- कांग्रेस जिलाध्यक्षों की सूची में पहले की तरह गुटबाजी नहीं दिखी
- गौरव चौहान

कांग्रेस नेतृत्व ने मप्र के 71 जिलाध्यक्षों के नाम का ऐलान कर दिया है। खास बात यह है कि इस बार कांग्रेस जिलाध्यक्षों की सूची में पहले की तरह गुटबाजी नहीं दिखी है। सूची का विश्लेषण करने पर एक तथ्य यह नजर आ रहा है कि जिलाध्यक्षों के चयन में सक्रियता, क्षेत्रीयता और सोशल इंजीनियरिंग को महत्व दिया है। प्रथम दृष्टया इस सूची से यह भी संकेत मिल रहे हैं कि मप्र कांग्रेस से पट्ठेबाजी खत्म हो गई है। यानी सूची में किसी खास नेता के शागिर्दों को महत्व नहीं दिया गया है। यानी राहुल गांधी ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए जो फॉर्मूला बनाया है उसी आधार पर जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की गई है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को पार्टी के सभी जिलाध्यक्षों के नाम तय करने में 20 महीने का समय लग गया है। लंबे इंतजार के बाद केंद्रीय नेतृत्व के संगठन सृजन के माध्यम से जिन नामों का जिलाध्यक्षों के ऐलान किया गया है। उनमें ज्यादातर नए चेहरे हैं। कुछ जिलों में जिलाध्यक्ष के लिए चौंकाने वाले नेताओं के नाम पर मुहर लगाई गई है।
हालांकि कांग्रेस जिला अध्यक्षों की सूची जारी होने के बाद कुछ जगह बवाल भी हो रहा है। कई जिलों में उठे नियुक्ति को लेकर विरोध के सुर उठ रहे हैं। राजधानी भोपाल से लेकर उज्जैन, बुरहानपुर और बाकी जिलों में भी कांग्रेसी खासे नाराज हैं। कुछ जगह तो इस्तीफा देने तक का दौर शुरू हो गया है। नाराज कांग्रेसी खुलकर सोशल मीडिया पर नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं।भोपाल में जिला अध्यक्ष रिपीट करने पर नाराजगी देखी जा रही है। यहां प्रवीण सक्सेना को दोबारा अध्यक्ष बनाया गया है। ऐसे में पूर्व अध्यक्ष मोनू सक्सेना नाराज दिखाई दे रहे हैं। इन्होंने सोशल मीडिया पर खुलकर विरोध जताया है। सोशल मीडिया पर लिखा है कि राहुल गांधी ने मांगा था संगठन सृजन, भोपाल में हुआ विसर्जन… बता दें कि मोनू सक्सेना ने भी जिला अध्यक्ष पद पर दावेदारी की थी।
दिग्गजों के गुट खत्म…
कांग्रेस जिलाध्यक्षों की सूची की खास बात यह है कि मप्र कांग्रेस में पहली बार है कि जिलाध्यक्षों के चयन में बड़े नेताओं का सीधा दखल नहीं दिख रहा है। एक तरह से प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व में कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का गुट लगभग खत्म कर दिया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और अजय सिंह को भी जिलाध्यक्षों के चयन में लगभग किनारे कर दिया है। पिछड़े वर्ग से सबसे ज्यादा यादव समाज के 4 नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस पार्टी ने इसके जरिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के समाज को भी साधने की कोशिश की है। इस फैसले से अरुण यादव समेत अन्य यादव नेता भी किनारे कर दिए गए हैं। जिलाध्यक्षों की सूची में सबसे बड़ा चौंकाने वाला नाम पूर्व कैबिनेट मंत्री जयवर्धन सिंह का गुना जिलाध्यक्ष और प्रियव्रत्त सिंह का राजगढ़ जिलाध्यक्ष बनाया जाना है। इसी तरह सतना विधायक सिद्धार्थ कुशवाह और उज्जैन के तराना से विधायक महेश परमार को जिलाध्यक्ष बनाना भी चौंकाने वाला फैसला है। क्योंकि ये चारों नेता प्रदेश पदाधिकारी हैं। जयवर्धन सिंह और महेश परमार प्रदेश उपाध्यक्ष, सिद्धार्थ कुशवाह पिछड़ा वर्ग कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। जबकि प्रियव्रत सिंह संगठन पदाधिकारी हैं। जिलाध्यक्षों की सूची में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की पसंद का छिंदवाड़ा और पांढनऱ्ा जिलाध्यक्ष के अलावा अन्य कोई नाम नहीं है। भिंड शहर अध्यक्ष धर्मेन्द्र भदौरिया को पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और सीधी अध्यक्ष ज्ञान प्रताप सिंह को अजय सिंह की पसंद का बताना जा रहा है। खास बात यह है कि प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के करीबी एक भी नेता को जिलाध्यक्ष नहीं बनाया गया है। कांग्रेस में पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का भी जनजाति वर्ग में दखल माना जाता था, लेकिन इस बार भूरिया को भी किनारे कर दिया है। वेशक भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया झाबुआ से विधायक हैं, लेकिन नए जिलाध्यक्ष प्रकाश रंका उनके विरोधी माने जाते हैं। जनजाति जिलाध्यक्षों को पार्टी नेतृत्व खासकर राहुल गांधी की पसंद बताया जा रहा है। पिछले महीने राहुल गांधी में मप्र के जनजाति विधायक एवं पदाधिकारियों को दिल्ली बुलाकर मुलाकात की थी। जिनमें ओमकार सिंह मरकाम समेत अन्य जनजाति नेता शामिल थे। मप्र के जनजाति नेताओं में ओमकार सिंह राहुल गांधी के सबसे करीबी माने जाते हैं। वे एआईसीसी पदाधिकारी भी हैं। ऐसे में उन्हें डिंडौरी जिलाध्यक्ष बनाए जाने के पीछे पार्टी की जनजाति वर्ग में मजबूत पकड़ बनाने से जोडकऱ देखा जा रहा है।
6 विधायक, 11 पूर्व विधायक बने जिलाध्यक्ष
कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए आलाकमाना ने जो फॉर्मूला बनाया है उसके अनुसार सूची में 6 विधायक, 11 पूर्व विधायकों को जिलाध्यक्ष की कमान सौंपी गई है। 4 महिलाओं को जिलाध्यक्ष बनाया है। खास बात यह है कि इस बार कांग्रेस जिलाध्यक्षों की सूची में पहले की तरह गुटबाजी नहीं दिखी है। हालांकि 18 पूर्व जिलाध्यक्षों को फिर से मौका दिया गया है। सूची में गुना जिले के राघौगढ़ से विधायक जयवर्धन सिंह को गुना जिलाध्यक्ष, डिंडौरी विधायक ओमकार सिंह मरकाम को डिंडौरी जिलाध्यक्ष बनाया गया है। ये दोनों कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उज्जैन के तराना से विधायक परमार को उज्जैन महेश का ग्रामीण जिलाध्यक्ष, बालाघाट के बैहर से विधायक संजय उइके को बालाघाट जिलाध्यक्ष, सतना विधायक सिद्धार्थ कुशवाह को सतना ग्रामीण जिलाध्यक्ष, रायसेन के सिलवानी से विधायक देवेन्द्र पटेल राससेर जिलाध्यक्ष बनाया गया है। काग्रेस ने दो जिले पन्ना और सतना शहर में मुस्लिम समाज से जिलाध्यक्ष बनाए हैं। अशोकनगर जिले शहर और ग्रामीणा का विलय कर एक जिलाध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह पूर्व विधायक मुकेश पटेल को अलीराजपुर, विपिन वानखेड़ को इंदौर ग्रामीण, निलय डागा को बैतूल, रविन्द्र महाजन को बुरहानपुर शहर, संजय यादव को जबलपुर ग्रामीण, सौरभ सिंह को कटनी शहर, डॉ.अशोक मर्सकोले को मंडला, श्रीमती सुनीत पटेल को नरसिंहपुर जिलाध्यक्ष, प्रियव्रत सिंह को राजगढ़, हर्ष विजय गहलोत को रतलाम ग्रामीण, जतन उइके को पांढनऱ्ा का जिलाध्यक्ष बनाया गया है।
सिंधिया के खिलाफ खड़ा किया जयवर्धन को
यूं तो जयवर्धन सिंह के पास कभी जिल स्तर का संगठनात्मक दायित्व नहीं रहा। इस बार जिलाध्यक्ष बनाने के पीछे जो कहानी सामने आ रही है, उसे जयवर्धन सिंह के मप्र कांग्रेस में लगातार बढ़ते कद और ग्वालियर-चंबल में खासकर गुना-शिवपुरी में कांग्रेस के लगातार गिरते ग्राफ से भी जोडकऱ देखा जा रहा है। साथ ही पिछले 5 साल में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने इस क्षेत्र में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता खड़ा नहीं हो पाया है। कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष बनाकर जयवर्धन सिंह को संगठन में प्रदेश पदाधिकारियों की दौड़ से बाहर कर दिया है। साथ ही केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ कांग्रेस को खड़ा करने के लिए नेता भी मैदान में उतार दिया है। इस फैसले को पार्टी नेतृत्व का बताया जा रहा है।