मूल काम छोड़ कमाई में जुटा एमपी एग्रो

एमपी एग्रो
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने गड़बडिय़ों को किया उजागर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र राज्य कृषि उद्योग विकास निगम लिमिटेड (एमपी एग्रो) का मुख्य काम मप्र में कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना है। लेकिन कमाई के लिए उर्वरक विपणन, तरल जीवाणु खाद की बिक्री जैसे कार्यों को दरकिनार कर  करोड़ों रुपए के पानी के टैंकर खरीद डाले गए। इसके अलावा कंपनी ने उद्देश्यों के विपरीत पहले से बने बस आश्रय स्थलों, व्यायामशाला उपकरण, स्वागत द्वार का भी व्यापार किया। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा एमपी एग्रो की लेखापरीक्षा प्रतिवेदन में इन गड़बडिय़ों को उजागर किया गया है। गौरतलब है कि मार्च 1969 में एमपी एग्रो की स्थापना ऐसी परियोजनाओं, योजनाओं, उद्योगों, व्यवसाय एवं गतिविधियों को बढ़ावा देने, विकसित करने, स्थापित करने, निष्यादित करने, संचालित करने व अन्य उद्देश्यों से की गई थी, जो कृषि उत्पादन में तेजी लाने एवं बढ़ाने, सहायक एवं पूरक खाद्य पदार्थों के उत्पादन में योगदान देने, मप्र में खाद्यान आपूर्ति की उपलब्धता बढ़ाने तथा राज्य कृषि औद्योगिक विकास में योगदान करे।
 नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा एमपी एग्रो की लेखापरीक्षा प्रतिवेदन में कहा गया है कि मप्र राज्य कृषि उद्योग विकास निगम ने विगत वर्षों में कृषि आधारित उद्योगों के विकास, कृषि उत्पादन में तेजी लाने जैसे अपने मूल कामों को छोडक़र  ठेकेदारों के माध्यम से नियम और अनुबंध प्रस्तावों की शर्तों को ताक पर रखकर करोड़ों रुपये के पानी के टैंकर खरीद डाले। इतना ही नहीं, कंपनी ने भंडार क्रय नियम और सेवा उपार्जन नियम, 2015 का उल्लंघन करते हुए पहले से बने हुए बस आश्रय स्थल, जिम उपकरण, स्वागत द्वार आदि वस्तुओं का व्यापार किया। एमपी एग्रो के अधिकारियों की अपने मूल काम के प्रति उदासीनता के चलते कंपनी को ड्रिप एवं स्प्रिंकलर की आपूर्ति के बदले कमीशन नहीं मिलने से 11.79 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ हैं।
पानी के टैंकरों का कारोबार
सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी ने भंडार क्रय और सेवा उपार्जन नियमों का उल्लंघन कर (मप्र लघु उद्योग निगम के लिए आरक्षित वस्तु) पानी के टैंकरों का कारोबार किया। अप्रैल 2017 से सितम्बर 2018 के बीच नौ शाखा कार्यालयों के अधिकारियों ने नियम विरुद्ध 10.29 करोड़ रुपये मूल्य के 864 पानी के टैंकर खरीदे। इससे भी बड़ी अनियमितता यह कि 1.22 करोड़ रुपये के पानी के टैंकर उन आपूर्तिकर्ताओं से खरीदे जिनके पास अनुमोदित डिजाइन से संबंधित आवश्यक प्रमाण पत्र नहीं थे तथा दर अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन करते हुए एक ही व्यक्ति की दो फर्मों को भी पंजीकृत किया गया। इन दोनों फर्मों ने 3.68 करोड़ रुपए मूल्य के पानी के टैंकरों की आपूर्ति की। एक निरस्त किए गए आदेश के सापेक्ष भी 13.84 लाख रुपए के अनियमित भुगतान तथा क्रय आदेश जारी होने से पहले ही वस्तुओं की आपूर्ति किए जाने के मामले भी सामने आए हैं। इसके अलावा कंपनी ने उद्देश्यों के विपरीत पहले से बने बस आश्रय स्थलों, व्यायामशाला उपकरण, स्वागत द्वार का भी व्यापार किया। मप्र शासन से कैग ने अनुशंसा की है कि मप्र शासन को आरक्षित वस्तुओं के व्यापार के लिए जिम्मेदारी निर्धारित करनी चाहिए। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कंपनी अपने मूल उद्देश्य के लिए काम करे। शासन को ड्रिप एवं स्प्रिंकलर की आपूर्ति पर कमीशन भुगतान के मुद्दे के समाधान के लिए भी हस्तक्षेप करना चाहिए।
कृषि को बढ़ावा देने में विफल
सीएजी ने एमपी एग्रो के यंत्रीकृत कृषि फार्मों बाबई, होशंगाबाद तथा जैव उर्वरक संयंत्र भोपाल के अप्रैल 2017 से मार्च 2022 तक के अभिलेखों के नमूनों की जांच की। कंपनी के बाबाई कृषि फार्म का उपयोग गुणवत्ता वाले बीजों के उत्पादन एवं वितरण तथा किसानों के लिए नवीनतम कृषि मशीनरी, उपकरणों एवं कृषि पद्धतियों के प्रदर्शन या किसानों के प्रशिक्षण के लिए नहीं किया। कंपनी ने बाजार में पूरक खाद्य उत्पादों के उत्पादन एवं आपूर्ति की संभावनाएं नहीं तलाशी, कंपनी ने खाद्य आपूर्ति की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कृषि-रसद एवं कोल्ड स्टोरेज, गोदामों के विकास के लिए पहल नहीं की। कंपनी राज्य में कृषि औद्योगिक विकास में योगदान देने में विफल रही, क्योंकि कंपनी ने कृषि उत्पादन में तेजी लाने, बढ़ावा देने या राज्य में कृषि उद्योगिक विकास में योगदान देने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। रिपोर्ट के अनुसार 2015 से 2020 के बीच कंपनी के परिचालन लाभ में लगातार कमी आई। कंपनी को वित्तीय वर्ष 2019-20 में 17.36 करोड़ का घाटा। 2011 से 2020 के बीच परिचालन लाभांश का अनुपात इक्विटी पर रिटर्न अनुपात एवं कुल संपत्ति पर रिटर्न अनुपात में भी गिरावट। कंपनी ने धनराशि का साधारण तरीके से निवेश किया, जिससे सावधि जमा पर 1.17 करोड़ के ब्याज का नुकसान। कंपनी ने तीन संयुक्त उपक्रम कंपनियों के लिए गलत मूल्यांकन पद्धति अपनाई, जिससे 1.59 करोड़ का घाटा।

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