कहीं यह परिवर्तनकारी प्यारेलाल जी का इतिहास तो नहीं दोहरा रहे!

शिवराज सिंह चौहान

चौकड़ी बनाम तिकड़ी  के बीच सत्ता संघर्ष का दौर जारी!

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। एक जमाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के खिलाफ स्व. प्यारेलाल खंडेलवाल के नेतृत्व में असंतुष्ट परिवर्तनकारी कहलाए थे। कामोवेश यही स्थिति अब बनती दिख रही है। इसकी वजह है सत्ता में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरोधी माने जाने वाले कई दिग्गज नेताओं के बीच इन दिनों चल रहा अकेले में मेल मुलाकातों का दौर। यह दौर बीते डेढ़ हफ्ते से लगातार जारी है। खास बात यह है कि वैसे तो चार नेता कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, प्रहलाद पटेल और प्रभात झा ही इसके केन्द्र बिन्दु में है, लेकिन जिस तरह से दो अन्य नेताओंं भूपेन्द्र सिंह और अरविंद भदौरिया भी मुलाकातों में शामिल हुए उससे उनको लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। यह दोनों ही नेता शिव के करीबी माने जाते हैं। हालांकि इन दिनों भूपेन्द्र सिंह की सरकार में सक्रियता बेहद कम है। प्रदेश की राजनीति में इन दिनों जिस तरह से भाजपा नेताओं के बीच मिलने जुलने के साथ ही बंद कमरों में चर्चाएं की जा रही हैं उससे राजनैतिक गलियारों से लेकर प्रशासनिक हल्कों तक में कई तरह के कयासों का दौर चल रहा है।
यह मेल-मुलाकात का दौर बीते हफ्ते दिल्ली से शुरू हुआ था। वहां पर केन्द्रीय मंत्री और दमोह के सांसद प्रहलाद पटेल के आवास पर जब प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन मंत्री हितानंद शर्मा मिलने गए थे। इसके बाद से इस तरह का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। फिलहाल जिन नेताओं के बीच इस तरह की मेल मुलाकातें चल रही हैं वे, सभी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रदेश की राजनीति में विरोधी माने जाते हैं। खास बात यह है कि इसमें शिवराज स्ािंह चौहान, नरेन्द्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिकड़ी को पूरी तरह से अलग- थलग रखा गया है। सिंधिया के बारे में बताया जाता है कि वे बीते एक माह से विदेश में हैं। दरअसल इन तीनों नेताओं की आपस में पटरी खूब बैठती है। प्रदेश के साथ ही पार्टी में राष्ट्रीय स्तर पर चौहान और तोमर के बीच की राजनीतिक केमिस्ट्री का तो उदाहरण अब भी दिया जाता है। जिस तरह से नरोत्तम मिश्रा, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल और प्रभात झा के बीच मेल मुलाकातें हुई हैं उससे कहा जा रहा है कि यह चौकड़ी ही परिवर्तनकारी मुहिम चला रही है। इनमें भी मिलने जुलने वालों के केन्द्र बिन्दु नरोत्तम मिश्रा बने हुए हैं। खास बात यह है कि इस चौकड़ी ने तिकड़ी से मुलाकात नहीं की है। प्रभात झा प्रदेश संगठन की बागडोर संभाल चुके हैं। इस दौरान उनकी पटरी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से न बैठने की खबरें समय-समय पर आती रहती थीं।
 अब जब की प्रदेश में फिर भाजपा की सरकार है , लेकिन सत्ता में झा को महत्व न मिलने की बात कही जा रही है। लगभग यही स्थिति विजयवर्गीय की भी है। इंदौर के मामले में न तो उनकी राय ली जाती है और न ही उनकी राय को सरकार में कोई महत्व दिया जाता है। यही वजह है कि वे भी शिव सरकार से नाराज बताए जा रहे हैं। माना जाता है कि अगर प्रदेश में कोई बड़ा परिवर्तन होता है तो वह शिव की पसंद से ही होगा। इसमें भी शिव की पहली पसंद मुन्ना भैया ही होंगे। इनके अलावा एक और भाजपा की कद्दावर लोधी नेता इसके पहले से ही सक्रिय बनी हुई हैं। वे समय-समय पर अपने ट्वीट के माध्यम से अपनी लालसा का इजहार करती रहती हैं। दरअसल यह वे नेता है, जिनकी लालसा प्रदेश सरकार का नेतृत्व करने की बनी हुई है। मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्र में सालों तक मंत्री रहीं उमा भारती एक बार फिर सक्रिय राजनीति में आने की इच्छा खुलकर जाहिर कर चुकी हैं। हाल ही में उनके द्वारा एक के बाद एक किए गए ट्वीट में उन्होंने सक्रिय