मंगू भाई पटेल के बहाने कुलस्ते को दिखाया जा सकता है बाहर का रास्ता

मंगू भाई पटेल

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। केन्द्र सरकार ने लंबे समय बाद मप्र को एक पूर्णकालिक राज्यपाल मंगू भाई पटेल के रूप में दिया है। वे गुजरात भाजपा के बड़े आदिवासी चेहरे माने जाते हैं। उनकी राज्यपाल के पद पर ताजपोशी ऐसे समय की गई है जब मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। माना जा रहा है कि मप्र का चयन पटेल के रुप में करने के  पीछे भाजपा की अलग रणनीति है। उनकी तैनाती के साथ ही माना जाने लगा है कि आज शाम होने वाले मोदी कैबिनेट के पुनर्गठन से मप्र के कोटे से मौजूदा केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की छुट्टी हो सकती है।   कुलस्ते केन्द्र सरकार के ऐसे मंत्रियों में माने जाते हैं, जो अब तक अप्रभावी साबित हो रहे हैं। वे ऐसे नेता है जिनका प्रभाव अपने इलाके में भी कम ही रहा है। इसकी बानगी विधानसभा चुनाव में दिखती रही है। यही नहीं पार्टी द्वारा लगातार उन्हें विभिन्न समितियों से लेकर केन्द्र में कई बार मंत्री बनाए जाने के बाद भी वे अपने अंचल महाकौशल में पार्टी के लिए चुनावी जीत का विधानसभा चुनावों में चेहरा नहीं बन सके हैं। इसकी वजह से अब उनकी मोदी मंत्रिमंडल से छुट्टी होना तय मानी जा रही है। यही वजह है कि मप्र के नए राज्यपाल के चयन में मालवा निमाड़ अंचल से सटे गुजरात के इस बड़े आदिवासी नेता के नाम का चयन किया गया है। दरअसल पटेल आधा दर्जन बार विधायक रहने के अलावा प्रदेश संगठन में भी कई पदों पर काम कर चुके हैं। उन्हें गुजराज के अलावा आसपास के इलाकों में आदिवासी समुदाय का बड़ा नेता माना जाता है। उन्हें राज्यपाल बनाकर मप्र के आदिवासी समुदाय को साधने के रुप में देखा जा रहा है। हालांकि  राज्यपाल का पद संवैधानिक होता है जिसकी वजह से वे राजनीति में सीधे तौर पर सक्रिय रुप से भाग नहीं ले सकते हैं , लेकिन जातिगत आधार पर एक बड़े वर्ग को यह संदेश जरूर दे सकते हैं कि भाजपा में उनकी समाज के लोगों का बेहद अहम स्थान है। प्रदेश में बीते 2018 के आम चुनाव के पहले तक आदिवासी वोट बैंक (अनुसूचित जनजाति) का भाजपा को साथ मिलता रहा है, लेकिन दो साल पहले हुए विधानसभा चुनाव में इस वर्ग ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था, जिसकी वजह से भाजपा को आदिवासी बाहुल्य की 47 सीटों में से करीब आधी से अधिक पर हार का मुंह देखना पड़ा। इस तरह से 47 में से महज 21 सीटों पर ही भाजपा प्रत्याशी जीत हासिल कर सके थे। इसकी वजह से भाजपा को सत्ता से हाथ तक धोना पड़ गया था। इन आदिवासी बाहुल्य सीटों में सबसे अधिक भाजपा को नुकसान मालवा-निमाड़ के इलाकों में उठाना पड़ा।
यह  लगाया गया है गणित
मप्र में भाजपा को लंबे समय से एक अदद बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश बनी हुई है। इसके लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी चाहता था कि पार्टी में आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई सर्वमान्य नेता हो। इसी वजह से ही इसका तोड़ राज्यपाल के पद पर मंगूभाई पटेल के तौर पर निकाला गया है। प्रदेश की मौजूदा भौगोलिक स्थिति को देखते हुए इसका
फायदा भाजपा को मिल सकता है। प्रदेश के अलीराजपुर, झाबुआ सहित अन्य आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र गुजरात की सीमा से सटे हुए हैं, इन जगहों के लोगों का रोजगार के अलावा अन्य कामों के लिए गुजरात आना-जाना आम बात है। यही नहीं दोनों प्रदेशों के सीमावर्ती इलाकों की सांस्कृतिक समानता भी एक होने की वजह से यहां लोगों पर गुजरात के बड़े नेता के कारण राज्यपाल का रहना तय माना जा रहा है।
अपने ही जिले में अप्रभावी है कुलस्ते
बीते विधानसभा चुनाव में केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते अपने गृह जिले में भी पार्टी प्रत्याशियों को जिताने में नाकामयाब रह चुके हैं। उनके गृह जिले मंडला में तीन विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें से मंडला को छोड़ दिया जाए तो अन्य निवास और बिछिया सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। खास बात यह है कि निवास विधानसभा के तहत ही कुलस्ते का गृह ग्राम भी आता है। यह स्थिति तब है जब वे चार बार लोकसभा, एक बार राज्यसभा सदस्य के अलावा एक बार विधायक भी रह चुके हैं। इसके अलावा वे सरकार की आदिवासी संस्थाओं में लंबे समय तक रहे हैं। वर्तमान में वे लोकसभा सदस्य होने के साथ ही केन्द्रीय मंत्री भी हैं।

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