
- निकाय चुनाव के लिए कांग्रेस की रणनीति
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में हो रहे पंचायत और नगरीय निकाय चुनावों को सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा है। इसलिए इन चुनावों में भाजपा और कांग्रेस ने अपना पूरा दम लगा दिया है। कांग्रेस ने रणनीति बनाई है कि निकाय चुनाव में भाजपा के अभेद्य गढ़ भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में पार्टी के महापौर प्रत्याशी को हर हाल में जीताना है। अगर इन चार नगर निगमों पर पार्टी ने कब्जा जमा लिया तो 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत की राह आसान हो जाएगी। दरअसल, 2020 में सत्ता से बाहर होने के बाद से ही कांग्रेस वापसी के प्रयास में जुटी हुई है। हालांकि तैयारियों और सक्रियता में वह भाजपा के आसपास भी नहीं है। फिर भी कांग्रेस निकाय चुनाव को लेकर उम्मीद से लबरेज है, पर निकाय चुनाव में प्रमुख शहरों के महापौर पद पर मिलती शिकस्त को जीत में बदलना उसके लिए चुनौतीपूर्ण है। दरअसल, सूबे के चारों प्रमुख शहरों के महापौर पद भाजपा के अभेद्य किले हैं। ग्वालियर में सबसे ज्यादा 58 साल से कांग्रेस महापौर पद से दूर है। इंदौर में 22 साल, जबलपुर में 16 साल और भोपाल में 13 साल से महापौर पद पर भाजपा का कब्जा है। अब भाजपा के लिए भी इन सीटों को बचाने की चुनौती है।
भोपाल में विभा ने जगाई आस
इस बार राजधानी भोपाल में कांर्ग्रेस ने पूर्व महापौर विभा पटेल को महापौर प्रत्याशी बनाया है। भोपाल में कांग्रेस की स्थिति ठीक है, पर यहां 13 साल से भाजपा के महापौर रहे। कांग्रेस से आखिरी महापौर सुनील सूद थे, जो 20 दिसंबर 2004 से 20 दिसंबर 2009 तक पद पर रहे। फिर भाजपा से कृष्णा गौर, आलोक शर्मा ने जीत हासिल की। सूद से पहले कांग्रेस की विभा पटेल 8 जनवरी 2000 से 7 अगस्त 2004 तक महापौर थीं। इस बार विभा ने कांग्रेस में आस जगाई है। भोपाल की सीट से कांग्रेस उम्मीदें संजोए है। इसके पीछे विभा की पिछली जीत और दिग्विजय खेमे के मजबूत नेटवर्क का सपोर्ट होना है। कांग्रेस सड़क पानी, परिवहन, बिजली बिल जैसे मुद्दे उछाल रही है। वहीं भाजपा से मालती राय हैं। भाजपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल है। भाजपा विकास के आधार पर चुनाव लड़ रही है। वहीं सत्ता-संगठन और तीनों भाजपा विधायक साथ हैं।
ग्वालियर में कांग्रेस का 58 साल से सूखा
कांग्रेसी ग्वालियर-चंबल अंचल को अपना गढ़ बताते हैं, लेकिन ग्वालियर में भगवा का ऐसा असर रहा कि 58 साल से कांग्रेस के लिए महापौर की कुर्सी सपना बनी हुई है। ग्वालियर में कांग्रेस के पिछले महापौर चिमन भाई मोदी 4 अप्रेल 1962 से 3 अप्रेल 1964 तक रहे। इसके बाद से यहां भाजपा काबिज है। 58 साल में 17 महापौर हो गए। पिछले तीन महापौर की बात करें तो समीक्षा गुप्ता, शेजवलकर और पूरन सिंह पलैया रहे। अब भाजपा ने यहां सुमन शर्मा और कांग्रेस ने विधायक सतीश सिकरवार की पत्नी शोभा सिकरवार को उतारा है। कांग्रेस के लिए यह किला जटिल है। ग्वालियर में बड़ा फैक्टर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का है। यहां उनका दबदबा होने के बावजूद सिंधिया के कांग्रेस में रहते 58 साल से कांग्रेस महापौर नहीं बना पाई। अब सिंधिया भाजपा में हैं। कांग्रेस के लिए ऐसे में चुनौती और ज्यादा है। दिलचस्प यह है कि सिंधिया के कैंडीडेट के बजाए केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खेमे से सुमन को भाजपा ने टिकट दिया है। इन समीकरणों में कांग्रेस के लिए उम्मीद बन सकती है। बता दें, प्रदेश में 1994 से महापौर का चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से हो रहा है। इससे पहले महापौर चयनित होते थे। भाजपा यहां विकास और संगठित संगठन के दम पर चुनाव लड़ रही है, वहीं कांग्रेस को कोरोना काल की असफलता और सिंधिया के दल-बदल सहित अन्य मुद्दों पर फोकस है।
इंदौर में संजय शुक्ला बनाम भाजपा
प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में इस बार कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी संजय शुक्ला बनाम भाजपा के बीच चुनाव है। यहां महापौर की कुर्सी पर 22 साल से भाजपा काबिज है। वर्ष 2000 में कैलाश विजयवर्गीय ने महापौर पद पर चुनाव जीता था। 2005 में उमा शशि शर्मा, 2009 में कृष्ण मुरारी मोघे और 2015 में मालिनी गौड़ महापौर बनीं। 1995 में कांग्रेस से मधु वर्मा महापौर थे। इसके बाद से कांग्रेस के हाथ महापौर की कुर्सी नहीं लगी। दो दशक में इंदौर भाजपा का गढ़ बनकर उभरा है। अब भाजपा विधानसभा से लेकर लोकसभा तक रिकॉर्ड बनाती है। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण है। इस बार भाजपा से संघ कोटे के पुष्यमित्र भार्गव प्रत्याशी हैं। कांग्रेस से विधायक संजय शुक्ला मैदान में हैं। शुक्ला कोरोना काल के समय के काम व भाजपा की असफलता पर फोकस कर मैदान में हैं। वहीं भाजपा संघ व संगठन साथ कांग्रेस प्रत्याशी के लिए बड़ी चुनौती है।
जबलपुर में 28 साल से भाजपा का राज
संस्कारधानी में 28 साल से भाजपा का महापौर है। जबलपुर में कांग्रेस से आखिरी महापौर वर्ष 1994 में चुने गए विश्वनाथ दुबे थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया। फिर कोई दूसरा नेता कांग्रेस से महापौर नहीं बना। भाजपा से सदानंद गोडबोले, सुशीला सिंह, प्रभात साहू और स्वाति सदानंद गोडबोले महापौर बने। जबलपुर नगर निगम की स्थापना 1864 में हुई थी। 20 महापौर हो चुके हैं। इस बार कांग्रेस से जगत बहादुर सिंह और भाजपा से डॉ. जितेंद्र जामदार मैदान में हैं। जामदार संघ कोटे से हैं। इसलिए संघ व संगठन दोनों पूरा जोर लगाएंगे। ऐसे में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं है। भाजपा प्रत्याशी के लिए संगठन संघ की टीम सक्रिय हो गई है। वहीं कांग्रेस कोरोना काल व स्थानीय समस्याओं पर फोकस कर रही है।