
हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की विकास योजनाओं का असर यह हुआ है कि आज मप्र देश में सर्वाधिक विकास दर वाला राज्य बन गया है। बेहतर वित्तीय प्रबंधन और चौतरफा विकास से आज प्रदेश की विकास दर 19.7 प्रतिशत है, जो देश में सर्वाधिक है। देश की अर्थ-व्यवस्था में मध्यप्रदेश 4.6 प्रतिशत का योगदान दे रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में बीते दशक में 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। मप्र की आर्थिक वृद्धि दर निरंतर बढ़ रही है। वर्ष 2001-02 में 4.43 प्रतिशत की दर आज बढ़ कर 16.43 प्रतिशत हो गई है प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद 71 हजार 594 करोड़ रूपये से बढ़ कर 13 लाख 22 हजार 821 रुपये हो गया है। वर्ष 2001-02 में प्रति व्यक्ति आय 11 हजार 718 रुपये थी, जो वर्ष 2022-23 में बढ़ कर एक लाख 40 हजार 583 रुपये हो गई है। राज्य की जीएसडीपी की वृद्धि दर विगत एक दशक में राष्ट्रीय जीडीपी वृद्धि दर से अधिक रही है। देश के हृदय स्थल मप्र ने पिछले डेढ़ दशक में विकास के नये आयाम स्थापित कर विकसित राज्य की पहचान बना ली है। मध्यप्रदेश की सुशासन और विकास रिपोर्ट-2022 के अनुसार राज्य में आए बदलाव से मप्र बीमारू से विकसित प्रदेशों की पंक्ति में उदाहरण बन कर खड़ा हुआ है। इस महती उपलब्धि में प्रदेश में जन-भागीदारी से विकास के मॉडल ने अहम भूमिका निभाई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में केन्द्र और राज्य की डबल इंजन सरकार ने मप्र को अन्य राज्यों के लिये अनुकरणीय बना दिया है। इस अरसे में सडक़, बिजली, पानी, कृषि, पर्यटन, जल-संवर्धन, सिंचाई, निवेश, स्व-रोजगार और अधो-संरचना विकास के साथ उन सभी पहलुओं पर सुविचारित एवं सर्वांगीण विकास की नवीन गाथा लिखी गई जो जन-कल्याण के साथ विकास के लिये जरूरी हैं।
आए दिन उपलब्धियों के कीर्तिमान बना रहा मप्र
कभी बीमारू राज्य कहे जाने वाले मप्र को अब विकास के पंख लग चुके हैं। प्रदेश के आए दिन उपलब्धियों के कीर्तिमान बना रहा है। 2002-03 में प्रदेश की औद्योगिक विकास दर ऋणात्मक थी, जो अब 24 प्रतिशत पर पहुंच गई है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में वृद्धि के आधार पर इसकी गणना की जाती है। विकास प्रक्रिया में अधो-संरचना के महत्व के मद्देनजर मप्र में निरंतर अधो-संरचना विकास हो रहा है। अधो-संरचना बजट जो वर्ष 2002-03 में 3873 करोड़ रुपए था, वह वर्ष 2023-24 में बढ़ कर 56 हजार 256 करोड़ रुपए हो गया है। एक समय था जब बिजली आती कम थी और जाती ज्यादा थी। आज प्रदेश बिजली के क्षेत्र में आत्म-निर्भर है और 24 घंटे बिजली की उपलब्धता है। वर्ष 2003 में ऊर्जा क्षमता 5173 मेगावाट थी, जो बढ़ कर 28 हजार मेगावाट हो गई है।
नवीकरणीय ऊर्जा में भी मप्र अग्रणी
नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी मप्र अग्रणी है। ओंकारेश्वर में लगभग 3500 करोड़ के निवेश से 600 मेगावाट का फ्लोटिंग सोलर सोलर पॉवर प्लांट का कार्य प्रारंभ हो गया है। किसानों के खेतों में 50 हजार सोलर पंपों की स्थापना का लक्ष्य है। विश्वधरोहर सांची बहुत जल्द सोलर सिटी के रूप में विकसित होकर देश में अपनी अलग पहचान बनायेगा। अच्छी सडक़ें विकास की धुरी होती है। एक समय था, तब यह पता ही नहीं चलता था कि सडक़ में गड्डे हैं या गड्डे में सडक़ है। अब गांव-गांव, शहर-शहर अच्छी गुणवत्तायुक्त सडक़ों का जाल बिछाया गया है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2001-02 में 44 हजार किलोमीटर सडक़ें थी, अब 4 लाख 10 हजार किलोमीटर सडक़ें बन गई हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना में लगभग 1500 किलोमीटर लंबाई के 40 हजार करोड़ की लागत के 35 कार्य स्वीकृत हैं। अटल, नर्मदा और विंध्य प्रगति पथ के साथ मालवा, बुंदेलखंड और मध्य विकास पथ निर्मित किए जा रहे हैं।
