‘दोषियों’ को सजा नहीं दिला पा रहा लोकायुक्त

लोकायुक्त
  • लोकायुक्त के हाथ बांधे…भ्रष्टाचारी खुलेआम घुम रहे

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में लोकायुक्त भ्रष्टों के खिलाफ लगातार कार्रवाई कर रहा है। लेकिन विडंबना यह है कि लोकायुक्त संगठन दोषियों को सजा दिलाने में सफल नहीं हो पा रहा है। दरअसल, लोकायुक्त भ्रष्टाचार के मामलों में दोषियों को सजा दिलाने में कुछ चुनौतियों का सामना करता है। अभियोजन स्वीकृति की देरी, झूठी शिकायतें, और फरियादियों का बयान से पलट जाना कुछ ऐसी समस्याएं हैं जो कार्रवाई को प्रभावित करती हैं। मप्र में सरकारी अफसर-कर्मचारी के यहां लोकायुक्त छापामार कार्रवाई करता है। छापे में करोड़ों की बेनामी प्रॉपर्टी मिलती है। फिर भी भ्रष्ट अफसर-कर्मचारी का कुछ नहीं बिगड़ता। सजा मिलना तो दूर मामले कोर्ट तक ही नहीं पहुंच पाते क्योंकि लोकायुक्त की जांच ‘तसल्ली’ से चलती रहती है, सालों तक। मप्र में आईएएएस, आईपीएस और आईएफएस श्रेणी के कई अधिकारी गबन, घोटाले, आय से अधिक एवं अनुपातहीन संपत्तियों के मामले में आरोपी हैं। कुछ की जांच लोकायुक्त टीम पूरी नहीं कर पा रही है, जिनकी जांच पूरी भी हो चुकी है और आरोप सही पाए गए हैं, उनके विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र पेश करने की अनुमति शासन से नहीं मिल पा रही है। आलम यह है कि विभिन्न विभागों और शासकीय कार्यालयों में आर्थिक अनियमितता, गड़बड़ी और घोटालों से जुड़े मामलों में शिकायत और जांच के बाद दोनों ही जांच एजेंसियों लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू ने मप्र के कई आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सहित राज्य प्रशासनिक, पुलिस और वन सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के प्रकरण पंजीबद्ध किए हैं। लेकिन वर्षों से इनके चालान की अनुमति शासन के पास अटकी पड़ी है। इनमें कई अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। खास बात यह है कि पिछले साल मुख्यमंत्री के सख्त निर्देशों के बाद सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी विभागों से इन दोषी अधिकारियों की सूची मांगी थी तथा चालान की अनुमति दिए जाने के निर्देश भी दिए थे। कुछ अधिकारियों के चालान की अनुमति दी भी गई। लेकिन बाद में मामला दब गया।
एक साल में 88 प्रकरणों में ही सजा
लोकायुक्त पुलिस ने वर्ष 2024 में एक जनवरी से 31 दिसम्बर के बीच कुल 237 आपराधिक प्रकरण दर्ज किए। इनमें 196 प्रकरण रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने ((ट्रेप) के, अनुपातहीन संपत्ति मामले में कुल 15 प्रकरण पंजीबद्ध किए गए। इनमें 9 छापे मारे गए तथा 6 प्रकरण आय से अधिक संपत्ति के भी दर्ज किए गए। इसी क्रम में 26 प्रकरण पद के दुरुपयोग के भी दर्ज किए गए। इस एक साल में अनुपातहीन संपत्ति के 15 मामलों में लगभग 21 करोड़, 83 लाख 30 हजार 142 रुपये की संपत्ति प्रथम दृष्टया उजागर हुई। विशेष पुलिस स्थापना, लोकायुक्त संगठन की विभिन्न इकाईयों द्वारा एक साल में कुल 176 प्रकरणों में न्यायालयों में चालान प्रस्तुत किए। एक साल में कुल 88 प्रकरणों में ही आरोपियों को सजा मिल सकी। वहीं मप्र में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) की कुल 7 क्षेत्रीय इकाइयां भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, उज्जैन और सागर संभाग में कार्यरत हैं।
लगातार कार्रवाई कर रही लोकायुक्त पुलिस
शासकीय अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा रिश्वत मांगे जाने की शिकायत पर रंगे हाथों गिरफ्तारी (ट्रेप) और अनुपातहीन एवं आय से अधिक संपत्ति मामलों में शिकायत पर मप्र की विशेष पुलिस स्थापना (लोकायुक्त) टीमें कार्रवाई तो लगातार कर रही हैं, लेकिन आरोपी अधिकारियों को सजा नहीं दिला पा रही हैं। आईएएएस, आईपीएस और आईएफएस श्रेणी के कई अधिकारी गबन, घोटाले, आय से अधिक एवं अनुपातहीन संपत्तियों के मामले में आरोपी हैं। कुछ की जांच लोकायुक्त टीम पूरी नहीं कर पा रही है, जिनकी जांच पूरी भी हो चुकी है और आरोप सही पाए गए हैं, उनके विरुद्ध न्यायालय में आरोप पत्र पेश करने की अनुमति शासन से नहीं मिल पा रही है। भ्रष्टाचार के मामलों में दर्ज हो रहे प्रकरणों के प्रमाणित होने के बाद चालान और सजा की प्रक्रिया सिर्फ कर्मचारियों तक सिमटी है।  मप्र लोकायुक्त कार्यालय के आंकड़े देखें तो पिछले एक साल में अर्थात 1 जनवरी 2024 से 31 दिसम्बर 2024 के बीच लोकायुक्त के पास भ्रष्टाचार से संबंधित कुल 4290 शिकायतें पहुंचीं। एक साल में कुल 3724 शिकायतें निराकृत की गईं, जबकि 566 शिकायतों को जांच के लिए पंजीबद्ध किया गया। संगठन ने जांच के बाद 309 प्रकरणों को समाप्त कर दिया। जबकि विभिन्न विभागों के माध्यम से 42 कर्मचारियों को दंडित कराया गया। 2 प्रकरणों में विभागीय जांच एवं विभागीय कार्यवाही की अनुशंसा भी की। साथ ही 74 लाख 06 हजार 841 रुपये की वसूली भी की गई।
लोकायुक्त के सामने चुनौतियां
भ्रष्टाचार के मामलों में अभियोजन स्वीकृति के बिना आगे की कार्रवाई नहीं हो सकती है। यदि शासन स्वीकृति नहीं देता है, तो लोकायुक्त न्यायालय का रुख कर सकता है, लेकिन निर्णय लेने में देरी होती है। यही नहीं भ्रष्टाचार के मामलों में फरियादी अपनी शिकायत या बयान से मुकर जाते हैं, जिससे जांच और कार्रवाई प्रभावित होती है। कुछ मामलों में आरोपी जांच में सहयोग का वादा करके जमानत पर रिहा हो जाते हैं। कुछ मामलों में गवाही और दस्तावेज समय पर उपलब्ध नहीं होते हैं, जिससे जांच में देरी होती है। लोकायुक्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, कुछ चुनौतियों के कारण वह पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पाता है।

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