प्रदेश में अब नहीं रहेगा मीजल्स मरीज, सरकार ने कसी कमर

मीजल्स मरीज
  • कोरोना की तर्ज पर मीजल्स रूबेला के खात्मे की तैयारी, घर-घर देंगे दस्तक

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में जिस तरह से कोरोना महामारी पर काबू पाया गया है ,उसी की तर्ज पर अब प्रदेश सरकार मीजल्स रूबेला को भी समाप्त करने के लिए कमर कस चुकी है। इसके लिए कई विभागों का सरकारी अमला एक साथ मैदानी मोर्चा सम्हालने की तैयारी कर रहा है। यह काम स्वास्थ्य विभाग की अगुवाई में किया जाएगा।  इसके  लिए शुरू किए जाने वाले महाअभियान में स्कूल शिक्षा और महिला एवं बाल विकास विभाग का अमला सहयोगी की भूमिका में काम करेगा। महाअभियान के तहत पूरे प्रदेश के हर घर में दस्तक देकर 15 साल तक के बच्चों की जानकारी जुटाई जाएगी।  यही नहीं इस दौरान प्ले स्कूलों तक पर फोकस किया जाएगा, जिसके तहत वहां आने वाले बच्चों के टीकाकारण की जानकरी लेकर उसकी समीक्षा की जाएगी।  इसके शुरूआती चरण में शिक्षा और महिला बाल विकास विभाग के वॉलेंटियर घर-घर जाकर बच्चों के टीकाकरण की जानकरी जुटाएंगे और उसे सॉफ्टवेयर में अपलोड किया जाएगा।  प्रदेश में यह पहली बार होगा जब आंगनबाड़ी, माध्यमिक स्कूलों के साथ ही प्ले स्कूलों का सत्यापन किया जाएगा। इसमें बगैर टीकाकरण के मिले बच्चों को वैक्सीन देने का काम किया जाएगा। इसके लिए  तंत्र विकसित किया जाएगा। स्कूल, अस्पताल, ग्राम पंचायत के लिए अनिवार्य किया जाएगा की वजह इस तरह के मरीजों की सूचना दे।  यही नहीं इसके लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स भी बनेगी।
टीकारण में बीस फीसदी की वृद्धि
हेल्थ मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (एचएमआइएस) की माने तो , तमाम प्रयासों के बाद भी अब तक प्रदेश में 89 फीसदी बच्चों को खसरा-रूबेला का टीका लगा है। खास बात यह है कि इसमें बीते साल की तुलना में करीब 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसकी वजह है इस साल 16 मार्च को खसरा दिवस पर चलायचा गया विशेष अभियान और 10 जिलों में चलाया गया सघन मिशन इंद्रधनुष अभियान ।
संक्रमक बीमारी है खसरा
खसरा वायरस से होने वाली बीमारी है, जो कोरोना और दूसरी बीमारियों से बहुत ज्यादा संक्रामक होती है। इससे प्रभावित होने वाले बच्चों में से तीस फीसदी की मौत तक हो जाती है। बाकी को अलग-अलग तरह की दिव्यांगता होती है। यह वायरस शरीर के भीतर की झिल्लियों पर असर डालता है। इसी तरह से रूबेला से प्रभावित महिला से जन्म लेने वाले बच्चों में जन्मजात विकृति रहती है। डॉक्टरों के अनुसार, 9 से 12 माह की उम्र में खसरा-रूबेला का पहला टीका और 16-24 माह में दूसरा टीका लगाया जाता है।

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