
- मप्र विद्युत नियामक आयोग ने कंपनियों को दिया लॉस कम करने का टारगेट
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन (टीएंडडी) से होने वाली हानि को रोकने में बिजली कंपनियां सफल नहीं हो पा रही है। इसको देखते हुए मप्र विद्युत विनियामक आयोग ने अब लाइन लॉस कम करने के दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। अगले चार साल में बिजली कंपनियों को 8 से 10 फीसदी तक लाइन लॉस कम करना होगा। दरअसल, मध्य और पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी डिस्ट्रीब्यूशन लॉस को कम नहीं कर पा रही हैं। इससे कंपनियां घाटे में चल रही हैं। आयोग ने फिर बिजली कंपनियों को वितरण हानियां कम करने का टारगेट दिया है। इस मामले में पश्चिमी क्षेत्र विद्युत कंपनी की स्थिति सबसे बेहतर है। आयोग द्वारा कंपनी के काम की सराहना की गई है। जानकारी के अनुसार वितरण हानियों की वजह से बिजली कंपनियों को 3 हजार करोड़ से अधिक की अतिरिक्त बिजली खरीदना पड़ी। इससे टैरिफ में इजाफा हुआ। गौरतलब है कि बिजली कंपनियों ने 4 हजार करोड़ से अधिक का घाटा बताते हुए बिजली के टैरिफ में 7.52 फीसदी इजाफा करने की मांग की थी। आयोग ने कंपनियों की इस मांग को स्वीकार नहीं किया है। आयोग ने बिजली की दरों में 3.46 फीसदी का इजाफा किया है। आयोग ने कहा कि मध्य और पूर्व क्षेत्र विद्युत कंपनियों की कार्यप्रणाली में कमी है। इससे वितरण हानियां कम नहीं हो पा रही हैं और घाटे का भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जा सकता है। आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का लॉस 28 फीसदी, मध्य क्षेत्र का लॉस 25 फीसदी और पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी का लाइन लॉस 13 फीसदी रहा है। दोनों कंपनियों को अपना लाइन लॉस 17 फीसदी तक लाने के निर्देश है। कंपनियां लाइन लॉस में एक वित्तीय वर्ष में 3 फीसदी तक की कमी लाती हैं, तो उन्हें मरम्मत कार्य और रखरखाव के लिए 0.5 फीसदी अतिरिक्त राशि प्राप्त करने की पात्रता भी होगी। यह निर्देश भी विद्युत विनियामक आयोग ने जारी किए हैं। गौरतलब है कि टीएंडडी से होने वाली हानि को भारत के बिजली सेक्टर में सुधार की राह में सबसे बड़े अड़चन के तौर पर देखा जाता रहा है। हालांकि जो आंकड़े अब सामने आ रहे हैं, उससे साफ है कि इस समस्या पर काबू पाने में सफलता मिलने लगी है।
बिजली कंपनियों का घाटा कम नहीं हो रहा
एक दशक पहले तक टीएंडडी से होने वाली हानि (वह बिजली जिसकी कीमत बिजली वितरण कंपनियां नहीं वसूल पाती) 35 प्रतिशत तक होती थी, लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक यह घटकर 15 प्रतिशत हो गई है। पिछले दो वित्त वर्षों में यह 22 प्रतिशत से घटकर 15.41 प्रतिशत पर आ गया है। हालांकि वैश्विक स्तर के मुकाबले (सिर्फ आठ फीसदी) अभी यह तकरीबन दोगुना है। ट्रांसमिशन लॉस आपूर्ति की गई बिजली और बिल किए गए बिजली के बीच का अंतर है। उदाहरण के लिए यदि 10 यूनिट ऊर्जा की आपूर्ति की जाती है और बिल केवल 8 यूनिट का बनता है, यानी केवल 8 यूनिट उपभोक्ताओं के मीटर तक पहुंचती है। उपभोक्ता तक पहुंचने में 2 यूनिट बिजली नष्ट हो जाती है। यह वितरण घाटा कहलाता है। वितरण घाटे के लिए मुख्य रूप से बिजली चोरी और बिजली के ट्रांसमिशन में टूट-फूट को जिम्मेदार ठहराया जाता है। मप्र विद्युत विनियामक आयोग ने बिजली कंपनियों को इस बाद भी घाटा कम नहीं हो रहा है।
10 फीसदी तक कम करना होगा लाइन लॉस
मप्र विद्युत विनियामक आयोग ने साल 2023-24 से 2026-27 तक की गाइडलाइन बिजली कंपनियों के लिए जारी की है। इसके तहत आयोग ने अब लाइन लॉस कम करने के दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। अगले चार साल में बिजली कंपनियों को 8 से 10 फीसदी तक लाइन लॉस कम करना होगा। अगर बिजली कंपनियां अपना लाइन लॉस कम कर दें, तो कंपनियों को हर साल बिजली का टैरिफ बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बढ़ाने की जगह टैरिफ कम भी किया जा सकता है।
घाटे की वजह है अतिरिक्त बिजली की खरीदी
आयोग में दायर याचिका में बिजली कंपनियों ने बिजली खरीदी के आंकड़े भी उपलब्ध कराए है। घाटे की वजह से पूर्व क्षेत्र वितरण कंपनी 4,277.76 एमयू और मध्य क्षेत्र ने 3,711.57 एमयू अतिरिक्त मात्रा में बिजली खरीदी है। वितरण घाटा अधिक होने की वजह से बिजली कंपनियों को यह बिजली खरीदना पड़ी। वहीं, पश्चिम क्षेत्र ने 861.28 एमयू की बचत की है, क्योंकि उनका घाटा मानकों से कम है। इससे साफ होता है कि मध्य क्षेत्र को 4277.76 मिलियन यूनिट और पूर्व क्षेत्र को 3711.75 मिलियन यूनिट बिजली खरीदना पड़ी। कुल मिलाकर लगभग 800 करोड़ यूनिट ऊर्जा अतिरिक्त खरीदना पड़ी और यदि इसकी लागत की गणना की जाए 4 रुपए प्रति यूनिट की दर पर लगभग 3200 करोड़ रुपए की खरीदी हुई। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर कंपनियां अपना यह घाटा कम कर लें, तो बिजली कंपनियों को घाटा नही होगा और बिजली का टैरिफ बढ़ाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।