काउंसिल को नहीं है रजिस्टर्ड चिकित्सकों की जानकारी

मेडिकल काउंसिल
  • पहली बार होने वाले चुनाव लटके अधर में…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के पहली बार चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है, लेकिन इसमें काउंसिल की गंभीर लापरवाही अंडग़ा बन रही है। दरअसल काउंसिल के पास पचास हजार से ऐसे चिकि त्सक हैं, जिनके घर द्वारा की जानकारी तक नही है। ऐसे में चुनाव कराया जाना मुश्किल हो रहा है। जब तक इन चिकित्सकों की पूरी जानकारी काउंसिल के पास नहीं होगी तब तक चुनाव कराया जाना संभव नहीं है। इसकी वजह से चुनावी प्रक्रिया अटकी हुई है।
दरअसल, इस चुनाव में मतदान के लिए बैलेट पेपर का इस्तेमाल किया जाना है। बैलेट पेपर डाक के माध्यम से डॉक्टरों के रजिस्टर्ड पते पर भेजे जाने हैं। चुनावी प्रक्रिया शुरु होते ही जब संबंधित चिकित्सकों की जानकारी देखी गई तो पता चला कि करीब 80 फीसदी रजिस्टर्ड चिकित्सकों के नाम पते की जानकारी ही काउंसिल के रिकार्ड में ही नहीं है। इसकी वजह चुनावी प्रक्रिया शुरु होते ही बंद करनी पड़ गई। बताया जा रहा है कि चुनाव कराने से पहले अब चिकित्सा शिक्षा विभाग पहले डॉक्टरों के नाम पतों की जानकारी जुटाएगा, जिसके बाद ही चुनावी प्रक्रिया दोबारा से शुरु की जाएगी। गौरतलब है कि मप्र मेडिकल काउंसिल में 56 हजार डॉक्टर पंजीकृत हैं।
इसके पंजीकरण की शुरुआत 1939 से हुई थी। इनमें कई डॉक्टर या तो प्रदेश को छोडक़र दूसरे प्रदेशों में जाकर बस गए हैं और कई का तो निधन तक हो चुका है, लेकिन काउंसिल में उनका पंजीयन अभी भी बना हुआ है। इधर, अधिकारियों का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया के लिए चुनाव अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई थी, जिसे रद्द कर दिया गया। अब नए चुनाव अधिकारी की नियुक्ति के बाद ही प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी।
दो साल पहले कराया था री-वेरिफिकेशन
जानकारी के अनुसार मप्र मेडिकल काउंसिल में 1939 से अब तक करीब 56 हजार डॉक्टर रजिस्टर्ड हैं। इनका दोबारा सत्यापन नहीं कराया गया था। मप्र मेडिकल काउंसिल द्वारा करीब दो साल पहले इन डॉक्टरों का रिकॉर्ड अपडेट करने के लिए री- वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू की गई थी। इसमें प्रदेश के प्रत्येक डॉक्टर को री-वेरिफिकेशन कराना जरूरी था। इस प्रक्रिया को काउंलिस द्वारा शुद्धीकरण का नाम दिया गया था। इसमें डॉक्टरों से ऑनलाइन सत्यापन करने को कहा गया था, लेकिन महज 24 हजार डॉक्टर ही री-वेरिफिकेशन के लिए सामने आए थे , जिनमें से मात्र 5,000 डॉक्टरों की ही केवाईसी हो पायी। यही वजह है कि कुल 56 हजार रजिस्टर्ड डाक्टरों में से मात्र 5000 डॉक्टरों की ही जानकारी उपलब्ध है।
काउंसिल पर यह जिम्मेदारी
वेटरनरी काउंसिल, डेंटल काउंसिल जैसी संस्थाएं अध्यक्ष व कार्यकारिणी का चुनाव करती हैं। मेडिकल काउंसिल में भी प्रविधान है, पर डाक्टरों में कई गुट होने के चलते चुनाव पर सहमति नहीं बन पा रही थी। निर्वाचित अध्यक्ष नहीं होने पर स्वास्थ्य या चिकित्सा शिक्षा विभाग के आयुक्त या संचालक को अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाती रही है। काउंसिल डाक्टरों का पंजीयन, इसके नियम, डाक्टरों के विरुद्ध शिकायतों की सुनवाई करती है।

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