
- प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना में भ्रष्टाचार
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में जिस तेजी से सडक़ों का निर्माण हो रहा है, उसी तेजी से अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलभगत से सरकार को चूना लगाया जा रहा है। इसका खुलासा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य में प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत बनी सडक़ों में बड़ा भ्रष्टाचार हुआ। कैग ने डामर खरीदी में 414.94 करोड़ की धोखाधड़ी पकड़ी। यह धोखाधड़ी सडक़ बनाने वाले मप्र ग्रामीण
सडक़ विकास प्राधिकरण (एमपीआरआरडीए) ने 2017 से लेकर 2021 तक की। ठेकेदारों को करोड़ों का लाभ दिया।
विधानसभा में पेश कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश में 22,574.21 करोड़ की 18910 सडक़ें बनाईं। 2017 से 21 तक कैग की जांच में पता चला, केंद्र ने मप्र को 7879.15 करोड़ की 1190 सडक़ों के उन्नयन की मंजूरी दी। एमपीआरआरडीए ने 2776.31 करोड़ की 666 सडक़ों का ही उन्नयन किया। 49 जिलों में और 75 में 71 पीआइयू में पीएम ग्राम सडक़ों के डामर खरीदी में 414.94 करोड़ की धोखाधड़ी हुई। ठेकेदारों ने सरकारी रिफाइनरियों के फर्जी चालान पेश किए। एक चालन को 2-3 बार लगाया।
तकनीकी कर्मी तैनात नहीं किए
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)की रिपोर्ट में कहा गया है कि सडक़ों के निर्माण के लिए ठेकेदार ने तकनीकी कर्मी तैनात नहीं किए। इस ऐवज में उनसे होने वाली 4.46 करोड़ रुपए की वसूली नहीं हुई। बोलीदाता के चूक की स्थिति में शासकीय हित सुरक्षित करने के लिए 41 प्रतिशत मामलों में अतिरिक्त निष्पादन प्रतिभूति नहीं ली। इसके लिए पीआईयू के महाप्रबंधक जिम्मेदार हैं। पीआईयू-1 छिंदवाड़ा में एसक्यूसी कंसल्टेंसी को 40 करोड़ के अनुबंध पर अनुमानित काम के लिए 2021 में 36.50 करोड़ की अतिरिक्त सेवाओं को एमपीआरआरडीए जबलपुर के मुख्य महाप्रबंधक ने टीओआर तोड़ अनियमित अनुमति दी। मार्च 2021 में 5.01 करोड़ वसूली रायल्टी शासकीय खाते में जमा नहीं कराया जिससे सरकार को नुकसान हुआ है। ठेकेदार 49 प्रतिशत काम समय पर पूरे नहीं कर सके। फिर भी मुख्य महाप्रबंधकों ने 33 प्रतिशत मामलों में हर्जाना नहीं लगाया। 43 प्रतिशत मामलों में 0.05 प्रतिशत से 1 प्रतिशत हर्जाना हुआ है। 42 प्रतिशत स्पीड ब्रेकर, 27 प्रतिशत चेतावनी, साइन बोर्ड नहीं लगाए। मप्र ने केंद्र की निधि को देरी से जारी किया। 4.23 करोड़ ब्याज लगा है।
मनमर्जी से सडक़ें बनाई
कैग की रिपोर्ट में ये भी खुलासे हुए हैं कि पीएम ग्रामीण सडक़ योजना के दूसरे चरण में मनमर्जी से सडक़ें बनाई। सांसद-विधायक, जनपद प्रतिनिधियों से सहमति नहीं ली। एमपीआरआरडीए ने उन्नयन के लिए प्रात्र सडक़ें होने के बाद भी अपात्र सडक़ों को शामिल किया। 56,706 लोगों को सडक़ों का लाभ नहीं मिला। 10 जिलों में परियोजना रिपोर्ट के लिए सलाहकारों ने 7.15 करोड़ प्रभारित किए। पीएम ग्रामीण सडक़ के वास्तविक काम में अंतर था। भंडार व क्रय नियमों का उल्लंघन, तीसरे चरण की सडक़ों के टेंडर दरों में 39 से 58 प्रतिशत लागत बढ़ी। ई-टेंडर में नियमों के उल्लंघन पर एमपीआरआरडीए सीईओ, मुख्य महाप्रबंधक जिम्मेदार हैं।