
- न अध्यक्ष-उपाध्यक्ष, न ही सदस्य
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में लोगों की समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार ने विभिन्न आयोगों का गठन किया है। लेकिन विडंबना यह है कि अधिकांश आयोगों में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्यों के पद सालों से खाली पड़े हैं और इसकी वजह से काम-काज में लेट-लतीफी चल रही है। गौरतलब है कि सरकारी सिस्टम से हताश लोगों के लिए आशा की किरण होते है आयोग। इसके विपरीत मप्र में कई आयोगों की हालात ये है कि उन्हें ही न्याय की दरकार है।
गौरतलब है कि राज्य महिला आयोग, अनुसूचित जाति, जनजाति जैसे आयोगों का तो गठन ही नहीं हो सका है। सिस्टम अफसरों के भरोसे है। मानव अधिकार आयोग में लंबे समय से अध्यक्ष नहीं है। एकमात्र सदस्य को अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे दी गई है। पिछड़ा वर्ग के कल्याण की बात होती हैं। सियासत में भी चर्चा होती है, लेकिन इस वर्ग के लिए गठित आयोग की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। आयोग के पास न अमला है और न ही अपना दफ्तर। अध्यक्ष ने सरकार को पत्र लिखकर स्टाफ और अलग से दफ्तर के लिए भवन मांगा है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रामकृष्ण कुसमरिया ने सीएम को पत्र लिखकर कहा है कि दिसंबर 2023 से वे अध्यक्ष है। वर्तमान में पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का अत्यावश्यक कार्य चल रहा है। ऐसे में आयोग में पूर्णकालिक सचिव की जरूरत है। विविध सलाहकार सहित सभी रिक्त पदों की पूर्ति की जाए। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने आयोग के गठन न होने पर सरकार की मंशा पर ही सवाल उठाए हैं। कहा कि समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा और उनके उत्पीड़न को रोकने प्रदेश में कई आयोग बनाए गए जो 2016-17 से भाजपा के कार्यकाल में निष्क्रिय हो चुके हैं। आयोग सिर्फ नाम के बचे हैं। स्थिति इतनी दयनीय है कि ये न तो पीडि़तों की आवाज सुन पा रहे हैं और न ही उनके लिए कोई ठोस कार्रवाई कर पा रहे हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द नियुक्तियां करे।
7 साल से बंद महिला आयोग!
मप्र में महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए बने राज्य महिला आयोग की हालत खुद एक सवाल बन गई है। बीते 7 वर्षों से आयोग पूरी तरह निष्क्रिय पड़ा है। आयोग में न अध्यक्ष हैं, न सदस्य, न ही कोई बेंच बैठ रही है और न ही सुनवाई की प्रक्रिया जारी है। आयोग के नियमों के मुताबिक, किसी भी शिकायत पर 15 दिनों में कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन जब पूरा आयोग ही ठप पड़ा हो तो न्याय की उम्मीद बेमानी लगती है। भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित कार्यालय में सन्नाटा पसरा है- अध्यक्ष और सदस्यों के कक्ष पर ताले लटकते हैं और नेम प्लेट को कागज से ढंक दिया गया है। कमलनाथ सरकार में आयोग का गठन हुआ था, लेकिन मार्च 2020 में सरकार के अल्पमत में आने और सत्ता परिवर्तन के बादे विवाद की स्थिति बनी। मामला कोर्ट पहुंचा। तब से अध्यक्ष की नियुक्ति हुई और न ही कोई सदस्य मनोनीत हुआ ऐसे में यहां न्याय पाने की आस लिए पहुंची महिलाओं को निराशा होती है। पीडि़तों की शिकायत लेकर काम की पूर्ति मानी जाती है। लंबित मामलों की संख्या 30 हजार से अधिक जा पहुंची है।
शिकायतों के भार से दबे ये आयोग
प्रदेश में कई अन्य आयोग भी ऐसे हैं जो शिकायतों के भार से दबे हुए हैं। मप्र मानव अधिकार आयोग में अध्यक्ष का पद रिक्त है। यह आयोग कार्यवाहक अध्यक्ष के भरोसे है। यानी इकलौते सदस्य राजीव कुमार टंडन को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई है। सुनवाई के लिए कम से कम दो सदस्य होने चाहिए। बेंच नहीं लगने की वजह से आयोग में सिर्फ मानव अधिकार हनन से जुड़े मामलों में संज्ञान लेकर संबंधितों को नोटिस जारी किया जा रहा है। आयोग में रोजाना औसतन 8-10 मामलों में संज्ञान लिया जाता है। ज्यादातर मामले मीडिया रिपोर्ट के आधार पर होते हैं। एमपी नगर स्थित अनुसूचित जाति आयोग का दफ्तर खोजना आसान नहीं। फ्लैट में लग रहे आयोग तक पहुंचे तो पता चलता है कि न अध्यक्ष हैं और न ही सदस्य। कर्मचारियों ने बताया कि सचिव सीमा सोनी कार्यालय में हैं। सचिव सीमा ने बताया, यह सही है कि आयोग में अध्यक्ष-सदस्य की नियुक्ति नहीं हो पाई है, लेकिन आयोग में आने वालों को निराश नहीं लौटना पड़ता। सुनवाई हो रही है। आवेदन लेकर संबंधित जिलों के अफसरों को भेजते हैं। रिपोर्ट भी मांगी जाती है। जरूरत पडऩे वे स्वयं सुनवाई भी करती है। अनुसूचित जनजातियों को न्याय दिलाने अजजा आयोग का प्रावधान है। यह आयोग नाम का रह गया है। लोगों के आवेदन लेने के साथ ही न्याय का भरोसा दिलाया जाता है। सचिव के भरोसे आयोग है। अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग, महिला आयोग जैसी संस्थाओं के पास सिविल न्यायालय की शक्तियां है। अध्यक्ष या सदस्यों के बिना यह शक्तियां किसी काम की नहीं।
3 आयुक्तों के भरोसे सूचना आयोग
प्रदेश का सूचना आयोग असहाय पड़ा हुआ है। आयोग में लंबित मामलों की संख्या 20 हजार तक जा पहुंची है। आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 मुख्य सूचना आयुक्त हो सकते हैं, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त सहित तीन सूचना आयुक्त ही हैं। लंबित द्वितीय अपीलों की संख्या रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। मार्च 2024 में सभी पद खाली हो गए थे। सितंबर में मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त की नियुक्ति हुई।