किसानों के लिए सबसे खुशहाल राज्य
उद्यानिकी फसलों का रकबा 4 लाख 67 हजार हेक्टेयर से बढ़ कर 25 लाख हेक्टेयर हो गया है। फसल उत्पादन 224 लाख मीट्रिक टन से बढ़ कर 725 लाख मीट्रिक टन से अधिक हो गया है। फसल उत्पादकता 1195 किलोग्राम से बढ़ कर 2421 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। किसान-कल्याण के ध्येय से प्रदेश में गत 3 वर्षों में फसलों की नुकसानी पर 4000 करोड़ से अधिक की राहत राशि वितरित की गई है। प्रदेश के 11 लाख से अधिक डिफाल्टर किसानों का 2123 करोड़ का ब्याज माफ करने के लिए मुख्यमंत्री कृषक ब्याज माफी योजना प्रारंभ की गई है। पिछले 3 वर्षों में किसानों को विभिन्न शासकीय योजनाओं में 2 लाख 69 हजार 686 करोड़ रुपये से अधिक के हितलाभ वितरण किए गए हैं। फसल क्षति प्रतिपूर्ति दरों में भी कई गुना वृद्धि की गई है। अधो-संरचना, खेती-किसानी तथा किसान-कल्याण के क्षेत्र में प्रदेश की प्रगति और विकास की यह कहानी तो एक बानगी है। प्रदेश में पिछला डेढ़ दशक हर क्षेत्र में प्रगति, विकास और लोगों की तरक्की-खुशहाली का गवाह है।
गेहूं उपार्जन में मप्र में अव्वल
अधो-संरचना विकास और बेहतर वित्त प्रबंधन के साथ कृषि प्रधान होने की वजह से प्रदेश में तेज गति से कृषि विकास और किसान-कल्याण के कार्य भी किए जा रहे हैं। लगातार 7 बार प्रतिष्ठित कृषि कर्मण अवार्ड प्राप्त करने वाले मध्यप्रदेश ने गेहूं उपार्जन में पंजाब और हरियाणा को पीछे छोड़ दिया है। प्रदेश का सोने जैसे दानों वाला गेहूँ अमेरिका सहित अनेक देशों में निर्यात होता है। अब इसके निर्यात के लिए प्रयास बढ़ाए जा रहे हैं। प्रदेश में एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल भी बनाई गई है। कृषि विकास दर जो वर्ष 2002-03 में 03 प्रतिशत थी, वह वर्ष 2020-21 में बढ़ कर 18.89 प्रतिशत हो गई है। खेती और एलाइड सेक्टर का बजट भी 600 करोड़ से बढ़ कर 53 हजार 964 करोड़ हो गया। खाद्य उत्पादन भी इस अवधि में 159 लाख मीट्रिक टन से बढ़ कर 619 लाख मीट्रिक टन हो गया है।
सिंचाई क्षमताओं का निरंतर विकास
प्रदेश में कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिए सिंचाई क्षमताओं का निरंतर विकास किया जा रहा है। वर्ष 2003 में सिंचाई क्षमता केवल 7 लाख 68 हजार हेक्टेयर थी, जो वर्ष 2022 में बढक़र 45 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गई है। वर्ष 2025 तक सिंचाई क्षमता को बढ़ा कर 65 लाख हेक्टेयर किये जाने पर भी तेजी से काम किया जा रहा है। हर घर जल से नल योजना पर तेज गति से कार्य हो रहा है, अभी तक लगभग 50 प्रतिशत घरों तक नल से जल पहुंच चुका है। आजादी के अमृत काल में प्रदेश में अब तक 5936 से अधिक अमृत सरोवर का निर्माण किया जा चुका है। केन-बेतवा लिंक परियोजना के प्रथम चरण में बांध, लिंक नहर तथा पॉवर हाउस का निर्माण कार्य इस वर्ष प्रारंभ होगा। अटल भू-जल योजना में भी लगभग 700 ग्राम पंचायतों में वॉटर सिक्युरिटी प्लान बनाए गए हैं।