
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र का खाद्य विभाग का अमला प्रदेश के गरीब आदिवासियों को इस लायक नहीं मानता है कि उन्हें खाद्य सुरक्षा के दायरे की जरुरत है। यही वजह है कि प्रदेश के 52 जिलों में किए गए विभाग के सर्वे में उसे इस योजना के लायक पांच सैकड़ा आदिवासी भी नहीं मिल सके हैं। विभाग के अमले की वजह से अब सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। खाद्य विभाग के अमले की कार्यप्रणाली इससे ही समझी जा सकती है कि उसके द्वारा किस तरह से सरकार की गरीबों की योजना को पलीता लगाया जाता है कि उसे प्रदेश के करीब डेढ़ दर्जन आदिवासी बाहुल्य जिलों में उन्हें गरीब आदिवासी ही नहीं मिले है। खास बात यह है कि इस विभाग की नजर में महज 446 परिवार ही ऐसे हैं जो इस योजना का फायदा लेने के लायक हैं। अगर प्रदेश में कोई अति गरीब ही नहीं है तो सरकार को इस योजना को बंद ही कर देना चाहिए। दरअसल अधिकारी नहीं चाहते हैं कि गरीब आदिवासियों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले। यही वजह है कि वे सर्वे के आंकड़ों में हेरफेर करने से नहीं चूकते हैं और वास्तव में जिनको सरकारी की योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मल पाता।