केंद्र ने जिसे माना बेकार उससे मप्र हुआ मालामाल

 गेहूं
  • खुले बाजार में नीलामी के माध्यम से 1200 करोड़ का गेंहू बेचा सरकार ने

    भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। आर्थिक संक्रमणकाल के दौर में जब मप्र को पैसे की जरूरत थी, केंद्र सरकार ने किसानों द्वारा खरीदे गए गेहूं को सेंट्रल पूल में लेने से मना कर दिया। इससे प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ा था। लेकिन सरकार ने उस छह लाख 43 हजार टन गेहूं को लगभग 12 सौ करोड़ रुपए में बेचकर अपना खजाना भर लिया है। जानकारों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार इस गेहूं को उठाती तो इतनी रकम भी नहीं मिलती।
    गौरतलब है कि प्रदेश की शिवराज सरकार किसानों का एक-एक दाना खरीदने का वादा किया है। सरकार लगातार समर्थन मूल्य पर किसानों की उपज खरीद भी रही है। इससे सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। वहीं केंद्र सरकार सीमित मात्रा में सेंट्रल पूल के तहत उठाव कर रही है। ऐसे में खुले बाजार में नीलामी के माध्यम से राज्य नागरिक आपूर्ति निगम ने गेहूं की बिक्री की है। तीन लाख टन गेहूं के उठाव के अनुबंध भी हो चुके हैं।
    नाथ सरकार में खरीदा गया था
    राज्य नागरिक आपूर्ति निगम ने जिस गेहूं को बेचा है उसे कमलनाथ सरकार के समय में खरीदा गया था। तब सरकार ने किसान समृद्धि योजना प्रारंभ करके किसानों को प्रति क्विंटल 165 रुपये प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की थी। इसे केंद्र सरकार ने बोनस मानते हुए सेंट्रल पूल में लेने से मना कर दिया था। काफी मान-मनौव्वल के बाद भी जब बात नहीं बनी तो शिवराज सरकार ने इसे नीलाम करने का निर्णय लिया।
    राज्य नागरिक आपूर्ति निगम पर बढ़ते जा रहे कर्ज के बोझ को कम करने के लिए सरकार ने छह लाख 43 हजार टन गेहूं को नीलाम करने का फैसला किया। निगम ने पहले दो लाख टन गेहूं नीलाम करने के लिए निविदा निकाली पर शर्तों को लेकर विवाद हो गया और सरकार ने पूरी प्रक्रिया को निरस्त कर दिया। इसके बाद छोटे-छोटे समूह बनाकर गेहूं नीलाम करने का कदम उठाया गया। इस प्रयास को सफलता मिली और औसत एक हजार 875 रुपये प्रति क्विंटल की दर प्राप्त हुई, जो समर्थन मूल्य से अधिक रही।
    450 करोड़ के घाटे में का अनुमान
    अधिकांश गेहूं का गोदामों से उठाव करने के लिए अनुबंध हो गए हैं। निगम को गेहूं की बिक्री से लगभग एक हजार 200 करोड़ रुपये मिलेंगे। हालांकि, इसके बाद भी निगम लगभग साढ़े चार सौ करोड़ रुपये के घाटे में रहेगा क्योंकि किसान को भुगतान करने के बाद गेहूं के भंडारण, परिवहन सहित अन्य कार्यों में बड़ी राशि व्यय होती है। गेहूं की नीलामी में सर्वाधिक दो हजार 52 रुपये प्रति क्विंटल की दर उज्जैन में प्राप्त हुई है। जबकि, सबसे कम एक हजार 629 रुपये की प्रति क्विंटल की दर रीवा में मिली थी। इस निविदा को शासन ने निरस्त कर दिया और अब 12 हजार 80 टन गेहूं की दोबारा नीलामी की जाएगी।
    165 रुपये प्रोत्साहन राशि को लेकर विवाद
    2019-20 में किसानों से एक हजार 840 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 72 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। खरीद प्रारंभ होने के पहले कमलनाथ सरकार ने किसानों को 165 रुपये प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की थी। खरीद के दौरान जब सेंट्रल पूल में गेहूं देने की बात आई तो केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति उठाई। दरअसल, केंद्र और राज्य सरकार के बीच अनुबंध है कि खरीद के पहले ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा, जिसका बाजार पर विपरीत असर पड़े। जबकि, प्रदेश सरकार का तर्क था कि किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए राशि दी जा रही है पर केंद्र सरकार इससे सहमत नहीं हुई।

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