कीमतों के आंकलन में भी लगा दिया तीन करोड़ से अधिक का चूना

कीमतों के आंकलन

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश की अफसशाही ऐसी हो गई है कि उसे जब भी मौका मिलता है सरकारी खजाने को चूना लगाने में पीछे नही रहती है। ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं। सरकार जितना सुशासन पर जोर दे रही है, अफसर उतना ही सरकार की मंशा पर पलीता लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। अब ताजा मामला सरकारी संपत्ति के मूल्य तय करने में की गई मनमर्जी का सामना आया है।
यह खुलासा भी कैग की रिपोर्ट में किया गया है। कैग की रिपोर्ट के आधार पर अब तक सरकार भी संबंधितों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई करने को लेकर गंभीर नहीं दिख रही है। कैग ने कई विभागों के कई मामलों में न केवल गंभीर आपत्ती ली है बल्कि, कई मामलों में तो उसने सनसनीखेज खुलासे भी किए हैं। इसी तरह का एक मामला सरकारी संपत्ति के मूल्यांकन का भी है। अफसरों ने कृषि भूमि, भवन और भूखंड समेत अन्य संपत्ति का बाजार मूल्य निर्धारित करने में जमकर मनमर्जी दिखाई है। हद तो यह हो गई कि अफसरों ने इस मामले में गाइडलाइन को ही किनारे कर दरें तय कर डालीं। इसके आधार पर ही इन संपत्तियों की  रजिस्ट्री तक हो गर्इं। इनका मूल्य कम आंकने की वजह से सरकारी खजाने को 3.18 करोड़ रुपए का नुसान उठाना पड़ा है। हद तो यह हो गई की इस मामले को कैग ने पकड़ने के  बाद विभाग से जवाब-तलब कर नोटिस भी जारी किए, लेकिन इसके बाद भी वसूली नहीं की जा सकी। दरअसल, संपत्तियों के मूल्यांकन के दौरान जमीनों भूखंड के बाजार मूल्य के निर्धारण के लिए मुद्रांक अधिनियम, पंजीकरण अधिनियम और बाजार मूल्य मार्गदर्शक उपबंध में निर्धारित प्रावधान किए गए हैं। मूल्य निर्धारण के समय इनका पालन किया जाना अनिवार्य है, लेकिन अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया।
इस तरह से लगी चपत
दरअसल कैग द्वारा की गई जांच में पाया गया है कि भोपाल, इंदौर, ग्वालियर एवं जबलपुर उप पंजीयक कार्यालयों के 38 डीड में बाजार मूल्य 113 करोड़ 86 लाख होना चाहिए था, लेकिन उप पंजीयकों ने 82 करोड़ रुपए मानकर उन्हें पंजीकृत कर दिया था। इससे स्पष्ट है कि कृषि भूमि, भवन और भूखण्ड आदि का बाजार मूल्य निर्धारित करने में निर्धारित नियमों का ध्यान नहीं रखा। यही नहीं ऐसे मामलों में उप पंजीयकों ने इन से दस्तावेजों को संपत्तियों के सही मूल्य और उन पर शुल्क निर्धारण के लिए कलेक्टर आॅफ स्टाम्प्स को नहीं भेजा। इसकी वजह से नतीजतन 2.81 करोड़ रुपए के मुद्रांक शुल्क व 37 लाख के पंजीयन शुल्क का कम लिया गया। इससे शासन को 3 करोड़ 18 लाख के राजस्व का नुकसान हुआ है। इस तरह के मामले प्रदेश के चारों महानगरों में सामने आए हैं। इसमें भी सर्वाधिक मामलों में नुकसान भोपाल में हुआ है।
विभाग ने यह दिया स्पष्टीकरण
कैग ने संबंधित विभाग से जानकारी चाही तो विभाग की ओर से बताया गया कि 15 लाख रुपए की वसूली की जा चुकी है। जबकि 2.75 करोड़ की वसूली के नोटिस जारी किए जा चुके हैं।

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