
भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में बिजली विभाग के अफसरों लापरवाही और कुप्रबंधन के कारण सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है। हालांकि मध्य प्रदेश सरकार भले ही सरप्लस बिजली का दावा कर रही है। लेकिन हालात इसके विपरीत हैं। दरअसल मध्यप्रदेश की विद्युत कंपनियों द्वारा निजी कंपनियों से छह हजार 227 करोड़ रुपए की बिजली महंगी दरों पर खरीदी गई। यही नहीं यह बिजली सस्ती दरों पर दूसरे राज्यों को बेच दी गई। जिससे करोड़ों रुपए के नुकसान होने का मामला सामने आया है। सूत्रों की माने तो महंगी दरों पर बिजली खरीद कर सस्ते दामों पर बेचने की वजह से खजाने को चार हजार दो सौ करोड़ रुपए की चपत लगी है। उल्लेखनीय है कि बिजली कंपनियों ने टोरेंटो पॉवर अहमदाबाद से 24 रुपए प्रति यूनिट की दर से 21.72 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी और इसके लिए साढ़े बावन करोड़ रुपए का भुगतान भी किया गया। जबकि यदि यही बिजली मध्यप्रदेश के सरकारी बिजली घरों से खरीदी जाती तो चार रुपए प्रति यूनिट पड़ती। महंगे दामों पर बिजली लेकर अन्य राज्यों को बैंकिंग के तहत कम दरों पर दिए जाने का मामला उजागर हुआ है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 19-20 में मध्यप्रदेश सरकार ने टोरेंटो सहित करीब दो दर्जन निजी कंपनियों से बिजली खरीदी थी।
आयोग को सौंपीं रिपोर्ट में हुआ खुलासा
पॉवर मैनेजमेंट कंपनी ने मध्य प्रदेश ऊर्जा नियामक आयोग को सौंपी सत्यापन याचिका में बताया कि तीन हजार 367 मिलियन यूनिट बिजली स्वीकृत मात्रा से ज्यादा खरीदी गई। जिस पर छह हजार 227 करोड़ रुपए खर्च हुए। मध्यप्रदेश में खुली निकासी के तहत अन्य राज्यों व एक्सचेंज को जो बिजली बेची है, उसकी औसत कीमत 3.25 रुपए प्रति यूनिट है।
बैंकिंग डाउन से बेवजह हुआ नुकसान
मध्य प्रदेश पॉवर जेनरेटिंग कंपनी की ताप और जल विद्युत गृह से प्राप्त होने वाली बिजली की दर चार रुपए प्रति यूनिट पड़ती है। बैंकिंग डाउन के कारण 42 सौ करोड़ रुपए का बेवजह नुकसान हुआ है। इसमें 28 हजार 330 मिलियन यूनिट का बैंकिंग डाउन रहा। इसक मतलब यह है कि अनुबंधित बिजली कंपनियों से कहा गया कि वह अपना उत्पादन ना करें और नियत प्रभार (ईंधन की कीमत छोड़कर) सभी प्रकार के खर्चों का भुगतान उन्हें कर दिया गया है। बता दें कि लेंकों से मध्य प्रदेश का अनुबंध नहीं है। पीटीसी लैंको से खरीद कर मध्य प्रदेश को बिजली भेजता है। वहीं यह सरकारी बिजली कंपनियां कश्मीर तक से बिजली खरीद रही हैं। बिजली विभाग के विशेषज्ञ की माने तो सरकार को महंगी बिजली खरीदने की आवश्यकता ही क्या है। यह बिजली दूसरे राज्यों को दी जाती है इस घाटे की भरपाई प्रदेश के उपभोक्ताओं से की जाती है। हालांकि आयोग के सामने इसकी आपत्ति भी दर्ज कराई गई है।
कंपनियों से 25 साल का है अनुबंध
मध्य प्रदेश सरकार ने कंपनियों से पच्चीस साल के लिए अनुबंध किया है। इसमें बिजली खरीदना अनिवार्य है। बरसात और गर्मी के सीजन में मध्य प्रदेश दूसरे राज्यों को बिजली देता है, जबकि रबी सीजन में वापस लेता है। प्रदेश में सरप्लस बिजली के कारण करीब दो हजार 833 करोड़ यूनिट बिजली सरेंडर कर दी है तथा बिजली घरों को उत्पादन नहीं करने के निर्देश दिए हैं। वही बिना बिजली खरीदी नियत प्रभार चार हजार दो सौ करोड़ का भुगतान किया गया। जो कि उपभोक्ता से वसूलने की याचिका लगाई गई है। जानकारों की मानें तो यह बिजली कंपनियों के कुप्रबंधन और लापरवाही को दर्शाता है।