राजनीति में आने के लिए कई बातों का भी उल्लेख किया है। इसमें उनके द्वारा कहा गया है कि वे अगला लोकसभा चुनाव होने तक अपना समय संगठन को देना चाहती हैं। उन्होंने अगला लोकसभा चुनाव लड़ने की भी इच्छा जताई है। अपने पक्ष में एक अन्य ट्वीट में उनके द्वारा कहा गया है कि तत्कालीन राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल ने बीते लोकसभा चुनाव के समय उन्हें एक सूची देते हुए कहा था कि अगर वे चुनाव नहीं लड़ती हैं तो मप्र, छग, उप्र और राजस्थान में पार्टी को कई सीटों पर नुकसान हो सकता है। इसके पहले वे मप्र में शराब बंदी लागू करने की मांग कर सरकार के सामने मुसीबत खड़ी कर चुकी हैं। सुश्री भारती की भी शिवराज से पटरी नहीं बैठती है। इस बीच सत्ता व संगठन ने जिस तरह से प्रदेश में वरिष्ठों को किनारा करना शुरू किया है उससे भी प्रदेश के अंदर अंतर्विरोध की स्थिति बनी हुई है। इस बीच सरकार को लेकर कार्यकर्ताओं व नेताओं में भी अपनी ही सरकार को लेकर नाराजगी बढ़ती जा रही है। इसकी वजह है उन्हें सत्ता में भागीदारी न मिलना और उनके अपने कामों का भी न हो पाना बताया जा रहा है।
सत्ता व संगठन इन्हें बनाना चाहता है आडवाणी?
प्रदेश में बीते डेढ़ साल में जिस तरह से परिवर्तन की बयार बही है, उससे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लेकर कहा जाने लगा है कि सत्ता व संगठन मिलकर इन्हें अब केन्द्र की तरह लाल कृष्ण आडवाणी बनाने पर तुली हुई है। इनमें पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और सांसद राकेश सिंह, पूर्व मंत्री और विधायक अजय विश्नोई, राजेन्द्र शुक्ला , गौरी शंकर बिसेन, रामपाल सिंह, सीताशरण शर्मा, केदार शुक्ला, यशपाल सिंह सिसौदिया, राजेन्द्र पांडे, संजय पाठक के अलावा गौरी शंकर शेजवार ,दीपक जोशी हिम्मत कोठारी , विक्रम वर्मा, कुसुम मेहदेले, अनूप मिश्रा और माया यिंह जैसे नाम शामिल हैं। इनमें से कई नाम तो ऐसे हैं जिनके राजनीतिक कॅरियर के लिए श्रीमंत और उनकी टीम मुसीबत के रूप में सामने आयी है।
फोटो वायरल होने दो परिवर्तन की कोई संभावना नहीं
केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, मप्र के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और पूर्व सांसद प्रभात झा अचानक मेल-मुलाकात का दौर-दौरा क्यों कर रहे हैं। यह राजनैतिक और प्रशासनिक वीथिकाओं में चर्चा का विषय है। आमो-खास से लेकर जनता के  बीच ये कौतूहल है  कि क्या मध्यप्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन होने जा रहा है? तमाम परिस्थितियों  को देखते हुए अभी  परिवर्तन की कोई संभावना नजर नहीं आती है। कयासों, मुलाकातों और अटकलों का दौर अभी और जारी रहेगा। परिवर्तन तभी होगा जब उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मुख्यमंत्री बदले जाएं। बहरहाल सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करने से राजनैतिक समीकरण बदलने वाले नहीं हैं।
कार्यकर्ताओं में नाराजगी की यह वजहें
बताया जाता है कि कार्यकर्ताओं में अपनी ही सरकार को लेकर अब नाराजगी बढ़ती ही जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बीते कार्यकाल की ही तरह इस बार भी डेढ़ साल बाद अब तक सत्ता में भागीदारी नहीं दी गई है। बीते कार्यकाल में भी इसी तरह का ढर्रा जारी रहा था, जिसकी वजह से ही कार्यकर्ता पूरी सिद्दत के साथ चुनाव में सक्रिय नहीं हुए थे और पार्टी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। इससे न तो अब तक संगठन और न ही सरकार सबक लेती दिख रही है। हालत यह है कि प्रदेश के तमाम विकास प्राधिकरणों से लेकर निगम मंडल, जनभागीदारी समितियां, अंत्योदय समितियों के अलावा सहकारिता क्षेत्र में तमाम पद या रिक्त पड़े हैं या फिर उनकी कमान अफसरों के पास बनी हुई है। यही नहीं प्रभारी मंत्री न होने की वजह से कार्यकर्ताओं के स्थानीय स्तर तक के काम नहीं हो पा रहे हैं। इन कामों के लिए कार्यकर्ताओं को भोपाल के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

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