
- न भू-अर्जन हुआ…न वन भूमि पर कोई निर्णय
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सरकार की कोशिश है की पग-पग भूमि सिंचित हो, लेकिन अफसरों की लापरवाही के कारण कई परियोजनाएं सालों से अधर में लटकी हुई हैं। आलम यह है कि अफसर न तो किसानों की जमीनों का भू-अर्जन कर पाए हैं और न ही वन भूमि को लेकर कोई निर्णय लिया गया है। इस कारण एक तरफ जहां वन एवं पर्यावरण की अनुमति नहीं मिलने की वजह से करीब एक दर्जन सिंचाई प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सके हैं, वहीं लघु सिंचाई परियोजनाओं के लिए वन भूमि की अदला-बदली और भू-अर्जन के लिए जिलों को पैसा आवंटित होने के बाद भी खर्च नहीं हो सका। करीब 20 करोड़ से अधिक राशि कार्यपालन यंत्री खर्च नहीं कर सके हैं। इस मामले में जल संसाधन विभाग ने कार्यपालन यंत्रियों की खिंचाई करते हुए राशि समर्पित करने के निर्देश दिए हैं।
सिंचाई परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन करने और वन भूमि के बदले पौधरोपण करने के लिए जिलों को जो राशि आवंटित की गई थी, उसका उपयोग नहीं किया गया। वैसे जितने भी सिंचाई प्रोजेक्ट होते हैं, उनमें जमीन के भू-अर्जन का काम जिलों में कलेक्टरों द्वारा किया जाता है, लेकिन शासन से मिली राशि कार्यपालन यंत्रियों ने कलेक्टरों को भी जमीनों का भू-अर्जन के लिए आवंटित नहीं की, जिसके कारण लघु सिंचाई प्रोजेक्ट के काम शुरू नहीं कराए जा सके हैं। इससे इन परियोजनाओं के निर्माण में भी देरी होगी और प्रोजेक्ट लागत भी बढ़ने की संभावना है।
जिलों से वापस मांगी गई राशि
जल प्रदेश में 24 लघु सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण से पूर्व जल संसाधन विभाग ने किसानों की जमीनों का भू-अर्जन करने और वन भूमि के बदले पौधरोपण तथा उतनी ही भूमि आवंटित करने के लिए कार्यपालन यंत्रियों को पिछले साल करीब 20 करोड़ से ज्यादा की राशि आवंटित की थी, लेकिन जिलों में इंजीनियरों की लापरवाही के चलते न तो निजी भूमि का अर्जन किया जा सका है और न ही वन भूमि को लेकर कोई निर्णय लिया गया है। अब उसे वापस लिया जा रहा है। धार जिले से 265.99 लाख रूपए वापस मांगें गए हैं। वहीं शाजापुर से 198.85 लाख, डिंडौरी से 183.25 लाख, खरगोन से 128.67 लाख, शहडोल से 124.98 लाख, सागर परियोरियोजना से 84.36 लाख, सीहोर से 71.24 लाख, ईई-पन्ना से 70.97 लाख, ईई-छिंदवाड़ा से 63.33 लाख, उमरिया से 63.30 लाख, अलीराजपुर से 57.70 लाख रूपए वापस मांगे गए हैं।
राशि का उपयोग नहीं कर पाए
फील्ड में पदस्थ कार्यपालन यंत्रियों और अधीक्षण यंत्रियों का बड़ी सिंचाई परियोजनाओं पर ज्यादा फोकस रहता है, जिसके कारण वे लघु सिंचाई परियोजनाओं के मामले में लापरवाही बरतते हैं। बड़े प्रोजेक्ट पर तेजी से काम कराने और उसे पूरा कराने पर फोकस की वजह से छोटी परियोजनाएं अटक जाती हैं। छोटी परियोजनाओं के लिए जो 20 करोड़ रूपए की राशि जिलों को आवंटित की गई थी उसे कई जिलों में उपयोग नहीं हो पाया है। इनमें कार्यपालन यंत्री गोहद परियोजना, ईई बालाघाट, कार्यपालन यंत्री छतरपुर, सीहोर, इंदौर डिवीजन, मंडला डिवीजन, सिवनी, रायसेन, विदिशा, कटनी कार्यपालन यंत्री आरटीएम, परियोजना केवलारी सहित अन्य कार्यपालन यंत्रियों के नाम शामिल हैं। इन जिलों में 25 लाख से लेकर 50 लाख रुपए तक का इस्तेमाल भू-अर्जन के उपयोग में नहीं किया गया है। मुख्य अभियंता बजट सिंचाई विभाग शिरीष मिश्रा का कहना है कि कार्यपालन यंत्रियों को लघु परियोजनाओं के लिए भू-अर्जन एवं वन भूमि के लिए राशि आवंटित की गई थी, लेकिन कार्यपालन यंत्रियों ने उक्त राशि का उपयोग नहीं किया है। काफी समय से इस राशि का उपयोग नहीं होने की वजह से जो राशि व्यय नहीं हो सकी, उसे समर्पित (वापस) मांगा गया है। इस संबंध में निर्देश जारी कर दिए हैं।