मध्यप्रदेश से तैयार माल का निर्यात करना आसान नहीं

लॉजिस्टिक कंपनियों
  • लॉजिस्टिक कंपनियों ने केंद्र सरकार को दिए फीडबैक

    भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार मप्र को इंडस्ट्रीयल हब बनाना चाहती है, लेकिन यहां आयात-निर्यात संबंधी परेशानियों के कारण व्यापार करना आसान नहीं है। मप्र में औद्योगिक विकास की तमाम संभावनाओं के बावजूद कनेक्टिविटी के अभाव के कारण बड़े औद्योगिक घराने निवेश करने से कतराते हैं। इस संबंध में लॉजिस्टिक कंपनियों ने केंद्र सरकार को एक फीडबैक रिपोर्ट दी है, जिसमें बताया गया है कि मप्र में औद्योगिक विकास में क्या-क्या परेशानियां आ रही है।
     मप्र के बारे में देश की अग्रणी लॉजिस्टिक कंपनियों ने केंद्र सरकार को जो फीडबैक दिया है उसके अनुसार, औद्योगिक उत्पाद लाने ले जाने का काम करने वाले कंटेनर के लिए मप्र से गुजरना किसी मुसीबत से कम नहीं। पुलिस बेवजह चाहे जहां इन कंटेनर को घंटों रोक लेती है। मंडीदीप से माल लेकर होशंगाबाद जा रहे कंटेनर से माल चोरी होने की आशंका बनी रहती है। छोटे जिलों में माल लाने के लिए लॉजिस्टिक कंपनियां छोटे ट्रक भाड़े पर लेती हैं। लेकिन उनका किराया इतना अधिक होता है कि मप्र के निर्यातकों का तैयार माल गुजरात-महाराष्ट्र के मुकाबले नहीं टिकता। पोर्ट तक माल लाने ले जाने के लिए कनेक्टिविटी का अभाव है। राज्य के आरटीओ विभाग के कामकाज में पारदर्शिता का अभाव है।
    मध्यप्रदेश में लॉजिस्टिक मास्टर प्लान नहीं
    दरअसल, प्रदेश में औद्योगिक विकास के प्रयास तो खूब हो रहे हैं, लेकिन यहां लॉजिस्टिक का मास्टर प्लान नहीं है और न ही सिटी लॉजिस्टिक कमेटी है। मध्यप्रदेश में ट्रक यूनियन का कार्टल है। ट्रक मिलने में मुश्किल आती है, जो मिलते हैं उनका भाड़ा बहुत ज्यादा है। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय खरीदार मप्र में बड़े आॅर्डर नहीं देते। पुलिस कार्गो चेकिंग के नाम पर बेवजह कंटेनर रोक लेती है। इसलिए माल पहुंचाने में देरी होती है। गैर जरूरी चेकिंग से बचने के लिए अंतरराज्यीय वाहन मप्र को बाइपास करके गुजरात के रास्ते मुंबई और दूसरे दक्षिणी राज्यों को जाते हैं। मंडीदीप और इंदौर के बीच की सड़क की हालत बेहद खराब है। खासतौर पर स्टेट हाईवे-22। मरम्मत के बाद भी इसमें बड़े-बड़े गड्ढे हैं। मंडीदीप स्थित ड्राइपोर्ट में अक्सर लाइट्स बंद रहती हैं। अक्सर सामान चोरी होने की आशंका रहती है। जवाहरलाल नेहरू पोर्ट और मुंद्रा पोर्ट तक रेल कनेक्टिविटी बेहद कमजोर है। पोर्ट से गोविंदपुरा और मंडीदीप कंटेनर लाने का खर्च बहुत ज्यादा है। लॉजिस्टिक लागत इतनी ज्यादा है कि महाराष्ट्र और गुजरात के मुकाबले मप्र निर्यात के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा ही नहीं कर पा रहा है। कोल्ड स्टोरेज का प्रदेश में इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने के लिए बैंकों से पर्याप्त मात्रा में कर्ज ही नहीं मिलता। आरटीओ विभाग के कामकाज के तरीकों में पारदर्शिता का अभाव है। होशंगाबाद टर्मिनल के लिए जाते समय कंटेनर से सामान चोरी होने का डर रहता है। मप्र में लॉजिस्टिक पॉलिसी और स्टेट लॉजिस्टिक मास्टर प्लान नहीं है। इसलिए मप्र को लॉजिस्टिक में कम रैंक मिली। मप्र में सिटी लेवल लॉजिस्टिक कमेटी नहीं है। इसलिए मप्र को इसमें कोई अंक नहीं मिला। राज्य सरकार के विभागों ने ट्रांसपोर्टर की शिकायतों पर पर्याप्त प्रमाण पेश नहीं किए। इसलिए रैंक घटी। उद्योगों के साथ बातचीत से भी पता चला है कि मप्र ट्रांसपोर्टेशन का माहौल बेहद खराब है। राज्य में इसकी निगरानी के लिए न कोई तंत्र है और न कोई नियम। भाड़े की निगरानी का भी कोई सिस्टम नहीं है।
    लॉजिस्टिक सेक्टर में मप्र की रैंकिंग 21 वीं
    मप्र के बारे में यह फीडबैक देश की अग्रणी लॉजिस्टिक कंपनियों ने केंद्र सरकार को दिए हैं। इस फीडबैक से तैयार रिपोर्ट में लॉजिस्टिक सेक्टर में 25 राज्यों में मप्र की रैंकिंग 21 वीं हैं। एक साल पहले 9वीं रैंक थी। लॉजिस्टिक कंपनियों ने यह भी कहा है कि मंडीदीप से पोर्ट तक माल लाने ले जाने के लिए जरूरी रेल कनेक्टिविटी का अभाव है। ट्रक यूनियन का कार्टल इतना तगड़ा है कि मंडीदीप के ड्राइपोर्ट से गोविंदपुरा तक माल लाने का भाड़ा बेहद ज्यादा है। मप्र में न लॉजिस्टिक मास्टर प्लान है और न ही सिटी लॉजिस्टिक कमेटी।  उद्योग विभाग के प्रमुख सचिव संजय शुक्ला का कहना है कि रोड की स्थिति सुधरी है। फ्लाईओवर बने हैं। पुलिस को वाहनों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाने के लिए कहा गया है। हमारे कई सरकारी विभाग कोविड के चलते जरूरी डेटा नहीं दे सके। इसलिए भी हमारी रैंक नीचे आई। इस बार इसमें सुधार होगा। राज्य की रैंक टॉप-5 में आ सकती है।

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