ट्रायबल पर संघ की पकड़ से जयस प्रभावहीन

 जयस प्रभावहीन
  • भाजपा की उपचुनावी जीत में स्वयंसेवक बने वाहक

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। उपचुनाव की चार सीटों में शामिल खंडवा लोकसभा सीट के अलावा तीन विधानसभा सीटों में कुल पांच ऐसी सीटें शामिल थीं जो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इनमें लोकसभा के तहत आने वाली चार और जोबट की सीट शामिल है। इस तरह से जिन 5 आदिवासी बाहुल्य सीटों पर चुनाव हुआ है उनमें से चार सीटों पर भाजपा को जीत मिली है। उपचुनाव के पहले माना जा रहा था कि बगैर जयस का साथ मिले कोई भी दल चुनाव नहीं जीत सकता है, लेकिन उपचुनाव के परिणामों ने इस मिथक को तोड़ दिया है। इसकी वजह बना है संघ।  दरअसल संघ की तो पहले से ही आदिवासी वर्ग के लिए चलाए जाने वाले प्रकल्पों और कामों की वजह से लंबे समय से पकड़ मजबूत थी ही, लेकिन जयस की सक्रियता को देखते हुए संघ ने भी अपनी सक्रियता बढ़ा दी तो जयस भी प्रभावहीन होती दिखने लगी है। यही नहीं इन इलाकों में प्रचार के दौरान भाजपा से अधिक संघ के स्वयं सेवकों की मेहनत रही है। इसकी वजह से ही इन उपचुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित पांच में चार सीटों पर भाजपा को ऐसी बढ़त मिली की भाजपा न केवल खंडवा संसदीय सीट जीत गई , बल्कि जोबट सीट पर भी केसरिया फहराने में सफल रही है। इसकी वजह से ही कांग्रेस को केवल एक सीट पर जीत से संतोष करने पर मजबूर होना पड़ा है। यही नहीं जयस के गढ़ के रुप में प्रचारित की जा रही कांग्रेस की जोबट सीट पर मिली जीत से भाजपा बेहद उत्साहित है। इसकी वजह भी है 2019 की मोदी लहर के बावजूद इस सीट पर कांग्रेस को 18000 वोट की लीड मिली थी।  यह बात अलग है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इसे चमत्कार और आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा का बढ़ता जनाधार मान रहे हैं, जबकि वास्तविकता इसका श्रेय संघ को ही जाता है। प्रदेश में यह बात पहले से ही तय थी और भाजपा व कांग्रेस के नेता भी जानते थे कि उपचुनाव में आदिवासी समाज का समर्थन जिस दल को मिल जाएगा उसकी जीत तय है। इसी तरह से आम चुनाव में भी यह समाज किस दल की सरकार बनेगी इसके फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। दरअसल प्रदेश में आदिवासी समाज की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है। प्रदेश के 230 विधानसभा क्षेत्रों में अजजा वर्ग के लिए 45 सीटें हैं लेकिन दो दर्जन से ज्यादा अन्य सीटों पर अनुसूचित जनजाति के वोटर निर्णायक संख्या में हंै। 2018 के चुनाव में भाजपा को आदिवासी सीटों पर हुए नुकसान के कारण ही सरकार बनाने के लायक बहुमत नहीं मिल पाया था उसे 45 में से 16 सीटें ही मिली थी जबकि कांग्रेस 31 सीटें जीत कर सत्ता पर काबिज हो गई थी जबकि, 2013 के चुनाव में भाजपा से इनमें से 21 सीटें जीत ली थी और कांग्रेस के खाते में महज 15 सीटें आई थीं।
    आदिवासियों ने जताया भरोसा : भूपेंद्र सिंह
    नगरीय प्रशासन मंत्री और भाजपा चुनाव प्रबंध समिति के संयोजक भूपेंद्र सिंह का कहना है कि हमारा चुनावी प्रबंधन तो बेहतर था ही , लेकिन आदिवासी समाज ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और सरकार की योजनाओं पर भरोसा जताया है। कार्यकर्ताओं की टीम पूरी शिद्दत और समन्वय के साथ बूथ स्तर पर सक्रिय रही।  आदिवासियों को हम केंद्र व राज्य सरकार की योजनाएं समझाने में सफल रहे।
    भाजपा का चुनावी मैनेजमेंट कांग्रेस पर पड़ा भारी
    कांग्रेस विधायक एवं जयस से जुड़े डॉ हीरालाल अलावा का दावा है कि आदिवासी समाज मूलत: कांग्रेस समर्थक है लेकिन इस उप चुनाव में भाजपा का बूथ और मैदानी स्तर का मैनेजमेंट कांग्रेस पर भारी पड़ा है। वे अब भी मानने को तैयार नही हैं कि जयस का प्रभाव कम हुआ है।
    भाजपा अभी से आम विस चुनाव में समर्थन के प्रयासों में जुटी
    आदिवासियों के बगैर सरकार नहीं बन पाने की वजह के चलते ही भाजपा ने अभी से मिशन 2023 के लिए आदिवासियों को लुभाने के सभी तरह के प्रयास तेज कर दिए हैं। उधर कांग्रेस भी आदिवासी संगठन जयस की मदद से इस वर्ग में अपनी पैठ बढ़ाने के प्रयासों में लगी हुई है। अगर खंडवा संसदीय क्षेत्र के तहत आने वली सीटों को देखे तें उपचुनाव में इस क्षेत्र के तहत आने वाली पंधाना, भीकनगांव, बागली और नेपानगर विधानसभा में से कांग्रेस केवल भीकनगांव सीट पर ही कांग्रेस को 2964 मतों की बढ़त मिली जबकि भाजपा को बाकी तीन पर बढ़त मिली।

Related Articles