
- …और हम पंचायत सचिव को भी नहीं हटा पा रहे…
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। चुनावी साल में लगातार तबादलों पर से प्रतिबंध हटाने की मांग करने के बाद भी अब जाकर राज्य सरकार ने आधी अधूरी मंजूरी दी है, जिसकी वजह से मंत्रिमंडल के सदस्यों सहित पार्टी नेताओं में भी कोई उत्साह नहीं दिख रहा है। खास बात यह है कि तबादलों पर प्रतिबंध को लेकर कुछ मंत्रियों के तेवर भी हाल ही में हुई बैठक में बेहद तीखे नजर आए थे। कृषि मंत्री कमल पटेल ने तो यहां तक कह दिया कि जरूरत है तो मुख्य सचिव का छह-छह माह का एक्सटेंशन हो जाता है , लेकिन हम ग्राम पंचायतों में तीन-तीन साल से जमे सचिवों तक को नहीं हटा पा रहे हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है। खास बात यह है कि इस दौरान वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा ने उन्हें जब टोकने का प्रयास किया तो पटेल ने उन्हें बेहद कड़े लहजे में चुप करा दिया। इसके बाद से ही तबादलों पर बैन हटाने की कवायद की गई है। इसके फलस्वरूप ही बीते रोज राज्य सरकार ने तबादलों पर से प्रतिबंध हटा दिया। यह 15 जून से 30 जून तक प्रभावी रहेगा। इसके तहत प्रभारी मंत्री सिर्फ जिलों के भीतर ही तबादला कर सकेंगे। राज्य स्तर पर तमाम मामले मुख्यमंत्री समन्वय से होंगे। सरकार के इस निर्णय पर भी कैबिनेट में मंत्रियों ने सवाल खड़े किए। राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने कहा- प्रदेश स्तर पर भी तबादलों से बैन क्यों नहीं हट रहा। तबादला नीति समान रूप से जारी हो। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया और मंत्री भूपेंद्र सिंह ने भी राजपूत की हां में हां मिलाते हुए कहा कि इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। प्रदेश स्तर पर से भी बैन हटना चाहिए। इसके बाद 8 मिनट तक तबादला नीति पर फिर से मंथन किया गया लेकिन, प्रदेश स्तर को लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया। माना जा रहा है कि प्रतिबंध हटने की अवधि में करीब 10 हजार से ज्यादा तबादले हो सकते हैं। इसमें जिला कैडर के अलावा समन्वय से होने वाले तबादले भी शामिल रहेंगे। दरअसल कई ऐसे कर्मचारी हैं ,जो पार्टी पदाधिकारियों से लेकर कार्यकर्ताओं तक के परिजन है जो दूर दराज के इलाकों में पदस्थ हैं। वे लोग उनकी पदस्थापना अपने घर के पास चाहते हैं। प्रदेश स्तर पर प्रतिबंध न हटने की वजह से उनके तबादले होना संभाव नहीं है, जिसका नुकसान मौजूदा विधायकों को उठाना पड़ सकता है। नई नीति के अनुसार जिला कैडर के कर्मचारी और स्टेट कैडर के तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के जिले के ही भीतर तबादले हो सकेंगे। यह तबादले कलेक्टर के माध्यम से प्रभारी मंत्री के अनुमोदन के बाद किए जा सकेंगे।
सरपंचों का मामला भी उठा
लोनिवि के राज्यमंत्री सुरेश धाकड़ राठखेड़ा ने कहा कि ग्राम पंचायतों को बजट नहीं मिल रहा है। इसकी वजह से दूर दराज के इलाकों में सडक़ों तक के काम नहीं हो पा रहे हैं। बजट के अभाव में सरपंचों के पास कोई काम ही नही है। यही स्थिति रही तो सरपंच ही हमें निपटा देंगे। इस मामले में उनके समर्थन में मंत्री सिसोदिया, विजय शाह, ओमप्रकाश सकलेचा, भूपेंद्र सिंह, अरविंद सिंह भदौरिया, भारत सिंह कुशवाहा और प्रेम सिंह पटेल तक आ गए। अहम बाद तय है कि इस दौरान मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस बैठक से चले गए थे, जिसके बाद उन्हें दोबारा बुलाया गया। इसके बाद सीएम ने उन्हें इस मामले को दिखवाने के निर्देश दिए। दरअसल प्रदेश में पंचायतों के चुनाव हुए छह माह से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन सरकारी खजाने में राशि न होने की वजह से ग्राम पंचायतों को अब तक किसी भी प्रकार की कोई नई राशि जारी नहीं की गई है। इसकी वजह से सरपंचों में सरकार को लेकर नाराजगी है। यह नाराजगी और बढ़ती ही जा रही है। दरअसल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव नवंबर में होने हैं, ऐसे में अक्टूबर में चुनावी आचार संहिता लगना तय है। आचार संहिता लगने की वजह से पंचायतों में कोई नया काम हो नहीं पाएगा। फिर नई सरकार बनने के बाद ही राशि आवंटित हो सकेगी।