निकायों को भारी पड़ा समय पर बिजली बिल का भुगतान न करना

बिजली बिल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकायों को समय पर बिजली बिलों का भुगतान न करना अब भारी पड़ रहा है। इसकी वजह से वित्त विभाग को इस मामले में सख्ती दिखानी पड़ रही है। निकायों में यह हाल तब  हैं,  जबकि वह छोटे-छोटे बकायादारों पर तो वसूली के लिए सख्ती करती है , लेकिन जब निकायों की खुद की बारी आती है तो बिल भुगतान को लेकर चुप्पी साध ली जाती है। यही वजह है कि अब इस मामले में वित्त विभाग को बार-बार सख्ती करनी पड़ रही है। नगरीय निकायों द्वारा लगातार बिलों का भुगतान नहीं किए जाने की वजह से बीते साल से वित्त विभाग को हर महीने निकायों को दी जाने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि में से कटौती कर बिजली विभाग को भुगतान करना पड़ रहा है। बीते डेढ़ साल में वित्त विभाग द्वारा निकायों को दी जाने वाली राशि में से 516 करोड़ काट कर बिजली कंपनियों को भुगतान करना पड़ा है। इतनी बड़ी राशि न मिलने की वजह से नगरीय निकायों का बजट बिगड़ गया है। अब इस मामले मेें निकायों द्वारा नगरीय प्रशासन संचालनालय से आपत्ति जताई जा रही है। दरअसल प्रदेश में चुंगी कर की वसूली बंद होने के बाद इसकी क्षतिपूर्ति के रूप में शासन नगरीय निकायों को राशि देता है। इस राशि से ही अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन-भत्तों का भुगतान किया जाता है। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब चार साल पहले तक नगरीय निकायों को चुंगी क्षतिपूर्ति की पूरी राशि का भुगतान किया जाता था, लेकिन कांग्रेस की सरकार आने के बाद इसमें कटौती कर दी गई थी। इस बीच अधिकांश नगरीय निकायों द्वारा बिजली के बिलों का भुगतान ही नहीं किया गया , जिसकी वजह से बिल की बड़ी राशि बकाया हो गई। इस वजह से बिजली कंपनियों द्वारा निकाय के कार्यालयों, स्ट्रीट लाइट्स की बिजली काटी जाने लगी थी। इस वजह से वित्त विभाग ने निकायों को दी जाने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि में कटौती कर बिलों का सीधा भुगतान करना शुरु कर दिया गया। इसकी वजह से भोपाल और इंदौर जैसे महानगरों के नगर निगमों के हिस्से से सात से 12 करोड़ रुपए तक की कटौती की जाने  लगी। स्थिति यह है कि दिसंबर, 2021 से मार्च 2023 के दौरान चुंगी क्षतिपूर्ति से 441.33 करोड़ रुपए की कटौति की गई है।
इस तरह कि है आपत्ति
चुंगी की राशि में लगातार की जाने वाली कटौती से परेशान कुछ निकायों ने नगरीय प्रशासन संचालनालय को पत्र लिख कर आपत्ति जताई है। इसमें कहा है कि वास्तविक बकाया कितना है, यह निकाय से पूछा जाना चाहिए। बिजली कंपनी की बिलिंग के आधार पर कटौती क्यों की जा रही है। पत्र में यह भी कहा है कि बिजली कंपनी से निकायों को टैक्स के तौर पर राशि लेना है। बिजली के बिल से इसे एडजस्ट क्यों नहीं किया जा रहा है। इधर, नगरीय प्रशासन संचालनालय के अफसर भी वित्त विभाग की सीधी कटौती से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि वित्त को बकाया डिमांड संचालनालय को भेजना चाहिए। फिर यहां से परीक्षण के बाद राशि काट कर बिजली कंपनी को दी जाना चाहिए।
वसूली में नहीं दिखाते रुचि
दरअसल प्रदेश के अधिकांश निकायों द्वारा करों की वसूली में रुचि नहीं ली जाती है, जिसकी वजह से आय में वृद्वि नहीं हो पती है। इसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति खराब बनी रहती है। अगर निकाय करों की वसूली समय पर कर लें, तो फिर उन्हें इस तरह की स्थिति का सामना ही नहीं करना पड़े। इसके अलावा निकायों को फिजूलखर्ची पर भी रोक लगाने के प्रयास करने चाहिए।

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