लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू सजा दिलाने में अव्वल

लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू
  • 65 फीसदी मामलों में कोर्ट ने अपराधियों को भेजा सलाखों के पीछे

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। जांच में लेट-लतीफी और चालान पेश करने की अनुमति मिलने जैसे गंभीर सवालों से जूझ रही लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू जैसी जांच एजेंसियां प्रदेश में अपराधियों को सजा दिलाने में सबसे आगे हैं। वर्ष 2024 के आंकड़ों के अनुसार, एक तरफ जहां प्रदेश के पुलिस थानों में दर्ज मारपीट, हत्या के प्रयास, हत्या जैसे अपराधों में केवल 28 फीसदी अपराधियों को ही अदालत ने सजा सुनाई, वहीं ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त ने 65.51 फीसदी आरोपियों को कोर्ट से सजा दिलाने में सफलता हासिल की है।
राज्य अभियोजन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार मादक पदार्थों की तस्करी से जुड़े एनडीपीएस के मामलों में सजा का प्रतिशत पिछले साल 43.86 रहा, वहीं अनुसूचित जाति-जनजाति के मामलों में केवल 23 फीसदी आरोपियों की ही सजा हुई। इसके अलावा लैंगिक अपराधों में भी केवल 28.68 प्रतिशत अपराधी ही अदालत के आदेश पर जेल की सलाखों के पीछे भेजे गए।
161 केस में से 95 में हुई सजा
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के 2024 में 826 केस लंबित थे। दोनों जांच एजेंसियों ने पिछले साल कुल 199 प्रकरणों में चालान कोर्ट के सामने पेश किया। अदालत ने इन 1025 मामलों में में सुनवाई करते हुए कुल 161 मामलों में फैसला सुनाया, जिनमें 95 मामलों में दोषियों को सजा सुनाई गई, जबकि 50 में आरोपियों को बरी कर दिया गया। इसके अलावा, चार मामलों में आरोपियों को डिस्चार्ज कर दिया गया और एक केस को हाईकोर्ट ने खत्म कर दिया। दो मामलों में आरोपी फरार रहे, जबकि 864 मामले अदालतों में लंबित रहे। केस निपटाने के आधार पर आंकड़ों को देखा जाए तो बीते एक साल में कुल 65.51 प्रतिशत आरोपियों को सजा हुई। ये सभी आरोपी आर्थिक अपराधों और भ्रष्टाचार में लिप्त थे। इनमें अधिकांश सरकारी कर्मचारी हैं।
अनुसूचित जाति-जनजाति के मामलों में सबसे कम सजा
प्रदेश में आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) से जुड़े मामलों में पिछले साल सजा का प्रतिशत सबसे कम रहा। अभियोजन संचालनालय की जानकारी के अनुसार, प्रदेश में अजा और अजजा के वर्ष 2024 में कुल 37,500 मामले लंबित थे। इसके अलावा 10,649 नए मामले भी कोर्ट में पेश किए गए। इस तरह एक साल में कुल 48, 149 केस पर सुनवाई हुई। इनमें से 8,030 मामलों में अदालत ने फैसला दिया, जिसमें केवल 1,413 को ही सजा सुनाई गई और 4,624 को कोर्ट ने बरी कर दिया, जबकि 1,409 मामलों में आपसी राजीनामा हो गया। आंकड़ों के हिसाब से एक साल में कुल 23.40 प्रतिशत आरोपियों को ही सजा दी गई। इस साल की शुरुआत में अजा-अजजा से जुड़े 40,119 मामले कोर्ट में लंबित रहे।

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