
-कॉर्पोरेशन के निर्माण कार्यों में जमकर किया गया है गबन
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेेशन की संविदा सब इंजीनियर हेमा मीणा की काली कमाई के खुलासे के बाद रोज होने वाले नए-नए खुलासों ने यह साबित कर दिया है कि कॉर्पोरेशन भ्रष्टाचार का गढ़ बन गया था। कॉर्पोरेशन में अधिकारियों, ठेकेदारों की मिलीभगत से निर्माण कार्यों में जमकर भ्रष्टाचार किया जा रहा था। लोकायुक्त की छापेमारी के बाद हेमा मीणा को संरक्षण देने की कहानियां सामने आने लगी हैं। वहीं भ्रष्टाचार के नए-नए मामले सामने आने लगे है। इससे कॉर्पोरेशन के कई अधिकारियों की धडक़नें बढ़ गई हैं। इनमें अधीक्षण यंत्री स्तर के अधिकारी अपने बचाव में सभी हथकंडे अपनाने में जुट गए हैं।
मप्र राज्य पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन में भ्रष्टाचार के मामले एक-दो नहीं बल्कि इनकी लंबी फेहरिस्त है। कॉर्पोरेशन में भ्रष्टाचार का माध्यम हेमा थी। यही कारण है की अफसरों की उस पर खूब मेहरबानी थी। अपनी पुलिस हाउसिंग कॉरपोरेशन में 13 साल की नौकरी के दौरान हेमा मीणा ने दो बार इस्तीफा दिया था। लेकिन बार-बार उनको नियुक्ति मिलती गई। हेमा मीणा ने साल 2011 में सब-इंजीनियर की पोस्ट पर नौकरी ज्वॉइन करने के छह साल में ही 6 साल में वह प्रमोट होकर सब-इंजीनियर से प्रभारी असिस्टेंट इंजीनियर बनी थीं। अब भ्रष्टाचार की परतें खुलने के बाद बड़े-बड़े अफसरों को संकट में डाल दिया है। मप्र पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन में सालों से कुंडली मारकर बैठे कई अफसरों ने भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी कर ली हैं, कि किसी भी जांच को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं। कॉर्पोरेशन में पिछले 15 साल के भीतर दर्जनभर प्रोजेक्ट्स गुणवत्ता को लेकर सवालों के घेरे में हैं। ऐसे भी मामले हैं कि चेयरमैन द्वारा दिए गए कारण बताओ नोटिस और जांच के निर्देशों को भी दबा दिया गया। अनियमितताओं को रोकने के लिए तत्कालीन गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह द्वारा मुख्य परियोजना यंत्री की प्रतिनियुक्ति पर पोस्टिंग करने संबंधी मंत्रालय को भेजी गई नोटशीट भी गायब है। इधर, सात करोड़ के भ्रष्टाचार का साम्राज्य सामने आने के बाद कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने जिलों के कामों को पूरा करने के लिए फाइलों को दौड़ा दी हैं।
तीन प्रमुख कार्यों में भ्रष्टाचार के मामले आए सामने
कॉर्पोरेशन के अंतर्गत तीन प्रमुख कार्यों में हुए भ्रष्टाचार के मामले सामने लाए जा रहे हैं। वर्ष 2017- 18 में बालाघाट में करीब 60 करोड़ की कनकी परियोजना प्रारंभ हुई। यहां कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए छोटे-बड़े 56 आवास बनाए जाने थे। निर्माण कार्य चल ही रहा था कि उस वर्ष हुई बारिश में निर्माण स्थल में पानी भर गया। सूत्र बताते हैं कि प्रोजेक्ट में डिजाइन और ड्राइंग में तकनीकी खामियां रहीं, जिससे 2 मीटर नीचे ग्राउंड लेवल पर पानी भर गया। मामले की जांच प्रभारी मुख्य परियोजना यंत्री जेपी पस्तोर को दी गई। प्रोजेक्ट प्रारंभ कराने के दौरान अधीक्षण यंत्री जेएन पांडेय थे। यह जांच अब तक पूरी नहीं हो पाई और न ही दोषी अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय हुई है। वहीं जेएन पांडेय के जबलपुर में परियोजना यंत्री के पद पर पदस्थ रहते सिंगरौली में 12 छोटे और 48 बड़े आवास निर्माण की परियोजना मंजूर हुई। आरोप है कि इस मामले में ठेकेदार को मिट्टी की खुदाई के बाद लाखों रुपए के लोहे का एडवांस भुगतान कर दिया गया।
आवास निर्माण में कई गड़बडिय़ां
पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन द्वारा प्रदेशभर में किए गए आवासों के निर्माण में कई तरह की गड़बडिय़ां सामने आई हैं। लेकिन उन्हें दबा दिया गया। सागर में वर्ष 2011 में डीआईजी कार्यालय का निर्माण करने का काम पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन को मिला था। निर्माण में घटिया सामग्री उपयोग होने पर आईजी सागर ने कॉर्पोरेशन के चेयरमेन से शिकायत की। इस पर 5 अगस्त 2011 को सहायक और उपयंत्री को निलंबित कर दिया गया और परियोजना यंत्री जेपी पस्तोर के विरुद्ध कार्रवाई करने के आदेश हुए। प्रारंभिक जांच में पाया गया था कि छत पर सीमेंट बहुत कम लगाई गई। डीआईजी कार्यालय में कुआं कार्य की स्वीकृति को लेकर भी सवाल खड़े हुए थे। तत्कालीन अध्यक्ष पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन वीरेंद्र मोहन कंवर के तीन आदेशों के बाद भी उप महानिरीक्षक कार्यालय सागर की खराब छत की जांच पूरी नहीं हो सकी। बल्कि तत्कालीन कार्यपालन यंत्री जेपी पस्तोर जांच के चलते पदोन्नत होकर अधीक्षण यंत्री बन गए।