मध्यप्रदेश की फर्टिलिटी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक

जनसंख्या नियंत्रण

-परिवार नियोजन को लेकर महिलाओं की भागीदारी 95 फीसदी , जबकि पुरुषों की मात्र पांच फीसदी है

भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम।
मध्यप्रदेश में सरकार की प्राथमिकता में जनसंख्या नियंत्रण कभी नहीं रहा है। यही वजह है कि प्रदेश में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। अब हालत यह है कि मप्र की फर्टिलिटी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक हो चुकी है। यही वजह है कि मप्र को उन राज्यों में शामिल कर लिया गया है, जहां पर जनसंख्या वृद्धि दर अधिक बनी हुई है। इसे जनसंख्या नियंत्रण के लिए अच्छे संकेत नहीं माने जा रहे हैं। यह खुलासा स्वास्थ्य विभाग की ही रिपोर्ट से हुआ है। खास बात यह है कि सरकार द्वारा चलाए जाने वाले परिवार नियोजन कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी 95 फीसदी है , जबकि पुरुषों की भागीदारी महज 5 फीसदी ही बताई गई है। इसमें प्रमुख भूमिका उन दो दर्जन जिलों की है जिनकी जनसंख्या वृद्धि दर प्रदेश से दोगुनी है। प्रदेश में जिन दो जिलों में सबसे कम वृद्धि दर है उनमें मुरैना व खंडवा जिले हैं। इसके उलट पन्ना व शिवपुरी जिले ऐसे हैं जो प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि दर में सबसे आगे हैं। अगर सरकारी रिपोर्ट को देखें तो उसमें प्रदेश की फर्टिलिटी दर 2.3 फीसदी बताई गई है, जबकि देश की दर 2.2 फीसदी है। यही वजह है कि अब केन्द्र सरकार द्वारा अधिक दर वाले जिलों में दर में कमी लाने के लिए मिशन परिवार के तहत टीएफआर को 2.1 तक लाना। हालांकि यह काम बड़ी चुनौती वाला माना जा रहा है।
इन जिलों में अधिक है प्रजनन दर
रिपोर्ट के मुताबिक तीन से अधिक प्रजनन दर वाले जिलों में बड़वानी, विदिशा , छतरपुर, सतना, दमोह, सीहोर, डिंडोरी , गुना, रायसेन, रीवा, सीधी, उमरिया, सागर, कटनी, शाजापुर, टीकमगढ़, नरसिंहपुर, राजगढ़, रतलाम और खरगौन जिले शामिल हैं। इस मामले में पन्ना में सर्वाधिक दर है।
सालभर में ढाई लाख हुई नसबंदी
यह बात अलग है कि बीते साल प्रदेश में सरकारी दावे के मुताबिक करीब ढाई लाख नसबंदी सरकारी अस्पतालों में बगैर किसी शुल्क कराई गई हैं। इनमें भी अधिकांश संख्या महिलाओं की ही रहती है। खास बात यह है कि सरकार द्वारा नसबंदी को प्रोत्साहन के लिए दो हजार रुपए भी प्रदान किए जाते  हैं।
इसके अलावा जनसंख्या पर नियत्रंण के लिए सरकार द्वारा कई तरह के अस्थाई साधनों का भी निशुल्क वितरण किया जाता है। खास बात यह है कि गर्भ नियंत्रण दवाओं के मामले में महिलाओं में ओसी पिल्स बेहद लोकप्रिय बनी हुई है। आंकड़ो में बताया गया है कि 45 फीसद महिलाओं द्वारा बीते साल इस गोली का इस्तेमाल किया गया।
पांच साल में एक हजार करोड़ खर्च
परिवार नियंत्रण कार्यक्रम के तहत बीते पांच सालों में प्रदेश सरकार करीब एक हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। हालांकि यह राशि आवंटन की तुलना में करीब दौ सौ करोड़ रुपए कम है। माना जाता है कि सरकार को चाहिए कि वह इस तरह के कार्यक्रमों को प्राथमिकता में रखे।  इसके लिए सरकार को न केवल लोगों में जागरुकता के लिए अभियान चलाने की जरुरत है , बल्कि और कई तरह की सुविधाएं देना चाहिए जिससे लोगों की रुचि इस मामले बढ़ सके।

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