
- सौरभ शर्मा के मददगारों को मिल गई क्लीनचिट
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। अरबपति धनकुबेर और आरटीओ के पूर्व कांस्टेबल सौरभ शर्मा को कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। गिरफ्तारी के दो महीने बाद विशेष न्यायाधीश आरपी मिश्रा की कोर्ट से उसे जमानत मिल गई है। यह जमानत लोकायुक्त के प्रकरण में मिली है। लोकायुक्त की कमजेारी का फायदा केवल सौरभ शर्मा को ही नहीं, बल्कि उसके तथाकथित मददगारों को भी मिल गई है। एक तरह से पर्दे के पीछे रहकर सौरभ शर्मा को काली कमाई का बादशाह बनाने वाले नेताओं को भी क्लीनचिट दे दी गई है। गौरतलब है कि आय से अधिक संपत्ति से लेकर कई अलग-अलग आर्थिक अपराधों के मामले में सौरभ पर लोकायुक्त पुलिस, ईडी और आयकर विभाग ने कार्रवाई की थी। इसके बाद 28 जनवरी को उसे गिरफ्तार किया गया था। लोकायुक्त पुलिस ने 19 दिसंबर 2024 को उसके घर और जयपुरिया स्कूल की निर्माणाधीन बिल्डिंग में छापा मारा था। इस दौरान सौरभ के दोनों ठिकानों से करीब 50 लाख रुपए से अधिक के जेवर, लाखों रुपए की नकदी और की करीब ढाई क्विंटल चांदी की सिल्लियां मिली थी। वहीं, देर रात को मेंडोरा के जंगल में एक इनोवा कार में करीब 54 किलो सोना और 10 करोड़ रुपये नकदी बरामद हुए थे। यह कार सौरभ के करीबी चेतन सिंह गौर के नाम रजिस्टर्ड थी। बाद में चेतन की भी गिरफ्तारी हुई, वहीं उनके एक अन्य पार्टनर शरद जायसवाल भी गिरफ्तार हुआ। लेकिन तीनों ने इनोवा में मिले माल को अपना नहीं माना। सूत्रों का कहना है कि गिरफ्तारी के 60 दिन से ज्यादा समय बीतने के बाद भी लोकायुक्त कोर्ट में चालान पेश नहीं कर सकी है। इस कमजोरी का फायदा सौरभ को मिला है, इसी कारण उसे फायदा मिला है।
गिरफ्तारी भी सवालों में
सौरभ शर्मा की गिरफ्तारी भी सवालों के घेरे में रही है। सुरक्षित रखने के आश्वासन पर ही सौरभ ने सरेंडर किया था। मामला सामने आने के 40 दिन बाद 28 जनवरी को सौरभ शर्मा को लोकायुक्त पुलिस ने नाटकीय ढंग से गिरफ्तार किया था। इससे एक दिन पहले उसने आत्मसमर्पण के लिए भोपाल जिला न्यायालय के विशेष न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत होकर प्रार्थनापत्र दिया था। इस पर अगले दिन सुबह सुनवाई होनी थी। इसके पहले नाटकीय गिरफ्तारी से स्पष्ट हो गया था। इसके साथ ही सौरभ शर्मा और उसके पीछे छिपे चेहरों को बचाने के लिए पटकथा लिख ली गई है। यह संदेह भी सही निकला कि सौरभ को बेदाग बचाने के आश्वासन पर ही जांच एजेंसियों के सामने उसने मुंह नहीं खोला और सरेंडर भी कर दिया।
नहीं कराया गया नार्को टेस्ट
जानकारों का कहना है कि इस पूरे मामले में घोर लापरवाही बरती गई है। लोकायुक्त पुलिस, ईडी और आयकर विभाग ने विवेचना में लापरवाही बरती। वहीं जानबूझकर नार्को टेस्ट नहीं कराया। पूर्व पुलिस अधिकारियों का मानना है कि जानबूझकर उसका नार्को टेस्ट नहीं कराया गया। लोकायुक्त पुलिस कहती रही कि 52 किलो सोना और 11 करोड़ रुपये नकदी किसकी है, यह प्रमाणित करना आयकर विभाग का काम है, क्योंकि उसने ही गाड़ी से यह नकदी और सोना बरामद किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केके मिश्रा ने कहा कि लोकायुक्त पुलिस का यह तर्क अजीबोगरीब है कि मामला गंभीर है। इसलिए सभी दस्तावेज व साक्ष्यों के पूर्ण परीक्षण के बाद अभियोजन की स्वीकृति मिलने पर चार्जशीट पेश की जाएगी। यह बात अपने दायित्वों के प्रति अयोग्यता या सरकारी दबाव या भारी भरकम भ्रष्टाचार में भी भ्रष्टाचार होने का स्पष्ट संकेत हैं। 60 दिनों की अवधि में चालान पेश करने की बाध्यता के बावजूद लोकायुक्त पुलिस ने कानून की मंशा के विरुद्ध समय पूर्व इस संबंध में तैयारी क्यों नहीं की गई।
लोकायुक्त संगठन को भंग करने की मांग
सौरभ शर्मा की जमानत को लेकर कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री मुकेश नायक का कहना है कि लोकायुक्त जैसी संस्था आज पहरेदार नहीं बल्कि भ्रष्टाचार में भागीदार हो गई है। लोकायुक्त को भंग कर देना चाहिए। कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष मुकेश नायक ने कहा कि पिछले दो महीनों से सौरभ शर्मा मध्य प्रदेश की सुर्खियों में है। अब खबर आई कि सौरभ की जमानत हो गई। साथ में यह भी पता चला है कि लोकायुक्त ने 60 दिन तक चालान पेश नहीं किया जो जमानत का आधार बन गया। सौरभ शर्मा की जमानत लोकायुक्त, मप्र की पुलिस और प्रदेश सरकार के साथ जितनी भी जांच एजेंसियां हैं उनके लिए काला धब्बा है। इतिहास में उनकी बेईमानी और निर्लज्जता को याद किया जाएगा। लोकायुक्त ने 60 दिन तक चालान पेश नहीं किया और यह सिद्ध कर दिया कि लोकायुक्त पहरेदार नहीं बल्कि हिस्सेदार है।
नेताओं को बचाने लिखी गई पटकथा
काली कमाई के प्रतीक बने परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा के कथित मददगार और उसके पीछे छिपे नेताओं को बचाने जो पटकथा लिखी गई थी, उसी के अनुसार अब उनके चेहरों का दाग दिख नहीं पाएगा। सौरभ शर्मा और उसके साथियों को लोकायुक्त की विशेष कोर्ट से जमानत मिलने के बाद अब आयकर विभाग द्वारा जब्त 52 किलो सोना और 11 करोड़ रुपये नकदी किसकी है, यह रहस्य भी बना ही रहेगा। माना यही जा रहा है कि सौरभ शर्मा और उसके सहयोगी नेताओं को बचाने के लिए ही लोकायुक्त पुलिस सहित ईडी और आयकर विभाग ने उनका नार्को टेस्ट कराकर सच्चाई सामने लाने का प्रयास नहीं किया। यह जांच की कमजोरी ही कही जाएगी कि तीन जांच एजेंसियां आयकर विभाग, ईडी और लोकायुक्त पुलिस भी पता नहीं लगा पाई कि लावारिस पड़ी कार में रखा 52 किलो सोना और लगभग 11 करोड़ रुपये नकदी का असली मालिक कौन है।