प्रदेश की 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जयस

 जयस

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन इस बार प्रदेश की उन सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगा, जहां आदिवासी वोटर ज्यादा है। इससे कांग्रेस और भाजपा का खेल बिगड़ सकता है। जयस संगठन ने विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा चुनाव में भी अपनी दावेदारी करने का भी ऐलान किया है। जयस के संरक्षक और मनावर विधायक डॉ. हीरालाल अलावा का कहना है कि परिवारवाद और पूंजीवाद बैकग्राउंड वालों को पछाडक़र  हमारे जयस युवा विधानसभा तथा लोकसभा में दहाड़ेंगे और आखिरी पंक्ति के लोगों की आवाज बनेंगे।  जयस ने 80 से अधिक विधानसभा में क्षेत्रों में ग्राऊंड स्तर पर मजबूती के साथ बूथ स्तर की कमैटी बना ली है।
जानकारी के अनुसार, जयस पिछले कई साल से चुनाव लडऩे  की रणनीति पर काम कर रही है। आदिवासियों के लिए सुरक्षित सीटों के साथ ही आदिवासी बहुल सामान्य सीटों पर भी चुनाव लड़ेगी। इसके लिए वे सीटें चिह्नित की जा रही हैं। इसमें भोजपुर, सिलवानी, बदनावर, दमोह सहित अन्य सीटें शामिल हैं। संगठन यहां युवाओं को चुनाव मैदान में उतारेगा। प्रदेश में 47 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए सुरक्षित हैं, जबकि, 33 सीटों पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। गैर आरक्षित आदिवासी बहुल 33 सीटों में से 22 मालवा और निमाड़ में ही आती हैं। आदिवासी वर्ग का झुकाव जिस राजनीतिक दल की ओर रहता है, उसकी प्रदेश में सरकार बनती है। 2013 के चुनाव में आदिवासी मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया तो उसकी सरकार बनी रही। वहीं, 2018 में आदिवासियों का साथ कांग्रेस को मिला और सुरक्षित सीटों में से 31 जीतकर कमलनाथ ने सरकार बनाई।
आदिवासियों की निर्णायक भूमिका
चुनाव में आदिवासी मतदाताओं की निर्णायक भूमिका को देखते हुए दोनों दल कार्ययोजना बनाकर काम कर रहे हैं। वहीं, पिछले चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करने वाले जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन ने खुद चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। उन सीटों पर भी चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है, जहां आदिवासी मतदाताओं की संख्या निर्णायक है। संगठन के संरक्षक व कांग्रेस विधायक डा. हीरालाल अलावा का कहना है कि दमोह जिले के जबेरा, धार के बदनावर, रायसेन के सिलवानी और भोजपुर सहित कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आदिवासियों की संख्या अधिक है। चुनाव में ये निर्णायक भूमिका में तो हैं पर संगठित न होने के कारण नेतृत्व नहीं उभर पाता है।
यह है आदिवासी वोट की ताकत
प्रदेश में 2018 में आदिवासियों के वोट से ही कांग्रेस सत्ता के पास पहुंच गई थी। प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में 47 सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें से पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 30 सीटें जीती थी। वहीं, 2013 में बीजेपी ने 31 पर जीत दर्ज की थी। अब जयस के अकेले चुनाव लडऩे से भाजपा और कांग्रेस का गणित बिगड़ सकता है। जयस 80 सीटों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहा है। इसके लिए राजनीतिक रूप से हाशिए पर रही अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग की उपेक्षित जातियों को अपने साथ जोडक़र जयस ने अपना दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया है। जयस की ओर से मांझी, मछुआरा, मानकर, धनगर समेत ऐसी तमाम जातियों को अपने साथ जोड़ने की तैयारी है, जिन्हें राजनीतिक रूप से अभी तक महत्व नहीं मिला है। डॉ. हीरालाल अलावा कहते हैं कि 20 अक्टूबर को कुक्षी की महापंचायत में हम स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। प्रदेशभर में बांध बनने और मछली पकड़ने का ठेका सिस्टम शुरू होने से मांझी जाति के लोगों का रोजगार सर्वाधिक प्रभावित हुआ है।                    
प्रदेश में इसलिए बड़ा फैक्टर है जयस
प्रदेश की लगभग 22 फीसदी आबादी आदिवासी वर्ग की है। जयस का गठन 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पूर्व हुआ था। यह विशुद्ध रूप से आदिवासी वर्ग के बीच काम करने वाला संगठन है। 2018 में इस संगठन के कांग्रेस के साथ जाने का असर ये हुआ कि आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 15 सीटें कांग्रेस ने भाजपा से छीन लीं। 2018 में कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग की 47 में से 30 सीटें जीत लीं, वहीं भाजपा सिर्फ 16 सीटों पर सिमट गई।

Related Articles