एक दर्जन बंद मामलों पर… लोकायुक्त की नजर हुई टेड़ी, फिर से होगी जांच

लोकायुक्त
  • कस सकता है…. पूर्व स्पेशल डीजी संजय राणा पर शिकंजा

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। लोकायुक्त संगठन में 19 माह तक डीजी लोकायुक्त पदस्थ रहे स्पेशल डीजी पुलिस डीजी संजय राणा के कार्यकाल में जिन मामलों में क्लोजर रिपोर्ट लगाई गई थी उनमें से एक दर्जन मामलों की जांच फिर से लोकायुक्त पुलिस द्वारा किए जाने का निर्णय कर लिया गया है। इसकी वजह से पूर्व डीजी लोकायुक्त की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना शुरू हो गए हैं। बताया जा रहा है उनके कार्यकाल में कुल 25 मामले ऐसे थे, जिनको बिना पूरी तरह से जांच के ही बंद कर दिया गया था।  यह वे मामले थे, जिनकी शिकायत आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने की थी। अब इन मामलों में कर्मचारियों की संपत्ति की जानकारी नए सिरे से विभागों से मांगी गई है। लोकायुक्त संगठन की इस कार्रवाई से कर्मचारियों में हड़कंप की स्थिति बन गई है। यही नहीं इन मामलों में अब लोकायुक्त मुख्यालय द्वारा विभाग के मैदानी अमले को भी अपने स्तर पर संबंधित कर्मचारियों की संपत्ति की पड़ताल करने के लिए निर्देशित कर दिया गया है। खास बात यह है कि यह मामले तृतीय और चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों से संबंधित हैं, जो लंबे समय से मलाईदार विभागों में पदस्थ रहे हैं। दरअसल यह सभी मामले करीब एक साल पुराने हैं। स्पेशल डीजी राणा के सेवानिवृत्त होने के बाद इन मामलों में फिर से लोकायुक्त से शिकायतें की गई थीं। इनमें कहा गया कि इन मामलों को कथित तौर पर लेनदेन कर बंद किया गया है। इसके बाद लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने सभी मामलों में फिर से खोलने के निर्देश दिए। फरवरी 1982 में मध्य प्रदेश लोकायुक्त संगठन के अस्तित्व में आने के बाद, यह अपनी तरह की पहली बड़ी कार्रवाई है।
कोर्ट से नहीं मिल सकी राहत
कर्मचारी लॉबी ने एक कर्मचारी संगठन के जरिए हाईकोर्ट में इन केसों को फिर से न खोलने के संबंध में अपील की थी। कोर्ट ने उसे अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने लोकायुक्त कार्यालय के फैसले को जायज ठहराया। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के आय से अधिक संपत्ति की स्वीकृति और खातमें से जुड़े मामले में लोकायुक्त द्वारा स्थापित जांच जारी रखने के निर्देश दिए। वहीं हाईकोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान इस पर रोक लगा दी थी। मामले में मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ व न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र कुमार कौरव ने लोकायुक्त संगठन को आगामी सुनवाई तक जांच जारी रखने की अनुमति दी है। इससे पहले लोकायुक्त की ओर से अधिवक्ता अभिजीत अवस्थी द्वारा अंतरिम आवेदन प्रस्तुत करने की मांग की गई थी।  आय से अधिक संपत्ति के प्रकरण में प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों की अभियोजन स्वीकृति और खातमें का अधिकार लोकायुक्त को था जबकि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के मामले में यह कार्रवाई लोकायुक्त प्राधिकृत अधिकारी करते थे। लोकायुक्त को इस बात की शिकायत मिली कि कई ऐसे मामले हैं। जहां आय से अधिक संपत्ति के कई मामलों में बगैर जांच के ही खात्मा लगा दिया गया है।  जिसके बाद 11 अक्टूबर को इस मामले में एक परिपत्र जारी कर दिया गया था। इस परिपत्र में कहा गया था कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के टेप और आय से अधिक संपत्ति के खात्मा रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत करने से पहले लोकायुक्त की स्वीकृति लेने अनिवार्य होगी। हाईकोर्ट में इस परिपत्र को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में 17 जनवरी को रोक लगा दी थी। अब हाईकोर्ट द्वारा इस मामले में लोकायुक्त संगठनों को कई अधिकार देते हुए बड़ा लाभ दिया गया है।
यह पायी गई बंद मामलों में स्थिति
बंद किए गए मामलों की लोकायुक्त संगठन द्वारा अपने स्तर पर कराई गई प्रारंभिक जांच में पाया गया है कि 25 कर्मचारियों के मामलों में से 10 की जांच और कार्रवाई संजय राणा के समय सही रुपए से की गई है। यह मामले बंद करने योग्य थे। तीन मामलों में कर्मचारियों की मौत हो चुकी है, जिससे इसे खोलना सही नहीं है। जबकि 12 केस में पाया गया कि इनको बिना परीक्षण किए ही बंद कर दिए गए। इसके चलते अब इसकी फिर से जांच शुरू की गई है। जांच डायरेक्टर जनरल राजीव टंडन के नेतृत्व में चल रही है।
किस जिले के कितने मामले
लोकायुक्त पुलिस सूत्रों के मुताबिक जिन बंद मामलों की नए सिरे से जांच करने का निर्णय लिया गया है, उनमें भोपाल और सागर जिले के चार-चार मामले हैं। इसके अलावा इंदौर जिले के दो, रीवा और उज्जैन जिले का एक -एक मामला है।  

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