भ्रष्टों के खिलाफ सबूत नहीं जुटा पा रहा लोकायुक्त

 लोकायुक्त
  • पकड़े जाने के बाद कई आरोपियों को मिल रही कोर्ट से राहत

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। घूसखोरी, आय से अधिक संपत्ति जमा करने या सार्वजनिक प्राधिकार का दुरुपयोग करने वाले भ्रष्टों के खिलाफ लोकायुक्त की कार्रवाई अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पा रही है। ऐसे मामलों में ट्रैपिंग या छापेमारी के बाद एफआईआर तो दर्ज हो रही है, लेकिन सजा नहीं मिल पा रही है। सबूत के अभाव में कोर्ट में दर्ज होने वाले केस कमजोर पड़ जा रहे हैं। इस कारण आरोपी दोषमुक्त हो रहे हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति लागू है। उसके बाद भी भ्रष्टाचार रूकने का नाम नहीं ले रहा है। रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार हुए और आय से अधिक संपत्ति के विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त थाने में दर्ज भ्रष्टाचार के प्रकरणों में बड़ी संख्या में आरोपी साक्ष्य के अभाव में दोष मुक्त हो रहे हैं। कुछ प्रकरणों में न्यायालय के आदेश पर भी खात्मा रिपोर्ट लगाई गई है। ऐसे में लोकायुक्त की कार्रवाई के दौरान उपयोग किए जाने वाले साक्ष्यों पर सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तारी जैसे प्रकरणों में आरोपी और फरियादी के बीच रिश्वत लेने-देने को लेकर हुई बातचीत और गिरफ्तारी के बाद आरोपी के हाथों, कपड़ों अथवा बैग आदि से बरामद नकदी एवं हाथ धुलाने पर निकले गुलाबी रंग को न्यायालय में प्रमुख साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जाता है। ऐसे में लोकायुक्त के यह प्रमुख साक्ष्य न्यायालय में घूसखोरी और भ्रष्टाचार को साबित कर पाने में नाकाफी साबित हो रहे हैं।
कई प्रकरणों का होगा पुनर्मूल्यांकन
कार्यालय विशेष पुलिस स्थापना (लोकायुक्त) संगठन द्वारा जिला स्तर पर बड़ी संख्या में प्रकरणों में खात्मा लगवा दिया था तो, ऐसे अन्य कई प्रकरणों को खात्मे के लिए न्यायालय में प्रस्तुत कर भी दिया था। लेकिन इस बीच सचिव लोकायुक्त कार्यालय, डॉ. अरुण कुमार गुप्ता ने 11 अक्टूबर 221 को महानिदेशक, विशेष पुलिस स्थापना, लोकायुक्त कार्यालय को पत्र लिखकर निर्देशित किया था कि विशेष पुलिस स्थापना (लोकायुक्त) के समस्त पुलिस अधीक्षकों को सूचित किया जाए कि वे 1 जून 2020 से 31 अगस्त 2021 की अवधि में न्यायालय में प्रस्तुत खात्मा रिपोर्टों को इस निवेदन के साथ वापस लें कि यह प्रकरण पुनर्मूल्यांकन कर पुन: प्रस्तुत किए जाएंगे। जारी आदेश में निर्देशित किया गया था कि ऐसी प्रत्येक रिपोर्ट मय केस डायरी महानिदेशक विशेष पुलिस स्थापना कार्यालय की नस्त के साथ 28 अक्टूबर 2021 तक लोकायुक्त के समक्ष पुनर्मूल्यांकन के लिए प्रस्तुत किए जाएं। आदेश में कहा गया कि यदि विशेष न्यायालयों द्वारा प्रकरणों में खात्मा स्वीकार कर लिया गया है तो ऐसे जिलेवार प्रकरणों की सूची तैयार कर तत्काल लोकायुक्त के अवलोकन के लिए 28 अक्टूबर 2021 तक प्रस्तुत किए जाएं।
मुकदमा चलाने के लिए अपर्याप्त साक्ष्य
विभाग ने स्वीकार किया है कि लोकायुक्त द्वारा दर्ज कुल मामलों में आरोपितों पर मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य का अभाव है। इनमें अधिकांश मामले सार्वजनिक प्राधिकार के दुरुपयोग से संबंधित हैं। प्राथमिक जांच के दौरान कांड से जुड़े लोगों को आरोपी बना दिया तो है, लेकिन लोकायुक्त में उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं दे पाती, जिससे केस कमजोर पड़ जाता है। इससे आरोपियों को बचने का मौका मिल जाता है। विशेष पुलिस स्थापना (लोकायुक्त) की एक रिपोर्ट के 5 अनुसार 2 मई 2019 से 10 अगस्त 2021 के बीच लोकायुक्त संगठन में दर्ज भ्रष्टाचार के 60 प्रकरणों में 70 से अधिक आरोपियों को विशेष न्यायालयों ने दोष मुक्त कर दिया था। लोकायुक्त टीम ने इन प्रकरणों में खात्मा रिपोर्ट भी लगा दी थी। खास बात यह है कि इनमें 50 मामले ऐसे हैं, जिनमें लोकायुक्त संगठन न्यायालय में पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका। पांच प्रकरणों में आरोपियों की मृत्यु के कारण न्यायालय ने खात्मा रिपोर्ट लगा दी थी। जबकि इनमें पांच प्रकरणों में उच्च न्यायालय के आदेश पर खात्मा लगाया गया था। 

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