मध्यप्रदेश की ककून तकनीक बन रही अन्य राज्यों की पसंद

ककून

-इस तकनीक में बिना केमिकल छिड़काव के पांच साल तक गेहूं पूरी तरह सुरक्षित रहता है तथा क्वालिटी भी खराब नहीं होती…

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम।
मध्यप्रदेश की ऐसी अनेकों योजनाएं हैं जिनको अन्य राज्यों ने भी अपनाया है। इसी तरह की एक योजना अनाज भंडारण की भी है जिसकी चर्चा अन्य राज्यों में कई जा रही है। यह है अनाज भंडारण की ककून तकनीक। दरअसल ककून में प्राकृतिक तरीके से गेहूं का भंडारण किया जाता है। इसकी खास बात है कि इसका खर्च जीरो रहता है। इसके अलावा सस्ती होने के साथ-साथ किसी भी मौसम में कहीं भी भंडारण किया जा सकता है।
यही वजह है कि प्रदेश की इस तकनीक का अध्ययन करने के लिए दूसरे राज्यों से भी अधिकारियों का आना जाना लगा है।  हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार के दो अधिकारियों का दल मप्र के बीना में इस उक्त ककून तकनीक से अनाज भंडारण की व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए यहां आया। बताया गया है कि मध्य प्रदेश की तर्ज पर ही उत्तर प्रदेश सरकार भी अपने यहां अनाज भंडारण करना चाहती है। भंडारण की आधुनिक तकनीक समझने के लिए यह दो सदस्यीय दल बीना के पास बिहरना में पहुंचा था। दल के सदस्यों ने बीना के बिहरना में ककून तकनीक का बारीकी से अध्ययन किया है। खास बात है कि दोनों सदस्यों को गेहूं भंडारण के लिए ककून तकनीक बेहद पसंद आई है। सूत्रों की मानें तो अब यह अधिकारी अपनी रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेजेंगे। इसके आधार पर ही माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश सरकार अनाज का भंडारण कराएगी।
गेहूं की क्वालिटी पर नहीं पड़ता कोई असर:
बता दें कि अनाज भंडारण की ककून तकनीक की खासियत यह है कि ठंड, बारिश और गर्मी के मौसम में खुले आसमान के नीचे का ककून बैग में गेहूं का भंडारण किया जा सकता है। इसमें बिना किसी केमिकल छिड़काव के पांच साल तक गेहूं पूरी तरह सुरक्षित रहता है। यही नहीं इसमें भंडारित गेहूं की क्वालिटी पर भी किसी तरह का कोई असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा इसकी ड्यूरेबिलिटी भी अच्छी है। ककून बैग एक बार खरीदने के बाद लगातार पंद्रह साल उपयोग किया जा सकता है।
ऐसे समझें ककून तकनीक को
दरअसल गेहूं भंडारण के लिए यह एक प्राकृतिक तकनीक है। इसके लिए विशेष प्लास्टिक का बैग तैयार किया जाता है। तीन सौ मीट्रिक टन क्षमता वाले इस बैग को समतल जमीन पर फैला दिया जाता है। इसमें गेहूं की बोरियों की छल्लियां लगाई जाती है। इसमें क्षमता अनुसार गेहूं की बोरियां जमा होने पर ऊपर से दूसरा बैग डालकर एयर टाइट कर दिया जाता है। इसके बाद बारिश , गर्मी और ठंड का गेहूं पर कोई असर नहीं पड़ता। ऐसे में गेहूं सुरक्षित तो रहता ही है वहीं उसकी क्वालिटी पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
अधिकारियों ने अनाज भंडारण की बिंदुवार ली जानकारी
बता दें कि मध्यप्रदेश में गेहूं भंडारण की तकनीक देखने उत्तर प्रदेश स्टेट वेयरहाउसिंग कारपोरेशन झांसी के क्षेत्रीय प्रबंधक जयसिंह और तकनीकी सहायक राजेश अग्रवाल आए थे। वे सबसे पहले सीहोर पहुंचे। सीहोर में उन्होंने स्टील साइलो तकनीक के बारे में जानकारी जुटाई। साइलो बैग में अनाज भंडारण की तकनीक समझने के बाद उन्होंने कंपनी के अधिकारियों से भंडारण में आने वाले खर्चों पर विमर्श किया। इस दौरान अधिकारियों ने इसकी बिंदुवार जानकारी ली। सीहोर के बाद दोनों अधिकारी बीना के बिहरना में ककून तकनीक से समझने पहुंचे। बिहरना के वेयर हाउस में दो घंटे तक बारीकी से निरीक्षण किया और निरीक्षण के दौरान ककून डायरेक्टर तेजिंदर शेट्टी से बिंदुवार तकनीक की जानकारी ली।

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