जै बात! भ्रष्टों की हुई बल्ले-बल्ले

भ्रष्टों

– नए कानून में जांच एजेंसियों के बंधे हाथ!

– विभाग प्रमुखों की मेहरबानी भ्रष्ट मातहतों को दे सकती है राहत

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन का वादा किया है, लेकिन केंद्र सरकार के एक कानून ने सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति पर सवाल खड़ा कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने भ्रष्टाचार की जांच के लिए जो नया कानून बनाया है उसमें जांच एजेंसियों के हाथ बांध दिए गए हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार पर कैसे लगाम लगेगी? गौरतलब है कि केंद्र सरकार जनप्रतिनिधियों, न्यायाधीशों, अधिकारियों और कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतों की जांच को लेकर नया कानून लेकर आई है। इस कानून के तहत किसी भी अधिकारी और कर्मचारी की जांच करने से पहले उसके विभाग प्रमुख से अनुमति लेनी होगी। विभाग प्रमुखों यानी आला अफसरों को यह अधिकार दिया गया है कि वे मातहतों के भ्रष्टाचार से जुड़ी जांच की फाइल को तीन महीने तक बिना कोई कारण बताए रोक सकेंगे। रिटायर्ड अफसरों का मानना है कि नया कानून भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करेगा। ये मानते हैं कि इस कानून के लागू होने से निष्पक्ष जांच नहीं हो पाएगी और जांच में अनावश्यक देरी अलग होगी। यह आदेश केंद्र सरकार के कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन मंत्रालय की ओर से जारी किया गया है।
भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा
मध्यप्रदेश के एक पूर्व मुख्य सचिव का कहना है, मेरे मत में सरकार का यह आदेश पूर्णत: गलत है, क्योंकि सरकारी एजेंसियां इस तरह की अनुमति देने में बहुत विलंब करती हैं। यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है। कभी-कभी उनमें विभागीय दृष्टिकोण आ जाता है कि अपने आदमी को बचा लिया जाए। ऐसे में इस तरह का आदेश निकालना बिल्कुल अवांछनीय है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। जब केंद्र सरकार कहती है कि हम भ्रष्टाचार खत्म करना चाहते हैं, जीरो टालरेंस की बात करती है, तो फिर भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों पर इस तरह का नियंत्रण नहीं करना चाहिए। वहीं मध्यप्रदेश के एक पूर्व पुलिस महानिदेशक कहते हैं कि सरकार के नए कानून को कतई उचित नहीं माना जा सकता है। अगर किसी अधिकारी और कर्मचारी की जांच करने से पहले अनुमति लेना होगी, तो जांच की गोपनीयता का क्या होगा। फिर पूछकर जांच करने से जांच का मतलब क्या रह जाएगा। जो नियम है, उसमें निष्पक्षता तो बिल्कुल नहीं रहेगी। अभी जब अनुमति नहीं लेना पड़ती है, तब तो अफसर अपने चहेतों को बचाने में लगे रहते हैं, फिर क्या होगा। इससे जांच में तेजी भी नहीं आएगी, रुकावट पैदा होगी। नया कानून भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसियों का अधिकार छीनने वाला है।
धारा 17-ए सवालों के घेरे में
जानकारी के अनुसार  केंद्र सरकार के कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के संबंध में नियमावली भेजी है। केंद्र ने कहा कि उक्त नियमावली को केंद्र की तरह राज्य सरकारें भी लागू करें। पत्र में लिखा गया है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988 में संशोधन कर किया गया है। संशोधित कानून में नई धारा 17-ए जोड़ी गई है। केंद्र ने कहा कि उक्त कानून का उस समय खास ध्यान रखा जाए, जब किसी लोक सेवक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों। धारा 17-ए के अनुसार किसी लोक सेवक के खिलाफ किसी भी मामले में जांच या पूछताछ की सिफारिश कोई भी तब तक नहीं कर सकता है, जब तक आरोपी लोक सेवक के विभाग का प्रमुख इसकी इजाजत नहीं देता।
केंद्र में यह कानून जुलाई, 2018 से लागू है।  

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