
- बजट की कमी से अटक गई पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी योजना
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मार्च 2024 तक घर-घर पीने का शुद्ध पानी पहुंचाने के मकसद से शुरू की गई जल जीवन मिशन योजना अफसरों के मकडज़ाल में इस कदर फंस गई है कि वह अधर में लटक गई है। अब यह योजना कब पूरी होगी कुछ नहीं कहा जा सकता। दरअसल बजट की कमी और पहले से हो चुके काम का भुगतान न होने के कारण यह योजना अटक गई है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि मप्र ही नहीं बल्कि इसमें महाराष्ट्र और झारखंड जैसे चुनावी राज्य भी शामिल हैं, जहां जल जीवन मिशन का काम अधर में लटका हुआ है। प्रभावित राज्यों ने केंद्रीय जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल को पत्र लिखे हैं। बताया, बजट रुकने से ठेकेदार चले गए हैं। काम में जुटे लोग तो बेकाम हुए ही हैं, नल से जल का सपना भी धूमिल हो रहा है। पत्र लिखने वालों में मप्र भी है। गौरतलब है कि घर-घर पीने का शुद्ध पानी पहुंचाने के मकसद से 15 अगस्त 2019 को जल जीवन मिशन योजना शुरू की गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की शुरुआत करते हुए मार्च 2024 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा था। योजना की शुरुआत हुई, तब देशभर में 3.24 करोड़ परिवारों को ही नल से जल की सुविधा थी। बीते 5 साल में 15.15 करोड़ ग्रामीण परिवारों तक पानी पहुंचाया गया है। यह कुल ग्रामीण आबादी का करीब 78 प्रतिशत है। दुर्गम भूभाग और खासतौर पर पानी की कमी वाले इलाकों में अभी भी 4.18 करोड़ परिवारों तक योजना का लाभ पहुंचना बाकी है। इनमें राजस्थान, गुजरात, मप्र और उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड जैसे इलाके प्रमुख हैं। दरअसल, इन इलाकों तक पानी पहुंचाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है। केंद्रीय फंड की कमी और पहले से हो चुके काम का भुगतान न होने के कारण यह योजना अटक गई है।
बजट बढक़र 8.33 लाख करोड़ हुआ
शुरुआत में योजना का बजट 3.60 लाख करोड़ रुपए था। इसमें केंद्रीय हिस्सेदारी 2.08 लाख करोड़ और राज्य की 1.52 लाख करोड़ रुपए रही। मिशन के आगे बढऩे के साथ ही दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा न होने के कारण लागत बढ़ती गई। संशोधित बजट बढकऱ 8.33 लाख करोड़ रुपए हो गया। यह अनुमान के दोगुने से ज्यादा है। इसमें केंद्र की हिस्सेदारी 4.33 लाख करोड़ और राज्यों की 4.00 लाख करोड़ रु. है। शुरुआत में ऐसे इलाके थे जहां भू-जल था, तो बजट की जरूरत कम थी। बाकी इलाकों में काम चुनौतीपूर्ण है, इसलिए बजट की ज्यादा जरूरत है। फंड की कमी से काम धीमा हो गया है। एजेंसियों को मटेरियल और कामगारों की सप्लाई बनाए रखने में दिक्कत आने लगी है। कोरोना में दो साल काम नहीं, पाइप की सप्लाई में भी देरी कोविड के चलते दो वर्ष काम नहीं हो सका। प्रोजेक्ट में लगने वाले डक्टाइल आयरन पाइप की भी कमी रही। इस पाइप को बनाने वाले भी सीमित हैं। पाइप की मांग अचानक बढऩे से सप्लाई में देरी हुई है। इससे भी काम प्रभावित हुआ है।
मप्र में 1500 करोड़ से ज्यादा का भुगतान अटका
केंद्र ने इस वित्त वर्ष में मप्र को मिशन के लिए 4,044 करोड़ रु. और राज्य ने 7,671.60 करोड़ रु. का अलॉट किए हैं। जल जीवन मिशन की गाइडलाइन के मुताबिक वर्क ऑर्डर में केंद्र-राज्य का हिस्सा 50-50 प्रतिशत और व्यावसायिक गतिविधियों में 60-40 प्रतिशत होगा। बीते साल जल जीवन मिशन के तहत मप्र में 10,773.41 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। फिलहाल इस योजना के तहत 1500 करोड़ रु. से अधिक राशि का भुगतान रुका हुआ है। पुराने आंकड़ों को देखते हुए 2024-25 में राज्य में इस योजना के लिए कम से कम 17,000 करोड़ रु. की जरूरत होगी। मप्र ने केंद्र को बताया है कि नल जल योजनाओं के लिए 78 हजार करोड़ की राशि मंजूर है। मार्च 2024 तक करीब 28 हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं। बीते वर्ष 10 हजार करोड़ से अधिक का काम किया गया। इस बार काम रुक गया है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री संपतिया उइके ने बताया कि प्रदेश का करीब 1500 करोड़ से ज्यादा का पैसा केंद्र से रुका हुआ है। मांग पत्र भेजा गया है।
अफसरों का अड़ंगा
जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना पर अफसरशाही का शिकंजा है। यही वजह है कि बजट जारी नहीं हो रहा और देशभर में काम ठप है। बताया जा रहा है कि कार्य की गुणवत्ता की जांच करवाने के लिए केंद्रीय अधिकारियों ने फंड रोका है। पता चला है कि आठ मापदंडों पर पूरे प्रोजेक्ट की समीक्षा करवाई जा रही है। इसमें पानी की उपलब्धता, नल में पानी का दबाव, खर्च राशि का आकलन, प्रति नल खर्च का आकलन जैसे बिंदु शामिल हैं। इधर, राज्यों ने तर्क दिया है कि जांच अलग से चलती रहे और काम भी होता रहे। ऐसा करके ही लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। एक बार काम रुका तो फिर से इसे शुरू करने में खर्च भी बढ़ सकता है। अफसरों ने बजट आवंटन रोक दिया है। इससे मिशन के तहत जारी काम ठप हो गए हैं। देश के 23 राज्यों में अभी वंचित श्रेणी में हैं। लक्ष्य हासिल करने में सबसे फिसड्डी पश्चिम बंगाल है। वहां करीब 52 प्रतिशत घरों में ही नल से जल मिल रहा है। इसके बाद राजस्थान है। वहां आंकड़ा करीब 53 फीसदी है। मप्र और छत्तीसगढ़ भी सूची के अतिम दस में शामिल हैं। मध्यप्रदेश में अब तक सिर्फ 65.04 प्रतिशत लक्ष्य हासिल किया गया है।
